सरकारी नौकरियों में पदोन्नति में आरक्षण अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और ओबीसी की प्रमुख मांग रही है। कई राज्य सरकारों ने इस बारे में प्रावधान भी किया पर उन्होंने एम नागराज बनाम भारत संघ मामले में 2006 में आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को इस रास्ते में रोड़ा बना पाया।

सुप्रीम कोर्ट को अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के साथ साथ ओबीसी को भी नौकरियों में पदोन्नति देने पर गौर करना चाहिए। यह कहना है हरिभाऊ राठौड़ का, जो महाराष्ट्र से कांग्रेस के पूर्व सांसद और वर्तमान में महाराष्ट्र विधान परिषद के सदस्य हैं।

राठौड़ का कहना है कि अनुच्छेद 16 (4) के तहत पदोन्नति में आरक्षण का प्रावधान किया गया है अनुसूचित जातियाँ और जनजातियाँ तो पिछड़ी और कमजोर हैं और इस वजह से उनको पदोन्नति में आरक्षण तो मिलना ही चाहिए। पर वास्तविक मुद्दा ओबीसी को पदोन्नति में आरक्षण का है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट में इसकी चर्चा नहीं हो रही है।
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गौरतलब है कि एम नागराज मामले में 2006 में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने कहा था कि अनुच्छेद 16(4) और बाद में संशोधनों के द्वारा इसमें जो प्रावधान ए और बी जोड़े गए वे कहीं से अनुच्छेद 16(4) की मूल भावना को बदलता नहीं है। इस फैसले में कहा गया था कि राज्यों को अपने स्तर पर पदोन्नति में आरक्षण का प्रावधान करने का अधिकार है पर यह तीन बातों से बंधा होगा – पिछड़ापन, प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता और राज्य प्रशासन की सक्षमता। हरिभाऊ राठौड कहते हैं कि वे ओबीसी आरक्षण के मामले को हर फोरम पर उठाने की कोशिश कर रहे हैं।
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