26 सितंबर 2018 का दिन सुप्रीम कोर्ट के दो अहम फैसले के कारण ऐतिहासिक बन गया। पहले फैसले में संविधान पीठ ने 12 साल पहले दिये अपने फैसले में उदारवादी रुख अपनाते हुए पदोन्नति में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति कर्मियों के आरक्षण का मार्ग प्रशस्त कर दिया। वहीं दूसरे फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने आधार कार्ड को भारतीय नागरिकता का पहचान पत्र तो माना लेकिन केंद्र सरकार को सलाह भी दे दी कि केवल इसी के आधार भारतीय नागरिकों को सभी सुविधाओं से वंचित नहीं किया जा सकता है।
फैसला सुनाते समय जस्टिस सीकरी ने टिप्पणी की, “शिक्षा हमें अंगुठे से सिग्नेचर तक ले गयी और अब तकनीक हमें सिग्नेचर से अंगुठे के निशान तक ले आयी है।”
बताते चलें कि मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के नेतृत्व में पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 38 दिनों तक चली लंबी सुनवाई के बाद 10 मई को इस मामले पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। इस मामले में उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश के.एस. पुत्तास्वामी की याचिका सहित कुल 31 याचिकाएं दायर की गयी थीं। मुख्य आपत्ति डाटा की सुरक्षा और उसके दुरुपयोग को लेकर थी।

सुप्रीम कोर्ट ने बहुमत के आधार पर अपने फैसले में यह माना कि आधार आम आदमी की पहचान है। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट में सरकार का पक्ष रखने वाले महाधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि इस फैसले का असर बहुत दूर तक होगा, क्योंकि आधार बहुत-सी सब्सिडी से जुड़ा है। उन्होंने कहा कि आधार लूट और बरबादी को रोकने में भी कारगर है, जो होती रही हैं। उन्होंने कोर्ट को आश्वस्त किया कि डेटा की सुरक्षा बेहद अहम है, और सरकार यह स्पष्ट कर चुकी है कि वह डेटा की सुरक्षा करेगी।
कोर्ट ने भी माना कि आधार से समाज के बिना पढ़े-लिखे लोगों को पहचान मिली है और आधार का डुप्लीकेट बनाना संभव नहीं है।
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सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान यह माना कि आधार आम आदमी की पहचान है और कहा कि आधार की वजह से निजता हनन के सबूत नहीं मिले हैं। सुप्रीम कोर्ट ने आधार की अनिवार्यता पर फैसला सुनाते हुए आधार की संवैधानिकता कुछ बदलावों के साथ बरकरार रखा।
कोर्ट ने साफ कर दिया कि पैन, सब्सिडी एवं अन्य सरकारी सुविधाओं का उपयोग करते समय लोगों को आधार कार्ड देना अनिवार्य होगा, लेकिन बैंक खाता व मोबाइल को आधार से लिंक करने की अनिवार्यता खत्म करने का फैसला कोर्ट ने सुनाया। कोर्ट ने यह भी कहा कि यूजीसी, सीबीएसई और निफ्ट जैसी संस्थाएं आधार नहीं मांग सकती हैं। इसके अलावा स्कूल भी आधार नहीं मांग सकते हैं।
फैसला सुनाते हुए जस्टिस सीकरी ने कहा कि किसी भी बच्चे को आधार नंबर नहीं होने के कारण लाभ/सुविधाओं से वंचित नहीं किया जा सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट आधार अधिनियम की धारा 57 हटाने का निर्देश देती है। साथ ही यह भी कहा कि अब कोर्ट की अनुमति के बिना आधार का बायोमेट्रिक डेटा किसी एजेंसी को नहीं दिया जाएगा।
(कॉपी संपादन : सिद्धार्थ)
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