सामाजिक सद्भावना और सामाजिक न्याय के लिहाज से पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह सरकार ने दो एतिहासिक फैसले लिए हैं। एक, धार्मिक ग्रंथों की सार्वजनिक तौर पर बेअदबी करने वाले को उम्रकैद का प्रावधान और समाज में बराबरी और न्याय और समता मूलक समाज के लिए अनुसूचित जातियों के कर्मियों के लिए पदोन्नति में रिजर्वेशन।
कैबिनेट ने एससी कैटिगरी को पदोन्नति में ग्रुप-ए और बी के लिए 14 प्रतिशत और ग्रुप-सी और डी के लिए 20 प्रतिशत आरक्षण प्रदान करने वाले बिल को विधानसभा में पेश करने की मंजूरी दे दी है। इस बिल के पास हो जाने से भारतीय संविधान की धारा 16 (ए) के मुताबिक पदोन्नतियों में आरक्षण का लाभ 20 फरवरी, 2018 से अमल में लाने के लिए रास्ता साफ हो जाएगा।
दलितों को पदोन्नति में 20 फीसदी आरक्षण
अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के कर्मचारियों को प्रोन्नति में आरक्षण के मामले में सुनवाई कर रही संविधान पीठ ने हाल में ही सवाल उठाया था कि क्या आरक्षण अनन्त काल तक जारी रहना चाहिए? अदालत का मानना था कि शुरुआती स्तर पर आरक्षण देना तार्किक है। मगर यदि कोई आरक्षण के लाभ से राज्य का मुख्य सचिव बनता है तो क्या उसके परिवार को पिछड़ा मानकर आरक्षण का लाभ दिया जाये? आरक्षण का सिद्धांत समाज में हाशिये पर आये उन लोगों के लिये है जो सामाजिक विसंगतियों के चलते खुली प्रतियोगिता का हिस्सा नहीं बन सकते। कोर्ट का तर्क था कि जब आरक्षण में पिछड़े वर्ग के संपन्न लोगों को क्रीमी लेयर के दायरे में लाया जा सकता है तो संपन्न एसटी-एससी वर्ग को क्यों नहीं। इससे पूर्व सुप्रीम कोर्ट को केंद्र सरकार ने बताया था कि वर्ष 2006 में नागराज जजमेंट के चलते अनुसूचित जाति-जनजाति के लोगों को प्रोन्नति में आरक्षण का लाभ नहीं मिल पा रहा है। सरकार की तरफ से अटॉर्नी जनरल ने सदियों से वंचित समाज के मुद्दे की समीक्षा संविधान पीठ में करने की मांग की थी।

पंजाब के एक प्रमुख दैनिक ने कहा है कि दरअसल समाज में स्वस्थ प्रतियोगिता के मद्देनजर इस मुद्दे पर बहस चलती रही है कि सामाजिक व आर्थिक रूप से एक निर्धारित मानक से ऊपर का जीवन स्तर जीने वालों को इस तरह के लाभ नहीं मिलने चाहिए। मगर राजनीतिक दल इस मुद्दे पर स्पष्ट राय देने से बचते रहे हैं, जिसके राजनीतिक निहितार्थ नेतागण आंकते रहे हैं। अदालत में पदोन्नति में आरक्षण का विरोध करने वाले पक्ष की दलील थी कि वास्तविक आंकड़े जुटाये बिना पदोन्नति में आरक्षण देना उचित नहीं है। साथ ही एक बार नौकरी पा लेने के बाद पदोन्नति का आधार योग्यता होना चाहिये।
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दरअसल, नागराज फैसले के अनुसार सरकार एससी व एसटी को पदोन्नति में आरक्षण तभी दे सकती है जब डेटा के आधार पर तय हो कि उनका प्रतिनिधित्व कम है और वो प्रशासन की मजबूती के लिये जरूरी है। वहीं न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ का मानना है कि संतुलन के बिना आरक्षण नहीं हो सकता। राज्यों की जिम्मेदारी महज आरक्षण लागू करना ही नहीं बल्कि संतुलन बनाना भी है।

लगता है अमरिंदर सरकार ने इसी संतुलन को साधने की कोशिश की है। पंजाब के मौजूदा आंकड़ों के मुताबिक यहां ओबीसी जनसंख्या की तादाद 31.3 प्रतिशत, एससी (दलित) की 31.9, अगड़ी जातियां 33 और अन्य 3.8 प्रतिशत हैं। जाहिर है कर्मचारी वर्ग में एक बड़ा तबका पंजाब सरकार के फैसले से न्याय पाने में सक्षम होगा।
ईशनिंदा पर उम्रकैद : यह ध्यान देने योग्य पहलू है कि पिछले कुछ दिनों में ऐसे कई मामले सामने आए थे जब राज्य सरकार ने धर्म अपमान की इस दिशा में सख्त रुख अपनाने पर विवश होना पड़ा है। अपमान करने वाले दोषियों को उम्रकैद की सजा दिलाने के लिए सीआरपीसी और आईपीसी में संशोधन करने को अमरिंदर कैबिनेट ने मंजूर कर दिया।
Our Cabinet has given its nod to several important Bills for enactment in the ensuing Vidhan Sabha session, including SC employees reservation in promotions & constitution of Punjab State Higher Education Council. pic.twitter.com/9Pd27DGG1w
— Capt.Amarinder Singh (@capt_amarinder) August 21, 2018
अपमान पर उम्रकैद की सजा को लेकर इंडियन एक्सप्रेस चंडीगढ़ की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि कैप्टन अमरिंदर पंजाब में पाकिस्तान की तरह का सख्त ईशनिंदा कानून लेकर आए। इसके तहत धार्मिक ग्रंथों की बेअदबी करने पर उम्रकैद मिलेगी। हालांकि अमरिंदर सरकार का कहना है कि सरकार राज्य में बेअदबी की घटनाओं पर लगाम लगाने और सांप्रदायिक सद्भाव कायम रखने के लिए यह कानून लेकर आई है। पंजाब सरकार के एक प्रवक्ता ने बताया कि कैबिनेट ने आईपीसी की धारा 295-ए.ए. जोड़ने को मंजूरी दे दी है, ताकि लोगों की धार्मिक भावनाएं आहत करने की मंशा से गुरु ग्रंथ साहिब, श्रीमद्भगवतगीता, पवित्र कुरान और पवित्र बाइबल को ठेस या नुकसान पहुंचाने वाले या अनादर करने वाले को उम्रकैद की सजा मिल सके। प्रवक्ता ने बताया कि पंजाब विधानसभा के आगामी सत्र में सीआरपीसी (पंजाब संशोधन) विधेयक-2018 और आईपीसी (पंजाब संशोधन) विधेयक-2018 को पेश किया जाएगा। इसके अलावा कैबिनेट ने 14वीं विधानसभा के 12वें सत्र में पारित हो चुके सीआरपीसी (पंजाब संशोधन) विधेयक-2016 और आईपीसी (पंजाब संशोधन) विधेयक-2016 को वापस लेने की भी स्वीकृति दी। सरकार के प्रवक्ता के अनुसार, तीर्थ स्थलों को नुकसान पहुंचाने पर दस साल की कैद का प्रावधान किया गया है। बताया गया कि राज्य में सांप्रदायिक सौहार्द्र बनाए रखने की दिशा में यह महत्वपूर्ण कदम उठाया गया है।
(कॉपी संपादन : एफपी डेस्क)
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