दलित मुद्दों पर पटना में आयोजित एक कार्यशाला में ब्राह्मण अधिकारी व बुद्धिजीवी को ब्राह्मण कहने पर बवाल हो गया। ब्राह्मण कहकर पुकारने वाले दलित नेता को अपनी सीमा में रहने की हिदायत दी गई। कार्यक्रम के बाद भी दोनों पक्षों की ओर से एक-दूसरे पर आरोप लगाए जा रहे हैं।
बिहार की राजधानी पटना में 6 मई 2018 को ए एन सिन्हा सामाजिक शोध संस्थान के सभागार में ‘इंटरनेशनल मोबिलिटी इन दलित कास्ट’ विषयक कार्यशाला का आयोजन किया गया था। कार्यक्रम के उद्घाटन के समय संस्थान के पूर्व निदेशक प्रो. डीएम दिवाकर और पूर्व केन्द्रीय मंत्री डॉ. संजय पासवान मौजूद थे। दीप प्रज्ज्वलन के लिए जब सभी अतिथि आए तो डॉ. पासवान ने डीएम दिवाकर को भी यह कहते हुए दीप प्रज्वालन के लिए आमंत्रित किया कि “आप भी ब्राह्मण हैं, आप भी दीप जलाने आ जाएं। आपके बिना कार्यक्रम की शुरूआत कैसे होगी”। इस पर दिवाकर कुपित हो गए और त्यौरियां चढ़ाने लगे। दिवाकर की नाराजगी को भांपते हुए डॉ. पासवान ने उन्हें मनाने की कोशिश की। लेकिन दिवाकर और भड़कते रहे। उन्होंने डॉ. पासवान को गुस्से भरे शब्दों में कहा कि आप “अपनी सीमा में रहें।”

डीएम दिवाकर ने घटना का एक वीडियो[1] अपने फेसबुक पेज पर साझा किया है। बिहार के विभिन्न अखबार और इलेक्ट्रॉनिक चैनलों में इसे लेकर खूब चर्चा हो रही है। मीडिया रिर्पोटों में डॉ. पासवान के बुरे व्यवहार के लिए उनकी जमकर लानत-मानत की जा रही है।
दूसरी ओर, घटना के बारे में डॉ. पासवान के मित्रों का कहना है कि “डॉ. पासवान द्वारा अपने समर्थकों को एक विशेष सामाजिक-संदेश देने के लिए हास्य-भाव से कही गई एक बात का बतंगड़ बनाते हुए प्रो. दिवाकर ने पहले बदतमीजी शुरू की। इसके बावजूद पासवान ने उन्हें स्नेह और विनम्रतापूर्वक समझाने की कोशिश की और अपनी बात वापस लेते हुए उन्हें मंच दीप जालने के लिए आने के लिए कहते रहे। लेकिन शांत होने के बजाय दिवाकर ने वास्तव में अपने ब्राह्मण होने के दंभ का प्रदर्शन किया और डॉ पासवान की दलित पहचान को चिह्नित करते हुए उन्हें अपनी सीमा में रहने के लिए कहा। यह उन्हें औकात में रहने के लिए कहने जैसा था। इसके बाद पासवान ने जो कुछ किया, वह उन्होंने अपनी दलित-अस्मिता को बचाने के लिए किया।”
वीडियो में क्या है?
घटना के बारे में एक वीडियो प्रो. दिवाकर ने अपने फेसबुक पेज पर जारी किया है। वीडियो में दिखता है कि दिवाकर के भडकने के बाद डॉ. पासवान उन्हें शांत करने का प्रयास करते हैं और एक बार फिर दीप जलाने के रस्म में साथ निभाने का अनुरोध करते हैं। वीडियो में यह दृश्य भी सामने आता है कि अनुरोध करने के क्रम में वे प्रो. दिवाकर का हाथ पकड़ते हैं। हालांकि इस बारे में प्रो. दिवाकर का कहना है कि डॉ. पासवान ने उनकी बांह मरोड़ी। एक अखबार को दिये अपने बयान में भी उन्होंने कहा, “जाति सूचक शब्द (ब्राह्मण्) कह कर बुलाये जाने पर मैंने इसका प्रतिरोध करते हुए दीप नहीं जलाने की बात कही। इस पर एमएलसी ने जबरदस्ती हाथ पकड़ कर दीप जलवाया। फिर मैंने उनको सीमा में रहने की बात कही।” वीडियो से यह साफ होता है यह आरोप झूठा है।

प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक संस्थान के कर्मियों के बीच-बचाव के कारण स्थिति सामान्य होने लगी थी। लेकिन जिस वक्त दोनों ओर से सीमायें लांघी जा रही थीं, प्रो. दिवाकर ने तेज आवाज यह कहा कि “हां, मैं ब्राह्मण हूं और मुझे इसका अभिमान भी है।[2]
वहीं इस बारे में डॉ. संजय पासवान ने कहा कि “मुझे सेमिनार में बतौर मुख्य अतिथि बुलाया गया था। दीप प्रज्वालन के लिए मैंने ब्राह्मण होने के नाते प्रो. दिवाकर को आमंत्रित किया। उनके नाराज होने पर मैंने आग्रहपूर्वक उनका हाथ पकड़कर दीप जलवाया। मैंने किसी तरह के अपशब्द का प्रयोग नहीं किया। दरअसल प्रो. दिवाकर के मन में पूर्वाग्रह है। हमने कई बार इसका सामना किया है।”
ब्राह्मण होने का यह कैसा अभिमान: भरत पतंकर
ए एन सिन्हा सामाजिक शोध संस्थान के सभागार में जब यह सब चल रहा था तब सभागार में प्राख्यात समाजशास्त्री गेल ऑम्वेट और भरत पतंकर मौजूद थे। भरत पतंकर ने फारवर्ड प्रेस से दूरभाष पर कहा कि “उद्घाटन सत्र के दौरान जो कुछ घटित हुआ वह अचानक हुए विस्फोट जैसा था। हम समझ नहीं पाये कि आखिर हुआ क्या है। लेकिन ब्राह्मण शब्द का उपयोग किये जाने के बाद यह स्थिति उत्पन्न हुई है, यह बात सामने आयी। मेरी राय में ब्राह्मण शब्द का प्रयोग किसी ऐसे व्यक्ति के लिए नहीं किया जाना चाहिए जिसने अपने आपको ब्राह्मण धर्म से अलग कर लिया हो। बाबा साहब आंबेडकर भी मानते थे कि ब्राह्मण धर्म का विरोध किया जाना चाहिए न कि उस धर्म के किसी व्यक्ति से। लेकिन मुझे उस वक्त हैरानी हुई जब प्रो. दिवाकर जो कुछ देर पहले स्वयं को जाति निरपेक्ष बता रहे थे, तनातनी के दौरान यह कहा कि वे ब्राह्मण जाति के हैं और उन्हें इसका अभिमान है। यह कैसा अभिमान है?”

पतंकर ने कहा कि “डॉ. पासवान ने भी जो अपने भाषण में कहा, उससे मुझे निराशा हुई। उन्होंने (डॉ. पासवान) कहा कि ज्ञान का भंडार अभी भी ब्राह्मणों के पास है और वे इसका सम्मान करते हैं। उनका रवैया माफी मांगने वाला था। जबकि उन्होंने ब्राह्मण को ब्राह्मण कहकर गलत नहीं किया था, जिसके लिए उन्हें माफी मांगनी चाहिए थी। यदि उन्हें माफी मांगनी ही थी तो उन अपशब्दों के लिए मांगनी चाहिए थी जिसमें उन्होंने महिला विरोधी शब्दों का उपयोग किया था।”
पतंकर ने बताया कि “अपने अध्यक्षीय संबोधन में मैंने बिना किसी का नाम लिए इस बात को रखा कि ब्राह्मणों के पास कौन सा ज्ञान है, जिसका वे दावा करते हैं। वेद, पुराण, रामायण और महाभारत वाला ज्ञान! यह वास्तविक ज्ञान नहीं है। वास्तविक ज्ञान वह है जो श्रमण परंपरा में एक पीढ़ी के बाद दूसरे पीढ़ी को हस्तांतरित होता है और उसका विकास होता है।” पतंकर ने दुख जताते हुए कहा कि “आज भी ज्ञान पर ब्राह्मणों का वर्चस्व कायम रहने की बात कही जाती है और ऐसा कहने व उनका महिमामंडन करने वाले लोग दलित और बहुजन समाज में भी हैं।”

गौरतलब है कि डॉ. संजय पासवान लालू प्रसाद के राजनीतिक सहयोगी भी रहे हैं। राजनीतिक रूप से पाला बदलने में माहिर डॉ. पासवान अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में वे राज्यमंत्री भी रहे।वर्तमान में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य हैं। हाल ही में उन्हें भाजपा की ओर से बिहार विधान परिषद के सदस्य के रूप में मनोनीत किया गया। पिछले दिनों डॉ. पासवान उस समय चर्चा में आये थे जब उन्होंने भाजपा के अनुसूचित जाति मोर्चा के अध्यक्ष के रूप में बसपा संस्थापक कांशीराम को भारत रत्न का सम्मान देने की मांग कर डाली थी तथा दिल्ली स्थित भाजपा मुख्यालय के अपने कक्ष में कांशीराम की तस्वीर लगवा ली थी।

डॉ पासवान ‘हम कबीर के लोग’ नामक एक संगठन भी चलाते हैं, जिसका मकसद वंचित समाज में जागरुकता का प्रसार करना है। डॉ. पासवान की एक पहचान एक लेखक के रूप में भी है। उन्होंने अब तक छह किताबों की रचना की है। इनमें बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री भोला पासवान शास्त्री की आत्मकथा के अलावा ‘द प्रोब्लेम्स ऑफ शेड्यूल कास्ट्स ऑफ बिहार’, ‘द रूट्स ऑफ रूरल वायलेंस’, ‘द इनसाइक्लोपीडिया ऑफ दलित्स इन इन्डिया (11 खंडों में), ‘राष्ट्र निष्ठा बाबू जगजीवन राम’ और ‘द सोशल फेस ऑफ इन्डियन पार्लियामेंट’ शामिल हैं।
वहीं एक गरीब ब्राह्मण परिवार में पैदा हुए प्रो. डी. एम. दिवाकर (दिगम्बर मिश्र दिवाकर) की पहचान वामपंथी बुद्धिजीवी के रूप में रही है। नीतीश सरकार ने उन्हें पटना के ए एन सिन्हा सामाजिक शोध संस्थान का निदेशक बनाया। इस पद पर वे दो-दो बार चुने गये। प्रो. दिवाकर अपने कार्यकाल में कई विवादों को लेकर चर्चित रहे। सबसे अधिक विवाद तब हुआ जब उन्होंने निदेशक रहते हुए संस्थान में स्वयं को एक प्रोफेसर के रूप में नियुक्ति की। उन्होंने भी अनेक पुस्तकों की रचना की है तथा अपने दलित पक्षधर लेखन से समाज में पहचान बनाई है।
(कॉपी एडिटर : कबीर)
संदर्भ :
[1] https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=10208929937525698&id=1833473619
[2] https://www.prabhatkhabar.com/news/patna/bihar-patna-mlc-sanjay-paswan-and-dm-diwakar-among-others-talked-about-caste/1152965.html
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