[राज्य सभा के नव निर्वाचित उपसभापति हरिवंश जी का व्यक्तित्व बहुआयामी रहा है। वे मूल रूप से पत्रकार रहे हैं और लिखने-पढने वालों की दुनिया से घनिष्ठ रूप से जुडे रहे हैं, इसलिए देश के सर्वोच्च पदों में से एक के लिए चुने जाने के साथ ही हिंदी में उनसे संबंधित संस्मरणों की बाढ आ गई है। इन संस्मरणों और टिप्पणियों में उनके व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं को उजागर किया जा रहा है। लेकिन उनके व्यक्तित्व का एक पहलू ऐसा भी है, जिससे उन्हें जानने वाले सभी लोग परिचित हैं, लेकिन उस पर उंगली रखना कोई नहीं चाहता। हरिवंश जी के खाते में कई उपलब्धियां और जनपक्षधर कामों की फेहरिस्त दर्ज है। हम उन्हें खारिज नहीं कर रहे लेकिन बीरेंद्र यादव की इस टिप्पणी के माध्यम से उन्हें याद दिलाना चाहते हैं कि जातिवाद एक ऐसा दाग है, जिसे उन जैसे धवल व्यक्तित्व को अब पूरी तरह धो डालना चाहिए। हम उम्मीद करते हैं कि वे सदन में पिछडे, आदिवासी और दलित वर्गों के पक्ष में आवाज उठान वालों को प्रोत्साहित करेंगे तथा इतिहास उन्हें एक श्रेष्ठ पत्रकार, श्रेष्ठ राजनेता और जाति की बेडियों को पार करने वाले मनुष्य के रूप में याद करेगा। – प्रमोद रंजन, प्रबंध संपादक, फारवर्ड प्रेस]

हरिवंश का ‘समाज-वाद’ और प्रभात खबर
बीरेंद्र यादव
हरिबंस नारायण सिंह यानी हरिवंश राज्यसभा के नवनिर्वाचित उपसभापति। उपसभापति के रूप में उनका कार्यकाल 2020 तक होगा। उन्होंने अखबार के कार्यालय से राज्यसभा तक की यात्रा की। निष्कंटक नहीं थी, उनकी सफलता की राह। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के ‘अंधसमर्थक’ होने का आरोप लगा। नीतीश कुमार के सत्ता संभालने के कुछ साल बाद से हर दूसरे साल राज्य सभा के लिए होने वाले चुनाव में जदयू से हरिवंश जी के टिकट मिलने की चर्चा होती थी, लेकिन बात उससे आगे नहीं बढ़ पाती थी। नीतीश का भाजपा से पिंड छूटा तो हरिवंश 2014 में राज्यसभा के लिए चुने गये। वे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की कई यात्राओं के सहयात्री भी रहे। यात्रा की लाइव रिपोर्टिंग में आमजन की भावनाओं में नीतीश का ‘प्रतिबिंब’ दिखाने का पूरा प्रयास किया। उनकी रिपोर्टिंग कई बार राजनीतिक आकांक्षाओं की गवाह बनती भी दिखी।
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हरिवंश जी से हमारी पहली मुलाकात 1996 में हुई थी, जब हम माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल के स्नातक छात्र के रूप में प्रभात खबर रांची में इंटर्नशिप के लिए गये थे। इंटर्नशिप के बाद हम वापस भोपाल चले गये। लेकिन बिहार से कट नहीं पाये थे। 2000 के अंत में हम वापस बिहार लौटे और बिहार के होकर रह गये।

इस दौरान हरिवंश जी और प्रभात खबर को करीब से देखने-समझने का मौका मिला। दो वर्ष प्रभात खबर की ‘दुकानदारी’ भी की। हरिवंश जी ने जब प्रभात खबर का नेतृत्व संभाला था, उस समय रांची एक्सप्रेस से उनका मुकाबला था। इसी दौर में 1991 में चंद्रशेखर के प्रधानमंत्री बनने के बाद हरिवंश जी पीएम के प्रेस सलाहकार बने। यह उनका पहला बड़ा परिचय था। इसका प्रशासनिक व राजनीतिक लाभ हरिवंश जी व प्रभात खबर को मिला। हालांकि प्रभात खबर को नयी ताकत और ऊर्जा देने में उनकी टीम भावना और झारखंड के मुद्दों की लंबी लड़ाई की बड़ी भूमिका रही। उन्होंने झारखंड को लेकर बड़ा आंदोलन खड़ा किया और आदिवासियों के मुद्दों को मजबूती से उठाया।
हरिवंश जी ने मीडिया के क्षेत्र में राजपूत पत्रकारों और राजनेताओं को काफी तरजीह दी और पत्रकारिता में राजपूतवाद के प्रतीक-पुरूष बने। आज विभिन्न मीडिया संस्थानों के शीर्ष पर बैठे राजपूत हरिवंश स्कूल के ही ‘प्रोडक्ट’ हैं। उन्होंने प्रभात खबर के विभिन्न संस्करणों के स्थानीय संपादक बनाने में भी राजपूतों को प्राथमिकता दी। इसके साथ ही अपने अखबार में अन्य पदों पर भी में नियुक्ति में राजपूत को प्राथमिकता देते रहे। हालांकि उन्होंने पिछड़ों को भी प्रभात खबर में मौका दिया।

पिछड़ी जातियों में यादव, कुर्मी, कुशवाहा और बनिया 1990 के बाद तेजी से मीडिया में आने लगे थे। इसकी एक वजह मंडल आंदोलन के बाद उपजी सामाजिक चेतना थी। इस चेतना को भी हरिवंश जी ने मंच दिया और उसे अपने समाजवाद बैनर तले सलीके से भुनाया। इसी प्रकार उन्होंने अपने झारखंड संस्करण में कुछ प्रतिभाशाली आदिवासी युवाओं को भी जगह दी।
उनका प्रभात खबर ‘क्रांतिकारी’ युवाओं को जगह देने के लिए भी चर्चित रहा। हरिवंश इन प्रतिभाशाली युवाओं को नगण्य वेतन पर रख कर कथित ‘उच्च पदों’ पर काम करने का मौका देतेे थे। दरअसल यह नाम मात्र के हर्रे और फिटकरी से चोखा रंग निकालने की खांटी हरिवंशी तकनीक थी, जिसकी मुख्यधारा की हिंदी पत्रकारिता में कोई मिसाल मिलनी कठिन है।
वर्ष 2009 में फारवर्ड प्रेस के मौजूदा प्रबंध संपादक प्रमोद रंजन ने कुछ साथियों के साथ मिलकर बिहार की मीडिया की सामाजिक पृष्ठभूमि का सर्वेक्षण किया था। इस सर्वेक्षण के तहत यह जानने का प्रयास किया था कि गैर सवर्ण जातियों का मीडिया में कितना प्रतिनिधित्व है। सर्वेक्षण में यह देखने की कोशिश की गई थी कि बिहार के विभिन्न अखबारों में ‘फैसला लेने वाले’ शीर्ष 5 पदों पर किस समुदाय के लोग काबिज हैं।
उस सर्वेक्षण में यह तथ्य उभर कर सामने आया था कि हरिवंश जी के ‘प्रधान-संपादकत्व’ वाले प्रभात खबर के संपादकीय विभाग में शीर्ष 5 पदों पर कार्यरत सब के सब लोग उनके स्वजातीय राजपूत ही थे।

गौरतलब है कि पटना से प्रकाशित हिंदुस्तान के 5 शीर्ष पदों में एक कायस्थ और दोराजपूत व दो ब्राह्मण जाति के थे। राष्ट्रीय सहारा में 4 ब्राह्मण और 1 राजपूत थे, जबकि दैनिक जागरण में 4 ब्राह्मण और एक भूमिहार थे। यानी, अन्य अखबार भो गैर-सवर्णों को जगह नहीं दे रहे थे, लेकिन उनमें कम से कम सवर्ण जातियों की विविधता थी। पूर्व प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर ने उनके लिए क्या किया और उन्होंने चंद्रशेखर को इतिहास-पुरुष साबित करने के लिए क्या-क्या किया और करवाया, यह सर्वविदित है। पाठक चंद्रशेखर की जाति भी जानते ही होंगे।

हरिवंश जी एक प्रयोगधर्मी संपादक रहे हैं। नये-नये प्रयोग से उन्हें परहेज नहीं रहा। यही कारण है कि बिहार व झारखंड के बाजार में हिंदुस्तान, दैनिक जागरण व दैनिक भास्कर जैसे ‘बनियों’ का हरिवंश जी मुकाबला करते रहे और अपनी नयी पहचान के साथ डटे रहे।
हरिवंश जी की यह विडंबना ही रही कि जिन-जिन राजपूतों को उन्होंने आगे बढ़ाया, वही बाद में प्रभात खबर को ‘प्रणाम’ करते गये। राजपूतों के विकल्प के रूप में उन्होंने ब्राह्मणों को आगे बढ़ाया और उनके ही दौर में संस्करणों की कमान ब्राह्मणों को सौंपने की प्रक्रिया शुरू हो गयी थी और आज प्रभात खबर के लगभग सभी संस्करणों के स्थानीय संपादक ब्राह्मण ही हैं।
इन दिनों देश में राजनाथ सिंह और वी.के. सिंह के प्रच्छन्न नेतृत्व में राजपूतों के बीच एक पुनरुथानवादी आंदोलन चलाया जा रहा है। करणी सेना, महाराणा प्रताप सेना, राजपूत रेजिमेंट, आदि अनेक संस्थाएं खड़ी हो रहीं हैं, जिनका मानना है कि अंग्रेजों को आज़ादी के समय इस देश को राजपूत राजाओं के हाथ में सौंपना चाहिए था। ये लोकतंत्र को ध्वस्त करने की इच्छा रखने वाले संगठन हैं।
हरिवंश जी के उपरोक्त ‘समाज-वादी’ इतिहास के बावजूद हम यह उम्मीद करते हैं कि भारतीय लोकतंत्र के शीर्ष पर बैठ कर वे इन्हीं ताकतों को प्रश्रय नहीं देंगे।
(कॉपी संपादन : एफपी डेस्क/सिद्धार्थ)
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