खेती में महिलाओं की भागीदारी पुरूषों से अधिक है। गांवों में कृषि से संबंधित सभी कार्य महिलायें करती हैं। इसके बावजूद उन्हें किसान की संज्ञा नहीं दी जाती है। न तो उन्हें जमीन पर अधिकार मिलता है और न ही उनकी मेहनत के अनुरूप वाजिब मजदूरी। महिलायें सशक्त हों, इसके लिए आवश्यक है कि दलित और पिछड़े वर्ग की वे महिलायें, जो खेती और मवेशीपालन करती हैं, उन्हें सरकार मान्यता दे। ये बातें पद्मश्री सुधा वर्गीस ने बीते दिनों पटना के ए. एन. सिन्हा सामाजिक अध्ययन व शोध संस्थान के सभागार में आयोजित युवा महिला भूमि अधिकार सम्मेलन को संबोधित करते हुए कही। उन्होंने कहा कि बाढ़ और सुखाड़ आदि से फसल नष्ट होने पर महिलाओं को कोई मुआवजा नहीं मिलता है।

दरअसल बीते 15 जून को पटना में दलित और पिछड़े वर्ग की महिलाओं ने सम्मेलन में अपने लिए जमीन का अधिकार मांगा। सम्मेलन का आयोजन स्वयं सेवी संगठन एकता महिला मंच और लैंडलेसा ने संयुक्त रूप से किया।
इस मौके पर बिहार विधान सभा के पूर्व अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी ने कहा कि वक्त की मांग है कि जो जमीन को जोते – बोये वही जमीन का मालिक होवे। उन्होंने कहा कि बिहार में बड़ी संख्या में दलितों और पिछड़े वर्ग के लोगों के पास जमीन नहीं है। सरकार इन्दिरा आवास योजना चला रही है। शौचालय बनाने के पैसे देने के दावे सरकार द्वारा की जा रही है। लेकिन जब लोगों के पास जमीन ही नहीं है तो वे शौचालय कहां बनाएंगे। महिलाओं को जमीन का अधिकार मिले और सरकार उन्हें किसान के रूप में मान्यता दे। चौधरी ने कहा कि आज आप किसी भी गांव में चले जाइये। अधिकांश पुरूष या तो पलायन कर चुके हैं या फिर वे दिहाड़ी मजदूरी करने शहर में जाते हैं। खेत में फसल बोने से लेकर काटने का काम महिलाएं करती हैं। इसके बदले उन्हें जो मजदूरी मिलती है, वह ऊंट के मुंह में जीरा के समान है।

वहीं लेैण्डलेसा के संयोजक विनय ओहदार ने कहा कि खेती में 60 से 70 प्रतिशत महिलाएं कार्यशील हैं। केवल 30 से 40 प्रतिशत पुरूष लोग कृषि में लगे हैं, उनको किसान का दर्जा प्राप्त है। उन्होंने कहा कि सरकारे महिला सशक्तिकरण की बात करती है। लेकिन यह तबतक हवा-हवाई है जबतक कि सरकार महिलाओं को किसानों के रूप में मान्यता नहीं देती है। ओहदार ने कहा कि सरकार कहती है कि हम भूमिहीनों को जमीन देंगे। उनके अनुसार गैर मजरूआ, आम गैरमजरूआ, मालिक गैरमजरूआ, सीलिंग एक्ट, भूदान की जमीन और जमीन खरीदकर देने का प्रावधान है। लेकिन यह सब केवल कहने की बात साबित हुई है। भारी संख्या में लोग भूमिहीन हैं।
एकता महिला मंच की राष्ट्रीय अध्यक्ष जिल कर हैरिस ने कहा कि बिहार की अर्थव्यवस्था कृषि पर आश्रित है। जबकि कृषि के केंद्र में महिलाएं हैं। उन्होंने मांग किया कि सरकार महिलाओं को किसान के रूप में मान्यता दे और उन्हें खेती करने के लिए जमीन उपलब्ध कराए। उन्होंने कहा कि यह संघर्ष नया नहीं है। बीते डेढ़ दशक से यह मांग की जा रही है। महिलाओं को जमीन का पट्टा देने की मांग के अलावा गैर मजरूआ और भूदान की जमीन का पर्चा महिलाओं के नाम पर करने की मांग सरकार से की जाती रही है। लेकिन सरकार की तरफ अभी तक कोई कदम नहीं उठाया गया है। उन्होंने कहा कि 2008 में सिंधु सिन्हा के नेतृत्व में भोजपुर में महिलाओं के द्वारा सामूहिक खेती की शुरूआत हुई। यह सफल प्रयोग साबित हुआ है। महिलाएं समूह बनाकर खेती करती हैं। उन्होंने आहृवान किया कि महिलाएं आगामी 2 अक्टूबर 2018 को जनांदोलन 2018 में भाग लें। बिहार के अलावा महाराष्ट्र, झारखंड, गुजरात, पंजाब और केरल में पदयात्रा कर महिला किसानों को एकजुट किया जाएगा।
सम्मेलन को एकता परिषद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रदीप प्रियदर्शी के अलावा श्रद्धा कश्यप, अमर कुमार भारती, दयामंती देवी, ज्ञांति देवी, गणेश दास, कस्तूरबा बहन, मंजू डूंगडूंग आदि ने भी संबोधित किया। धन्यवाद ज्ञापन पुष्पा लकड़ा ने किया।
(कॉपी संपादन : सिद्धार्थ)
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