रोहिणी आयोग के कार्यकाल विस्तार को कैबिनेट की मिली मंजूरी, एससी/एसटी एक्ट संसद में पारित और ओबीसी छात्रवृत्ति में इजाफे की घोषणा
अगले वर्ष लोकसभा का चुनाव होना है। वर्ष 2014 में ओबीसी के जरिए सफलता का नया रिकार्ड बना सत्ता पर काबिज हुई भाजपा ने इस बार अपने तरकश में एक तीर का इजाफा किया है। अब वह केवल ओबीसी नहीं बल्कि दलितों को भी अपने पाले में लाने को बेताब दिख रही है। इसके कई प्रमाण चल रहे मानसून सत्र में सामने आये हैं।
मसलन केंद्र सरकार ने अन्य पिछड़ी जातियों (ओबीसी) के उपवर्गीय विभाजन के लिए गठित रोहिणी आयोग के कार्यकाल चार महीने के लिए और बढ़ा दिया है। आयोग को तीसरी बार अवधि विस्तार मिला है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल ने आयोग के कार्यकाल के विस्तार के प्रस्ताव को मंजूरी प्रदान कर दी है। आयोग का पिछला कार्यकाल 31 जुलाई को समाप्त हो रहा था। इसी के आलोक में आयोग ने केंद्र सरकार से अवधि विस्तार की आग्रह किया था, जिसे सरकार ने स्वीकार कर लिया है। सरकार ने कहा है कि अब और अवधि विस्तार नहीं मिलेगा और 30 नंबर तक रिपोर्ट हर हाल में सौंप दे। आयोग की अध्यक्ष जी रोहिणी दिल्ली उच्च न्यायालय की पूर्व मुख्य न्यायाधीश रही हैं।

प्राप्त जानकारी के अनुसार, आयोग राज्य सरकार, राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग, विभिन्न सामाजिक संगठन और पिछड़ी जातियों से जुड़े लोगों से गहन चर्चा कर रहा है। आयोग ने उच्च शिक्षा संस्थानों में दाखिल होने वाले अन्य पिछड़ा वर्गों का जातिवार विवरण तथा केंद्र सरकार के विभागों, केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रमों, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों एवं वित्तीय संस्थानों में जातिवार भर्ती का रिकॉर्ड भी मंगाये हैं और उनका अध्ययन कर रहा है। इन आंकड़ों के विश्लेषण के आधार पर अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपेगा।
यह भी पढ़ें : घर बैठे खरीदें फारवर्ड प्रेस की किताबें
अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव में रोहिणी आयोग की रिपोर्ट बड़ा मुद्दा भी बन सकती है। प्रधानमंत्री ने ओबीसी जातियों को भाजपा से जोड़ने की कोशिश के तहत राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा दिलवाया और उसे अधिक शक्ति संपन्न बनाया गया है। वे अब पिछड़ा वर्ग का उपवर्गीय विभाजन कर अतिपिछड़ों को भाजपा के साथ जोड़ने की कोशिश में हैं। भाजपा के रणनीतिकारों का मानना है कि ओबीसी की यादव समेत कुछ जातियों परंपरागतरूप से भाजपा विरोधी रही हैं। भाजपा विरोधी राजनीतिक और सामाजिक धुरी यही कुछ जातियां हैं। उपवर्गीय विभाजन के बाद इन जातियों का ओबीसी में कोटा कम किया जा सकता है।

उल्लेखनीय है कि पांच सदस्यीय रोहिणी आयोग का गठन पिछले साल अक्टूबर महीने में किया गया था। इसका मुख्य उद्देश्य सभी राज्यों की पिछड़ी जातियों के सामाजिक व शैक्षणिक हालत में आ रहे बदलाव का अध्ययन करना है। केंद्रीय सेवाओं और शैक्षणिक संस्थाओं में हिस्सेदारी की जानकारी हासिल करना है। आयोग का गठन संविधान के अनुच्छेद 340 के तहत किया गया है।
पीएमएस (ओबीसी) छात्रवृत्ति योजना तीन वर्षों के लिए बढ़ी
केंद्र सरकार ने अन्य पिछडा वर्ग के छात्रों को दी जाने वाली पोस्ट मैट्रिक छात्रवृति योजना तीन साल के लिए बढ़ा दी है। इसके साथ ही इसके लिए परिवार की सालाना आय की सीमा भी एक लाख से बढाकर डेढ लाख रूपये कर दी गयी है। इसे आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने मंजूरी प्रदान कर दी है।
मंत्रिमंडल ने केन्द्र सरकार की इस छात्रवृति योजना को 2017-18, 2018-19 और 2019-20 में भी जारी रखने के प्रस्ताव का अनुमोदन किया। इस योजना के लिए 3085 करोड रूपये की राशि आवंटित की गयी है, जिसमें से 30 प्रतिशत राशि छात्राओं के लिए और 5 प्रतिशत दिव्यांग छात्रों के लिए होगी। पोस्ट मैट्रिक छात्रवृति योजना (पीएमएस-ओबीसी) देश में ही अध्ययन करने वाले ओबीसी छात्रों के लिए सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय द्वारा 1998-99 से चलायी जा रही है। इसके तहत हर साल करीब 40 लाख ओबीसी छात्रों को दसवीं के बाद अध्ययन जारी रखने में मदद मिलती है।

सरकार ने इस योजना का दायरा बढाने के उद्देश्य से इसमें संशोधन करते हुए देश में ही उच्च शिक्षा हासिल करने वाले उन परिवारों के छात्रों को पोस्ट मैट्रिक छात्रवृति देने का निर्णय लिया है, जिनके परिवार की वार्षिक आमंदनी डेढ लाख रूपये हैं। पहले यह सीमा एक लाख रूपये थी। प्रावधान के अनुसार, छात्रवृत्ति का वितरण आधार से जुड़े बैंक खातों के जरिए किया जाएगा।
एससी-एसटी एक्ट को मिली संसद की मंजूरी
संसद ने बीते 9 अगस्त को अनुसूचित जाति और जनजाति-अत्याचार निवारण संशोधन विधेयक 2018 पारित कर दिया है। राज्यसभा ने इसे ध्वनिमत पारित कर दिया। लोकसभा इसे पहले ही मंजूरी दे चुकी है। इसका उद्देश्य अनुसूचित जाति और जनजाति समुदाय को न्याय देना है। संशोधित विधेयक में दलितों के प्रति अत्याचार करने वालों की गिरफ्तारी के लिए पूर्व अनुमति का प्रावधान हटा दिया गया है।
सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत ने विधेयक पर चर्चा का जवाब देते हुए कहा कि सरकार गरीबों के कल्याण और दलितों के हितों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा कि इस विधेयक में अनुसूचित जातियों और जनजातियों पर अत्याचार से संबंधित मामलों के लिए विशेष अदालतें बनाने का प्रावधान किया गया है। विधेयक में अनुसूचित जाति एवं जनजातियों पर अत्याचार के मामलों में जल्दी सुनवाई के लिए विशेष अदालतों के गठन का प्रावधान किया गया है। उन्होंने कहा कि 14 राज्यों में 195 विशेष अदालतों का गठन किया गया है तथा कुछ राज्यों में जिला एवं सत्र न्यायालय को विशेष अदालत घोषित किया गया है। प्राथमिकी दर्ज किये जाने के दो माह के अंदर मामले की जांच पूरी करने तथा दो माह के अंदर विशेष अदालत में सुनवाई पूरी करने का विधेयक में प्रावधान किया गया है।
फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्त बहुजन मुद्दों की पुस्तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्य, सस्कृति व सामाजिक-राजनीति की व्यापक समस्याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in
फारवर्ड प्रेस की किताबें किंडल पर प्रिंट की तुलना में सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं। कृपया इन लिंकों पर देखें