मराठा समुदाय की कोटा की मांग कितनी पुरानी है?
1980 के दशक में, मराठा समुदाय जातिगत कोटा के खिलाफ थे और ‘पिछड़ा’ के रूप में पहचान बनाना नहीं चाहते थे। लेकिन नब्बे के दशक में मराठा समुदायों ने नौकरियों और शिक्षा में कोटा की मांग को समर्थन दिया। पिछले 10 साल में, यह धारणा प्रबल हुई कि एससी/एसटी के अलावा, ओबीसी श्रेणी को भी फायदा हुआ है। मराठा कुनबी उपजाति ओबीसी श्रेणी में शामिल है।
क्या मराठा समुदाय हाशिये पर हैं?
मराठा समुदाय राज्य की आबादी का लगभग 31 प्रतिशत है। यह एक प्रमुख जाति समूह है और यह समरूप यानी एक समान नहीं है। यह क्षत्रिय समुदाय का विस्तार है, जिसमें पूर्व सामंती अभिजात वर्ग और शासकों के साथ-साथ सबसे ज्यादा वंचित किसान शामिल हैं। राज्य के राजनीतिक परिदृश्य पर मराठा हावी है क्योंकि ज्यादातर मुख्यमंत्री मराठा रहे हैं। राजनीतिक शास्त्री सुहास पालशिकर के अनुसार, 1980 के दशक में कुछ समय को छोडक़र, राज्य कैबिनेट में मराठों का हिस्सा 52 प्रतिशत से कम नहीं हुआ है। वे राज्य के लगभग 54 प्रतिशत शैक्षिक संस्थानों, 70 प्रतिशत सहकारी संस्थानों और 70 प्रतिशत से ज्यादा कृषि भूमि अधिग्रहण को नियंत्रित करते हैं।
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अगर वे इतने प्रभावशाली हैं, तो कोटा की मांग क्यों कर रहे हैं?
मराठा अभिजात वर्ग और मराठा जनता के बीच एक गहरी खाई है। मराठा जनता महसूस करती है कि मराठा अभिजात वर्ग ने सभी विशेषाधिकार हासिल कर लिए हैं। पालशिकर कहते हैं कि कोटा के लिए मांग मुख्य रूप से मराठवाड़ा जैसे पिछड़े क्षेत्रों की मराठा जनता कर रही है। कृषि संकट, नौकरियों की कमी और राज्य के अधूरे वादों ने इस मांग को तेज कर दिया है। यद्यपि मराठों ने परंपरागत रूप से एससी और ब्राह्मणों के खिलाफ गठबंधन किया था, ओबीसी के राजनीतिक उदय ने भी अवसरों की कमी की धारणा को जन्म दिया है। गुजरात में पाटीदार आंदोलन से मराठा हलचल को बढ़ावा मिला।
(साभार : टाइम्स ऑफ इंडिया)
(अनुवादक : शिवानी मेहता, कॉपी एडिटर : नवल)
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