पटना में हल्ला बोल दरवाजा खोल अभियान की हुई शुरुआत
राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा आगामी लोक सभा चुनाव में अपनी अलग और विशेष पहचान बनाने की रणनीति में जुट गये हैं। उपेंद्र कुशवाहा लोकसभा चुनाव में अपने साथी को लेकर भी संशय में हैं। एनडीए में होते हुए लालू यादव के प्रति उनका लगाव कम नहीं हुआ है। राजनीतिक गलियारे में चर्चा है कि लोकसभा चुनाव में उपेंद्र कुशवाहा एनडीए के बजाये लालू यादव के साथ मिलकर चुनाव लड़ सकते हैं। हालांकि सार्वजनिक तौर पर इस संभावना को वह नकारते रहे हैं।

उपेंद्र कुशवाहा ने शिक्षा सुधार मानव श्रृंखला का आयोजन कर बिहार में शिक्षा में सुधार के लिए आंदोलन खड़ा करने का प्रयास किया था। मानव श्रृंखला में राजद के कई वरिष्ठ नेता भी शामिल हुए थे। इससे यह माना जा रहा था कि उपेंद्र कुशवाहा की राजद से नजदीकी बढ़ रही है। इस बीच उपेंद्र कुशवाहा ने न्यायपालिका पर कुछ जातियों के आधिपत्य के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। हल्ला बोल, दरवाजा खोल नामक कंपेन से उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायायल में जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया पर सवाल उठा रहे हैं। उनका मानना है कि कॉलेजियम की व्यवस्था अन्यायपूर्ण है और इसकी जगह पर जजों की निुयक्ति की प्रक्रिया में बदलाव किया जाना चाहिए। इसी मांग को लेकर राष्ट्रीय लोक समता पार्टी ने 6 जून को पटना के श्रीकृष्ण मेमोरियल हॉल में ‘हल्ला बोल दरवाजा खोल’ कार्यक्रम का आयोजन किया। इस मौके पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी में पटना उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश घनश्याम प्रसाद, कानून विशेषज्ञ बसंत चौधरी, जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के गौतम कुमार झा और कानून विशेषज्ञ प्रत्यूषमणि त्रिपाठी ने भी अपने विचार व्यक्त किये।
श्रीकृष्ण मेमोरियल हॉल पार्टी कार्यकर्ताओं से खचाखच भरा हुआ था। राजधानी को बैनरों से पाट दिया गया था। श्रीकृष्ण मेमोरियल हॉल परिसर भी होर्डिंग और बैनरों से पटा हुआ था। अभियान में शामिल होने के लिए राज्य भर के पार्टी नेता और कार्यकर्ता पहुंचे थे। कार्यकर्ता के उत्साह का असर उपेंद्र कुशवाहा के चेहरे पर भी दिखा।

कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए श्री कुशवाहा ने कहा कि उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालय में कॉलेजियम प्रणाली ठीक नहीं है और इसके दुष्परिणाम दिखाई भी पड़ रहे हैं। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने भी न्यायिक व्यवस्था में सामाजिक प्रतिनिधित्व नहीं होने की बात कही थी। उन्होंने कहा कि यह प्रणाली लोकतांत्रिक व्यवस्था में काले धब्बे की तरह है। इससे न्यायाधीशों का नहीं बल्कि उत्तराधिकारियों का चयन किया जाता है। इस व्यवस्था में बदलाव हो इसके लिए पार्टी आम लोगों तक जायेगी। उन्होंने कहा कि इससे पहले दिल्ली में इसी तरह का एक कार्यक्रम आयोजित किया गया था, जिसमें जाने माने कानून विशेषज्ञों के साथ ही बड़ी संख्या में बुद्धिजिवियों ने भी शिरकत की थी।
श्री कुशवाहा ने कहा कि इसी तरह का कार्यक्रम देश की सभी राजधानियों में आयोजित किया जाएगा और लोगों को कॉलेजियम प्रणाली की जानकारी से अवगत कराया जायेगा। उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया और उनके अधिकार को लेकर संविधान बनाते समय भी इस पर चर्चा हुई थी।
केन्द्रीय मंत्री ने कहा कि इस व्यवस्था के तहत उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति नहीं बल्कि जज अपने उत्तराधिकारी का चयन करते हैं। उन्होंने सवालिया लहजे में कहा कि यह कैसी व्यवस्था है। उन्होंने यह बताया कि कि संविधान निर्माता डॉ. अांबेडकर ने कहा था कि जो न्यायाधीश है उनकी भी आम लोगों की तरह भावनाएं होती हैं और उनको इस तरह का अधिकार देना खतरनाक होगा। कॉलेजियम प्रणाली के दुष्परिणाम अब देखने को मिल रहे हैं।
श्री कुशवाहा ने कहा कि वह न्यायपालिका का अपमान नहीं करना चाहते। वर्तमान न्यायिक व्यवस्था अप्रजातांत्रिक है और संविधान निर्माताओं की मान्यता के प्रतिकूल है। केन्द्रीय मंत्री ने कहा कि लोग उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय में भी न्यायधीशों की नियुक्ति में विविधता देखना चाहते हैं। लोकतंत्र के चार स्तंभ हैं और उनमें न्यायपालिका का ज्यादा सम्मान है। उन्होंने कहा कि किसी भी निर्णय पर न्यायपालिका को समीक्षा करने का अधिकार है।
केन्द्रीय मंत्री ने कहा कि वर्तमान कॉलेजियम व्यवस्था ने खिड़की दरवाजे बंद कर लिये हैं, जो आसानी से नहीं खुलने वाले। जब दरवाजा खुलेगा तब सिर्फ अनुसूचित जाति-जनजाति का ही नहीं बल्कि गरीब सवर्ण समाज के मेधावी बच्चे भी आयेंगे। उन्होंने कहा कि इसके लिए कुछ लोगों को जहर पीना पड़ेगा तभी यह बंद दरवाजा खुलेगा।
श्री कुशवाहा ने कहा कि न्यायपालिका पर से सम्मान धीरे-धीरे उठता जा रहा है, जो लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत नहीं है। वह चाहते हैं कि न्यायपालिका का सम्मान बना रहे। उन्होंने कहा कि न्यायाधीशों की नियुक्ति में सभी वर्गों का जब प्रतिनिधित्व होगा तभी यह विविधता का प्रतिनिधित्व करेगी और उसका सम्मान बढ़ेगा। न्यायाधीश को यदि लग रहा है कि उनका दिया गया फैसला सही है तो यह लोगों को भी सही लगना चाहिए। श्री कुशवाहा ने कहा कि इस मुद्दे को लेकर शीघ्र ही वह सभी राजनीतिक दलों के अध्यक्ष को पत्र लिखकर सहयोग की अपील करेंगे।
(कापी-संपादन- सिद्धार्थ )
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