बैतूल (मध्य प्रदेश)। मध्य प्रदेश की आरएसएस नीत शिवराज सरकार पारधी समुदाय के जख्मों पर मरहम लगाने की बजाय नमक छिड़ रही है। एक दशक से भी अधिक समय से पारधी समुदाय की महिलाएं न्याय की जंग लड़ रही हैं। वर्ष 2007 में पारधी समुदाय की दस महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया था। यही नहीं, एक दंपत्ति की हत्या के बाद इस समुदाय की बस्ती में आग लगा दी गई थी। पारधी समुदाय पर अत्याचार करने वालों को सजा दिलाना तो दूर, पीड़ितों को न्याय दिलाने की लड़ाई लड़ने वाले अलसिया पारधी को ही जिला बदर यानी जिला से निकल जाने के लिए नोटिस जारी कर दिया गया है। इस अन्याय के खिलाफ समाजवादी जनपरिषद के बैनर तले पारधी समुदाय की महिलाओं ने अनूठा विरोध प्रदर्शन कर न्याय की आवाज बुलंद की।
बैतूल के लल्ली चौक पर समाजवादी जनपरिषद के सक्रिय सहयोग से पारधी समुदाय ने विरोध प्रदर्शन किया। पारधी समुदाय की महिलाओं व बच्चों ने मुंह पर कपड़ा बांध खुद को रस्सी के घेरे में डाल लिया। विरोध प्रदर्शन के दौरान सरकार से सवाल किया गया कि उन्हें न्याय देने की बजाय पारधी समुदाय की न्याय की लड़ाई लड़ने वाले को ही क्यों जिला बदर का नोटिस दिया गया? समाजवादी जनपरिषद के पदाधिकारी अनुराग मोदी का कहना है कि पारधी समुदाय की ये लड़ाई तब तक जारी रहेगी, जब तक दोषियों को सजा नहीं मिलती। मोदी का कहना है कि समाजवादी जनपरिषद इस न्याय युद्ध में हमेशा पारधी समुदाय के साथ खड़ा है।
क्या है मामला
सड़कों के किनारे तमाशा दिखा कर अपना पेट पालने वाला पारधी समुदाय दशकों से अन्याय का शिकार है। अंग्रेजी हुकूमत ने वर्ष 1871 में एक कानून ‘क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट’ के तहत पारधी समुदाय को अपराधिक जनजाति घोषित किया। भारत आजाद होने के बाद प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु की पहल पर 1952 में इन जनजातियों को विमुक्त कर दिया गया। इसके बावजूद आज भी इन विमुक्त जनजातियों को लोग अपराधिक नजर से देखते हैं और परेशान करते रहते हैं। विडंबना यह है कि कहीं इन्हें विमुक्त जनजाति तो कहीं आदिवासी और दलित श्रेणी में रखा गया है, लेकिन उससे भी बड़ी विडंबना यह है कि मध्य प्रदेश के बैतूल में इन्हें सामान्य श्रेणी में रखा गया है। यही कारण है कि मध्य प्रदेश के मुलताई थाना अंतर्गत चौथिया बस्ती में वर्ष 2007 में पारधी समुदाय की महिलाओं के साथ दुष्कर्म को एट्रोसिटी एक्ट 1989 के तहत अत्याचार नहीं माना गया।
वर्ष 2007 में मध्य प्रदेश के थाना मुलताई के चौथिया बस्ती में पारधी समुदाय पर कहर टूटा था। पारधियों के घरों को प्रशासन की मौजूदगी में नेस्तनाबूद कर दिया गया था। चौथाई बस्ती से कुछ दूर पर एक व्यक्ति की हत्या हुई थी, जिसके बाद प्रशासनिक अधिकारियों, स्थानीय नेताओं और पुलिस का गुस्सा बस्ती पर टूट पड़ा। हत्या के चश्मदीदों ने भी इसकी पुष्टि की कि हत्या दूसरे लोगों ने की, लेकिन पारधियों की किसी ने एक ना सुनी। पुलिस और प्रशासन के लोग आए। पूरी बस्ती के लोगों को इकठ्ठा कर थाने ले गए और इलाका छोड़ने का निर्देश दिया। बुलडोज़र लगाकर पारधियों के आशियानों को ढाह दिया गया। घरों में आग लगा दी गई। मारा-पीटा गया और महिलाओं के साथ दुष्कर्म की गयी।
पारधी समाज के मुखिया और इस घटना के पीड़ितों में एक अलसिया पारधी का आरोप है कि यह सब कुछ प्रशासन की देख-रेख में हुआ और इस वारदात को अंजाम देने वालों में स्थानीय नेता भी शामिल थे जो प्रमुख राजनीतिक दलों के सदस्य भी हैं।
बाद में सामाजिक संगठन– समाजवादी जन परिषद की पहल पर उच्च न्यायालय में मामला दायर किया गया। 2007 में अलसिया पारधी की तरफ से हेमंत खंडेलवाल (वर्तमान में भाजपा विधायक), कमल पटेल (पूर्व राजस्व मंत्री), बैतूल के तत्कालीन कलेक्टर अरुण भट्ट, मुलताई के तत्कालीन एसडीएम, तहसीलदार सहित कुछ नेताओं व अफसरों को चौथिया मामले में आरोपी बनाने के लिए जबलपुर हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई। न्यायालय ने मामले को गंभीरता से लेते हुए पूरी घटना की जांच के आदेश दे दिए। जांच का ज़िम्मा केंद्रीय जाँच ब्यूरो यानी सीबीआई को सौंपा गया।
सीबीआई अदालत में प्रत्यक्षदर्शी गवाहों के बयान के आधार पर तत्कालीन मुलताई विधायक सुखदेव पांसे, भाजपा के बैतूल जिला पंचायत अध्यक्ष राजा पंवार और तत्कालीन एसडीओ पी.डी.के. साकल्ले इस मामले में मुख्य आरोपी हैं। यह मामला अभी तक सीबीआई अदालत में लंबित है। आज तक इसमें किसी की गिरफ्तारी नहीं हो पाई है। इस मामले की अगली सुनवाई 2 जुलाई 2018 को होनी है।
समाजवादी जनपरिषद के पदाधिकारी अनुराग मोदी ने आरोप लगाया है कि मध्य प्रदेश की आरएसएस नीत शिवराज सरकार प्रभावशाली लोगों को बचाने के लिए ही अलसिया पारधी को जिला बदर का नोटिस दिया गया है। अनुराग मोदी ने कहा कि कांग्रेस व भाजपा नेताओं के चेहरे इस मामले में एक समान रूप से दोषी हैं। जनपरिषद का आरोप है कि प्रभावशाली नेताओं व अफसरों ने मिलकर बैतूल के कलेक्टर पर दबाव बनाया और अलसिया पारधी को राज्य सुरक्षा कानून के तहत 6 जिलों से जिला बदर करने का नोटिस दिया गया। यह कार्रवाई तमाम नियमों और हाईकोर्ट के फैसलों को ताक पर रखकर एक फर्जी संस्था के पत्र के आधार पर की जा रही है, जबकि अलसिया पारधी के खिलाफ कोई सबूत भी नहीं है। समाजवादी जनपरिषद के अनुराग मोदी ने दावा किया है कि जिन दस्तावेजों के आधार पर यह नोटिस दिया गया है उसकी प्रति भी अलसिया को नहीं दी जा रही है।
अनुराग मोदी ने बताया कि जब भी चुनाव होते है, तब जनता को असली मुद्दे से भटकाने के लिए राजनीतिक दल पारधियों के अपराधी होने का भय दिखाकर चुनावी मुद्दा बनाते हैं। नतीजतन कई पारधियों की हत्या कर दी जाती है। जब 2003 में चुनाव होना था, तब उसके पहले घाट-अमरावती में तीन पारधी महिला पुरुषों की पत्थर से कुचलकर हत्या कर दी गई थी। इसके बाद, 2008 के चुनाव से पहले सितम्बर 2007 में चौथिया कांड हुआ और अब अगले आम चुनाव के पहले अलसिया को जिला बदर कर सारे मामले को दबाने की कोशिश हो रही है। वर्ष 2007 में चौथिया में पूरी बस्ती को लूटकर जला दिए जाने और वहां से विस्थापित किए जाने के बाद से 80 पारधी परिवार पिछले 9 साल से बैतूल में रह रहे हैं। बेशक लोग कुछ भी कहें, परंतु 9 साल के अरसे मेंं पारधियों के खिलाफ पुलिस में लूट, डराने-धमकाने, चोरी का एक भी मामला दर्ज नहीं है। पारधियों ने कभी भी कानून-व्यवस्था को नहीं तोड़ा है। जब पूरा बैतूल पानी के लिए तरस रहा है और राजनेता टैंकर कमीशन का खुला खेल खेल रहे थे, तब अलसिया पारधी ने अपने टैंकर के जरिए शहर के हर वार्ड में नि:शुल्क पानी बांटा था। अनुराग मोदी ने कहा कि पारधियों को न्याय दिलाने के लिए समाजवादी जनपरिषद आगे भी सक्रिय सहयोग करेगी।
(कॉपी-संपादन : राजन कुमार)
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