अफवाह और पुलिस की लापरवाही ने हाथीकान पूड़ी (हाथी के कान के आकार की बड़ी और नर्म पूड़ी),कटोरी मीट, खैनी, गुड़ और गुड़ की लड्डू के लिए मशहूर बिहार के भोजपुर जिले के बिहियां की धरती बीते 20 अगस्त 2018 को शर्मसार हो गयी जब नट (अनुसूचित जाति) की एक अधेड़ महिला को नंगाकर घुमाया गया। उन्मादी, ‘अनियंत्रित’ और असामाजिक टोली कानून को ताक पर रखकर तांडव मचाती रही और दो-दो थानों की पुलिस आपस में सीमा विवाद में लड़ते रहे। वैसे, इस मुद्दे पर अपने फायदे के हिसाब से नेता गण राजनीति कर रहे हैं तथा तीन दिन से एक दूसरे के चेहरे पर कीचड़ फेंक रहे हैं।
भोजपुर के शाहपुर थाना क्षेत्र अंर्तगत बहोरनपुर गांव निवासी इंटर के छात्र विमलेश कुमार साह की लाश बिहिंया बाजार रेलवे स्टेशन के बगल में पटरी के पास 19 अगस्त 2018 दोपहर में किसी शख्स को दिखाई पड़ती है। उसके शोर मचाने पर अगल-बगल रहने वाले कुछ लोग जुटते हैं। उन्हीं के बीच से किसी ने अफवाह उड़ायी कि मृतक का ‘प्राइवेट पार्ट’ गायब है।

बिहियां रेलवे स्टेशन के सटे उत्तर के इलाके में नट जाति के कई परिवार पिछले 10-12 वर्षों से घर बनाकर निवास करते हैं। इन गरीब परिवारों का मुख्य पेशा शादी-ब्याह में नाच गान करना है। पीड़ित अधेड़ महिला बतौर मालकिन नाच पार्टी का संचालन करती है। इन्हीं लोगों के इलाके में छोटा सा होटल है जो ‘कटोरी मीट’ के लिए प्रसिद्ध है। दूर दराज से मीट प्रेमी यहां आते हैं।
मृतक के प्राईवेट पार्ट गायब होने की अफवाह जंगल में लगी आग की तरह बाजार में फैल गयी। भीड़ उग्र हो जाती है। भीड़ से समाज द्वारा चिन्हित एक कथित सामाजिक कार्यकर्ता की आवाज वातावरण में गुंजती हैं कि ‘भाईयों, प्राईवेट पार्ट काटने का काम फलां महिला ने किया है। मैं इसे जानता हूं। वर्षों से यही काम करते आ रही है। उन्मादी और क्रोधित भीड़ मानों यही सुनना चाहती थी। बिना विचार किए महिला के आवास पर भीड़ अटैक किया। निर्दयतापूर्वक उसके बाल पकड़कर उसे बाहर लाया गया और नग्न करके भीड़ बाजार में घुमाती रही। मौके पर मौजूद पुलिस असहाय बनकर तमाशा देखती रही।
बहुजन विमर्श को विस्तार देतीं फारवर्ड प्रेस की पुस्तकें
महिला को नग्न घुमाने की घटना घटित नहीं होती अगर स्थानीय पुलिस प्रशासन ने अपने कर्तव्य का पालन किया होता। विमलेश कुमार साह की लाश सुबह से ही रेलवे पटरी के पास पड़ी थी। रेलवे पुलिस के जवानों ने लाश को देखा था। जवाबदेही से बचने के लिए जीआरपी ने बिहियां थाने को खबर दे दी। बिहियां थानेदार ने कहा कि जहां लाश पड़ी है, वह जगह उनके थाना क्षेत्र के अंर्तगत नहीं आता है। इसी तरह की दलील जीआरपी पुलिस वाले भी दे रहे थे।
‘मेरा क्षेत्र’ और ‘तेरा क्षेत्र’ के विवाद में दो थाने उलझ गये, जिसके कारण लाश हटाने में देर हो गई और अफवाहबाज अपना काम सफलता पूर्वक कर-कराके मौके वारदात से चंपत हो गए।
अफवाह ने ही बिहियां कांड से मात्र तीन दिन पहले भोजपुर जिला के सहार थाना अंतर्गत बजरिया गांव में बड़ी घटना को अंजाम दी। गांव के चौकीदार के बेटे की हत्या अज्ञात बइमाशों ने कर दी थी। पुलिस लाश को अपने कब्जे में लेने के लिए घटना स्थल पर पहुंची थी तभी चौकीदार ने स्वयं अफवाह फैला दी कि पुलिस बदमाशों से साठगांठ करके उसके बेटे के शव को लेकर भागने वाली है। हजारों की संख्या में लोग इकठ्ठा होकर पुलिस को पीटने लगे। महिला पुलिस को भी नहीं बख्शा गया। उग्र भीड़ में से किसी ने तमंचे से गोली चला दी जिससे एक दारोगा घायल हो गया। भारी पुलिस दल को लेकर एसपी जब घटना स्थल पर पहुंचे तब स्थिति नियंत्रित हुई।
उसी तरह बीते 17 अगस्तर 2018 को दो पुलिस के जवान ‘कुछ’ पीने और लेने के लिए आरा शहर से सटे बाबू जगजीवन राम के गांव चंदवा की मुसहर टोली पहुंचे। लोगों ने अफवाह फैला दी कि पुलिस की वर्दी में गुंडा आकर महिलाओं से छेड़खानी कर रहे हैं। दर्जनों ग्रामवासी जुट गये और पुलिस वालों की जमकर पिटाई कर दी। बाद में सैकड़ों पुलिस वाले दल-बल के साथ गांव पर धावा बोलकर लोगों की लाठी और डंडे से खूब पिटाई की।

बहरहाल, बिहियां बाजार कांड में पुलिस ने तीन अलग-अलग एफआईआर दर्ज किया है। 15 लोगों को अरेस्ट किया गया है तथा 8 पुलिसकर्मियों को सस्पेंड कर दिया गया है। जिला प्रशासन की तरफ से पीड़ित महिला को बतौर मुआवजा दो लाख रूपये दिए गए हैं। प्रशासन भी मान रही है कि अगर थाने वाले आपस में वारदात की जगह के सवाल पर उलझे नहीं होते तो महिला को नग्न घुमाने वाली शर्मनाक घटना नहीं हुई होती।
उधर इस मामले को लेकर राजनीति भी खूब हो रही है। राजद विधायक भाई वीरेन्द्र मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से सीएम की कुर्सी छोड़ने की मांग कर रहे हैं तो दूसरी तरफ जनता दल यू के प्रवक्ता और पूर्व एमएलसी संजय सिंह आरोप लगा रहे हैं कि बिहियां बाजार कांड में राजद के कार्यकर्ता भी शामिल थे।
(काॅपी संपादन : एफपी डेस्क)
फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्त बहुजन मुद्दों की पुस्तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्य, सस्कृति व सामाजिक-राजनीति की व्यापक समस्याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in
फारवर्ड प्रेस की किताबें किंडल पर प्रिंट की तुलना में सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं। कृपया इन लिंकों पर देखें