रिलायंस फाउंडेशन के जिओ इंस्टीट्यूट को उत्कृष्टता का एडवांस में तमगा देने पर उठे सवालों के बीच सरकार ने साफ किया है कि जिओ संस्थान को कोई सरकारी ग्रांट नहीं मिलने जा रही है। संसद के मौजूदा सत्र में मानव संसाधन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा है कि 1000 करोड़ रुपये का सरकारी अनुदान केवल सार्वजनिक क्षेत्र के संस्थानों के लिए है जिनमें आईआईटी जैसे संस्थान हैं। उन्होंने यह भी कहा कि प्रस्तावित जियो संस्थान को केवल आशय-पत्र यानी लेटर ऑफ इंटेट (एलओआई) जारी किया गया है।

एचआरडी मंत्रालय ने आईआईटी दिल्ली, आईआईटी बंबई और आईआईएससी बेंगलोर, मनिपाल एकेडमी ऑफ हायर एजुकेशन, बिट्स पिलानी और जियो इंस्टीट्यूट को उत्कृष्ट संस्थान का दर्जा (इंस्टीट्यूट ऑफ एमिनेंस) देने की घोषणा की थी जिसके बाद सरकार जिओ को लेकर देश के बौद्धिक और अकादमिक बिरादरी के निशाने पर आ गई थी। कांग्रेस ने रिलायंस फाउंडेशन पर आपत्ति जताई थी। कांग्रेस ने कहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने कॉरपोरेट फ्रेंड्स को फायदा पहुंचाने की कोशिश की है। वहीं एचआरडी मंत्रालय ने पूरे मामले पर सफाई देते हुए कहा है कि यूजीसी रेगुलेशन 2017, के क्लॉज 6.1 के मुताबिक इस प्रोजेक्ट में बिल्कुल नए संस्थानों को भी शामिल किया जा सकता है।

जावड़ेकर की सफाई
जावड़ेकर ने कहा कि एन गोपालस्वामी की अध्यक्षता वाली आधिकारिक विशेषज्ञ समिति ने 15 साल के विजन और पांच साल के कार्यान्वयन, अकादमिक, भर्ती, अनुसंधान और प्रशासनिक योजनाओं सहित कई तथ्यों का ‘व्यापक रूप से अध्ययन किया’ जिसके बाद तीन सार्वजनिक और इतने ही निजी क्षेत्रों को स्टेटस प्रदान किया गया। मंत्री ने कहा कि कोई ग्रीनफील्ड विश्वविद्यालय, जो अस्तित्व में नहीं है और उसके भविष्य में आने की योजना है, को उत्कृष्ट स्थान का दर्जा दिया गया। उन्हें तीन साल तक संस्थान की स्थापना संबंधी प्रक्रियाएं को पूरा करने के लिए स्पष्ट दिशानिर्देश के साथ पत्र जारी किया गया है। इसके सत्यापन और निरीक्षण के बाद उन्हें ये स्टेटस दिया जाएगा। लोकसभा में टीएमसी के प्रसून बनर्जी ने पूरा मामला उठाया गया था। मंत्री ने कहा कि इमिनेशन टैग संस्थान के लिए 114 आवेदन मिले थे, जिनमें सार्वजनिक संस्थानों से 74,निजी विश्वविद्यालय से 11 ग्रीनफील्ड श्रेणी से थे। इनमें से सरकार केवल सार्वजनिक संस्थानों को 1000 करोड़ रुपये दे रही है – अर्थात आईआईटी (दिल्ली और बॉम्बे) और आईआईएससी (बेंगलुरु) को। निजी संस्थानों को पैसा नहीं दिया गया। जावड़ेकर ने कहा कि “नवगठित नेशनल टेस्टिंग एजेंसी (एनएटी) राष्ट्रीय स्तर की परीक्षाएं जैसे नेट,एनईईटी, जेईई आयोजित करेगी। उन्होंने कहा कि इन परीक्षाओं को ऑनलाइन नहीं रखा जाएगा, बल्कि केवल “कंप्यूटर-आधारित” किया गया है।

कैसे तय होगी ग्रांट
इससे दो दिन पहले 28 जुलाई को केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने संसद को बताया है, ‘ग्रांट बांटने वाली नई संस्था एचआरडी मंत्रालय नहीं, बल्कि यह शिक्षाविदों की अध्यक्षता में एक स्वतंत्र संस्था होगी।‘ जानकारों का मानना है कि ग्रांट देने वाली प्रस्तावित इकाई को नेशनल असेसमेंट एंड एक्रेडिटेशन काउंसिल की तर्ज पर बनाया जा सकता है। बताते चलें कि देश के उच्च शैक्षणिक संस्थानों की फंडिंग के लिए बन रही एजेंसी काफी हद तक नेशनल असेसमेंट एंड एक्रेडिटेशन काउंसिल (नैक) के मॉडल पर आधारित होगी। नैक एक इंटर-यूनिवर्सिटी सेंटर के तौर ऑटोनॉमस बॉडी के रूप में रजिस्टर्ड है, जो यूजीसी के तहत आती है। यह संस्था स्वतंत्र रूप से काम करती है। फंडिंग एजेंसी के लिए नैक-आधारित मॉडल को सबसे अच्छे विकल्प के रूप में देखा जा रहा है क्योंकि यूजीसी रूल बुक के मुताबिक इसे आसानी से बनाया जा सकता है। साथ ही, इस एजेंसी को सोसायटी एक्ट के तहत रजिस्टर कराने की जगह प्रस्तावित हायर एजुकेशन कमीशन ऑफ इंडिया (एचईसीआई) में एक ऑटोनॉमस बॉडी के तौर पर भी बनाया जा सकता है।
मंत्रालय एचईसीआई को यूजीसी की जगह लाने की तैयारी में है, जिसकी वजह से उसे आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है। एचईसीआई की फंडिंग से जुड़ी सभी शक्तियों को खत्म कर उसे मंत्रालय को देने की मूल योजना की काफी आलोचना हो रही थी। कई लोगों का मानना था कि इससे यूजीसी के दौर की तरह की दोबारा वही सरकारी हस्तक्षेप और लालफीताशाही देखने को मिलेगी। हालांकि मंत्रालय ने इस बारे में तुरंत ही घोषणा करते हुए स्पष्टीकरण दिया कि फंडिंग का अधिकार एक अलग एजेंसी को दिया जाएगा, जो मंत्रालय के हस्तक्षेप से बाहर रहेगी।”
शिक्षा मामलों के जानकार राजीव कुंवर ने कहा है कि नवउदारवाद की नीति को लागू करने का एक सफल तरीका यह रहा है कि पहले उनकी फंडिंग को कम से कमतर किया जाए जिससे उनकी गुणवत्ता खराब हो। इसके बाद गुणवत्ता का सवाल खड़ा कर उन्हें जनता की नजरों में गिराया जाए। फिर अगला कदम उन संस्थानों को निजी हाथों में मुनाफा कमाने के लिए सौंप दिया जाए। यही तरीका स्कूल शिक्षा का रहा, यही फॉर्मूला हॉस्पिटल के निजीकरण के लिए अपनाया गया। अब यही तरीका उच्च शिक्षा के लिए अपनाया जा रहा है।
फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्त बहुजन मुद्दों की पुस्तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्य, सस्कृति व सामाजिक-राजनीति की व्यापक समस्याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in
फारवर्ड प्रेस की किताबें किंडल पर प्रिंट की तुलना में सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं। कृपया इन लिंकों पर देखें