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आयोग को संवैधानिक अधिकार तो मिला अब पिछड़ों को न्‍यायपालिका में भी मिले आरक्षण

केंद्र की मोदी सरकार ने पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक अधिकार देने के अपने वादे को पूरा किया। लेकिन विपक्ष के हमले कम नहीं हुए हैं। ओबीसी को लेकर कई और मांगें राज्यसभा में तब उठाई गईं जब विधेयक को राज्यसभा में पेश किया गया। फारवर्ड प्रेस की खबर :

 पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा देने के‍ विधेयक पर हुई चर्चा में राज्‍य सभा सदस्‍यों की राय

भले ही यह भाजपा की चुनावी राजनीति का हिस्सा हो, लेकिन भाजपानीत केंद्र सरकार ने संसद के मानसून सत्र में एक के बाद एक कई ऐसे पहल किये हैं जिनका इंतजार ओबीसी, दलित और आदिवासियों को लंबे समय से था। मसलन लंबे समय से अधर में लटके राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा देने से संबंधित 123वें संविधान संशोधन विधेयक पर बीते 6 अगस्त 2018 को संसद ने पारित कर दिया। राज्‍यसभा ने इसे सर्वसम्‍मति से पारित किया, जबकि लोकसभा इसे पहले ही पारित कर चुकी है। राज्‍यसभा में चर्चा के दौरान कई नेताओं ने न्‍यायपालिका में भी आरक्षण की मांग की। अन्य मांगों में पिछड़ा वर्ग की तर्ज पर राष्ट्रीय स्तर पर अति पिछड़ा वर्ग आयोग बनाने की मांग भी की गयी।

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पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक अधिकार दिये जाने वाले विधेयक को लेकर राज्यसभा में अपना पक्ष रखते सपा सांसद राम गोपाल यादव

समाजवादी पार्टी के रामगोपाल गोपाल यादव ने कहा कि देश में सामाजिक रूप से पिछड़े लोगों को आरक्षण से वंचित करने का काम अदालतें करती हैं, इसलिए पहले आरक्षण न्यायपालिका में लागू किया जाना चाहिए। देश में हर जाति को उसकी आबादी के हिसाब से आरक्षण दे दिया जाना चाहिए, तब आरक्षण को लेकर विवाद ही ख़त्म हो जायेगा। हमें आशंका है कि इस विधेयक के कानून बनने से अन्य पिछड़ा वर्ग पर होने वाले अत्याचार रुक नहीं पाएंगे, क्योंकि आप कितने भी आयोग बना लें, न्यायपालिका के निर्णय इसे बदल देंगे। उच्चतम न्यायालय ने यह व्यवस्था दी है कि अगर आरक्षित वर्ग का कोई उम्मीदवार मेरिट लिस्ट में भी टॉप करता है तो उसे आरक्षित वर्ग में ही नौकरी मिलेगी, न कि सामान्य वर्ग में। इसका मतलब यह हुआ कि देश की 85 प्रतिशत आबादी को तो 49.5 प्रतिशत तक ही आरक्षण मिलेगा जबकि देश के 15 प्रतिशत वर्ग को 50 प्रतिशत आरक्षण मिलेगा।  आरक्षित वर्ग का कोई अखिल भारतीय प्रशासनिक सेवा में चुन भी लिया जाता है तो उसे प्रशिक्षण के लिए भेजा नहीं जाता।

वहीं कांग्रेसी सांसद बी. के. हरिप्रसाद ने राष्‍ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग में एक महिला को सदस्य बनाने के प्रावधान का स्वागत किया, लेकिन यह भी कहा कि भारतीय जनता पार्टी तो आरक्षण का विरोध करती है। इस देश में आरक्षण को लागू करने का काम कांग्रेस ने किया है। जबकि भाजपा के छत्रपति समभा जी  ने  कहा कि क्षत्रपति साहू जी महाराज ने आज से 172 साल पहले पहली बार देश में आरक्षण को लागू किया था, उसमें मराठा भी शामिल थे, लेकिन बाद में महाराष्ट्र में मराठों को आरक्षण से वंचित कर दिया गया, अब फिर मराठा आरक्षण की मांग कर रहे हैं।

भारतीय जनता पार्टी के भूपेन्द्र यादव ने कहा कि पिछड़े वर्ग के लोग आर्थिक और शैक्षणिक रुप से पिछड़े हुए हैं, जिन्हें समाज की मुख्य धारा में शामिल किये जाने की जरुरत है। देश भर में करीब 4800 जातियां पिछड़े वर्ग में शामिल हैं, इनमें से 150 जातियां सम्पन्न हो सकती है। भाजपा समतामूलक समाज की स्थापना करना चाहती है और इसी को ध्यान में रख कर सबका साथ सबका विकास का नारा दिया गया है । आजादी के 70 साल बाद भी कई राज्यों में पिछड़े वर्गो को 27 प्रतिशत आरक्षण नहीं दिया गया है। वहीं राष्ट्रीय जनता दल के मनोज कुमार झा ने जातिगत जनगणना की रिपोर्ट का सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि समता मूलक समाज के निर्माण के लिए जनगणना के दौरान जातियों के सामाजिक आर्थिक स्थिति के आकड़ों को इकट्ठा किया जाना चाहिए ।

जबकि जनता दल यूनाइटेड के राम चंद्र प्रसाद सिंह ने कहा कि पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा देने का प्रस्ताव  25 वर्षों से लंबित था और अब तक सत्तारूद्ध दलों ने इस पर ध्यान नहीं दिया। पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा दिया जा रहा है, यह अच्छी बात है लेकिन अति पिछड़ा वर्ग के लिए भी इसी तरह का आयोग होना चाहिए।  केन्द्रीय मंत्री एवं आरपीआई (अठावले) के प्रमुख रामदास अठावले ने कहा कि देश की आबादी का 52 फीसदी हिस्सा के लिए इस आयोग को संवैधानिक दर्जा दिया जा रहा है। 28 वर्ष पहले पिछड़ा वर्ग को आरक्षण दिया गया था, लेकिन उसके बाद आयोग को संवैधानिक दर्जा देने की कोशिश नहीं की गयी, जिसके कारण इस वर्ग को इतनी लंबी अवधि तक इंतजार करना पड़ा है।

(कॉपी एडिटर : एफपी डेस्क)


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