बिहार में पटना विश्वविद्यालय को सर्वश्रेष्ठ संस्थान माना जाता है। इसके स्थापना के सौ वर्ष पूरे हो गये हैं। इसका शताब्दी समारोह भी इसी वर्ष धूमधाम से मनाया गया। समारोह में शामिल होने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी आये हुए थे। इस मौके पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पटना विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा देने की मांग की थी, जिसे प्रधानमंत्री ने सिरे से खारिज कर दिया था और उन्होंने कहा कि विश्वस्तरीय विश्वविद्यालय में शामिल होने के लिए केंद्र सरकार सहयोग करेगी। इसके लिए फंड का भी इंतजाम किया गया है। पटना विश्वविद्यालय को उस प्रतिस्पर्धा में शामिल होने की चुनौती को स्वीकार करना चाहिए और इसके लिए आगे बढ़ना चाहिए।
आज भी संसाधनों के मामले में बिहार में सर्वश्रेष्ठ यूनिवर्सिटी है पटना विश्वविद्यालय। लेकिन राज्य सरकार की शिक्षा नीति और शिक्षकों की नियुक्ति में अराजकता के माहौल ने पूरी शिक्षा व्यवस्था को ही चौपट कर दिया है।
808 सृजित पदों में से सिर्फ 296 शिक्षक हैं कार्यरत
बदहाली का आलम यह है कि विश्वविद्यालय में स्नातकोत्तर विभाग और 11 अन्य कॉलेजों के लिए शिक्षकों के 808 पद सृजित हैं। लेकिन विश्वविद्यालय में सिर्फ 296 शिक्षक ही कार्यरत हैं, जबकि शिक्षकों के 512 खाली पड़े हुए हैं। यह स्थिति तब है, जब 2014 में सहायक शिक्षकों के लिए निकाली गयी बहाली के विज्ञापन के बाद शिक्षकों को नियुक्ति हो चुकी है।
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विश्वविद्यालय में शिक्षकों के सृजित पद और कार्यरत शिक्षक
विभाग/कालेज | सृजित पद | कार्यरत शिक्षक |
---|---|---|
स्नातकोत्तर विभाग | 296 | 110 |
साइंस कॉलेज | 112 | 28 |
पटना कॉलेज | 75 | 29 |
बीएन कॉलेज | 153 | 45 |
मगध महिला कॉलेज | 95 | 28 |
पटना वीमेंस कॉलेज | 51 | 25 |
पटना वीमेंस ट्रेनिंग कॉलेज | 12 | 2 |
पटना ट्रेनिंग कॉलेज | 10 | 2 |
पटना लॉ कालेज | 29 | 5 |
कॉलेज ऑफ आर्ट एंड क्राफ्ट | 12 | 11 |
वाणिज्य महाविद्यालय | 18 | 9 |
इंस्टीट्यूट ऑफ साइकलॉजिकल रिसर्च सेंटर | 5 | 2 |

दरअसल बिहार में शिक्षकों की बहाली सरकारी नीति के कारण वर्षों से लंबित रही है। नियमित शिक्षकों के बजाय तदर्थ (एडहोक) शिक्षकों की सेवा ली जा रही है। ऐसी स्थिति में शिक्षकों के रिक्त पड़े पदों की संख्या हर साल बढती जा रही है। इसका खामियाजा भी विश्वविद्यालय, शिक्षा व्यवस्था और छात्रों को भुगतना पड़ रहा है। पटना विश्विद्यालय ने शिक्षा की गुणवत्ता की आड़ में इंटर में छात्रों का नामांकन लेना बंद कर दिया है। स्नातक कक्षाओं में ही छात्र-छात्राओं का नामांकन होता है। लेकिन जहां सृजित पदों की संख्या का करीब 65 फीसदी शिक्षकों पद रिक्त हो तो बेहतर व गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की उम्मीद कैसे की जा सकती है।

इस बारे में राजद के प्रदेश अध्यक्ष और विधान पार्षद रामचंद्र पूर्वे कहते हैं कि नीतीश सरकार में उच्च शिक्षा में बेहतरी की उम्मीद नहीं की जा सकती है। पटना विश्वविद्यालय बिहार का सबसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय है। जब उसमें सहायक शिक्षकों के दो-तिहाई पद खाली हैं तो अन्य विश्वविद्यालयों की हालात को आसानी से समझा जा सकता है। बिना शिक्षक के स्कूलों में पढ़ाई क्या होगी। सरकार ने पूरी तरह शिक्षा जगत का चौपट कर दिया है। इसका खामियाजा पूरा प्रदेश भुगत रहा है।
(कॉपी संपादन : एफपी डेस्क)
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