बीते 11 सितंबर 2018 को राजस्थान विधानसभा चुनाव के ठीक पहले छात्र संघ चुनावों में भील प्रदेश विद्यार्थी मोर्चा (बीपीवीएम) की दक्षिणी राजस्थान में एकतरफा जीत से आदिवासियों के इरादे स्पष्ट हो गये हैं।
आज से तीन साल पहले जब भील प्रदेश विद्यार्थी मोर्चा का गठन नहीं हुआ था तब यहां भाजपा की छात्र इकाई अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) का बोलबाला हुआ करता था।
भील प्रदेश विद्यार्थी मोर्चा ने डूंगरपुर जिले के चारों महाविद्यालयों में जीत हासिल की। जिले के सबसे बड़े कॉलेज एसबीपी राजकीय महाविद्यालय में अध्यक्ष पद पर बीपीवीएम के दिलीप कलासुआ ने एबीवीपी की सुमित्रा मनात को 812 मतों से हराया। बीवीपीएम से ही उपाध्यक्ष पद के लिए गिरीश परमार, महासचिव पद के लिए मुकेश वरहात, संयुक्त सचिव के रूप में भावना डामोर चुनी गईं। काली बाई कन्या महाविद्यालय में बीपीवीएम की वीना दायमा अध्यक्ष बनीं। उन्होंने एबीवीपी की गीता गरासिया को हराया। बीपीवीएम की ही कल्पना खराड़ी महासचिव, कल्पना डोडियार उपाध्यक्ष तथा मनीषा रोत संयुक्त सचिव चुनी गईं। सागवाड़ा के भीखाभाई भील राजकीय महाविद्यालय में बीवीपीएम के रितेश डिंडोर ने एबीवीपी की लक्ष्मी को हराया। महासचिव नरेश ताबियाड़, उपाध्यक्ष प्रकाश ताबियाड़ व संयुक्त सचिव भूपेश डामोर चुने गए। पीठ के संस्कृत महाविद्यालय में भी बीपीवीएम प्रत्याशी महिपाल पारगी (अध्यक्ष), शिल्पा पारगी (उपाध्यक्ष), गीता डिंडोर (महासचिव) और रामलाल कटारा (स.सचिव) निर्विरोध निर्वाचित हुए।
- तीन साल पहले हुआ भील प्रदेश विद्यार्थी मोर्चा का गठन
- जोर पकड़ रही पृथक भील प्रदेश की मांग
- अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव पर भी पड़ेगा असर
- दक्षिणी राजस्थान के छह जिले हैं आदिवासी बहुल
बताते चलें कि 9 अगस्त, 2018 को यानी विश्व आदिवासी दिवस के मौके पर डूंगरपुर के आदिवासी समाज के छात्र-छात्राओं ने पृथक भील प्रदेश के गठन के नाम पर संकल्प लिया था कि अबकी बार डूंगरपुर में किसी भी कॉलेज में दूसरे गैर आदिवासी संगठनों का एक भी उम्मीदवार नहीं जीतना चाहिए। सबसे चौंकाने वाली बात रही कि सागवाड़ा के भीखाभाई भील राजकीय महाविद्यालय में भी एबीवीपी को हार का मुंह देखना पड़ा जो उसका किला माना जाता है। यहां एबीवीपी को केवल 29 वोट ही प्राप्त हुए।
डूंगरपुर के सभी ब्वाॅय्ज कॉलेज में सभी सीटों पर भील प्रदेश विद्यार्थी मोर्चा लगातार तीसरे वर्ष जीत हासिल की, वहीं सभी गर्ल्स कॉलेज के सभी सीटों पर लगातार दूसरे वर्ष परचम लहराया। ऐसा इन कॉलेजों में पहले कभी नहीं हुआ था।

जबकि उदयपुर जिले में पहली बार छात्र चुनाव में उतरे भील प्रदेश विद्यार्थी मोर्चा को खेरवाडा और झाडोल राजकीय महाविद्यालय में विजय हासिल हुई, जबकि सलूम्बर के हाड़ीरानी महाविद्यालय में दूसरे स्थान पर रहा। बांसवाड़ा जिले में भी पहली बार भील प्रदेश विद्यार्थी मोर्चा ने छात्र चुनाव में भाग लिया और कुशालगढ़ के राजकीय महाविद्यालय पर परचम लहराया।
भील प्रदेश विद्यार्थी मोर्चा इस बार आदिवासी मुद्दों के साथ चुनाव में उतरा था। मोर्चा की मांग थी कि मेवाड़-बागड़ के सभी छात्र-छात्राओं के स्कॉलरशिप 280 रुपए प्रति माह के बजाय 600 रुपए प्रतिमाह दी जाय। अनुसूचित क्षेत्र के महाविद्यालयों में टीएसपी फंड से 2000 रुपया प्रति माह अलग स्कॉलरशिप दिया जाय। इसके अलावा टीएसपी फंड से ही आदिवासी छात्रों के प्रतियोगी परीक्षा के तैयारी हेतु सेंटर खोला जाय, क्योंकि गरीब आदिवासी बच्चे कोटा-जयपुर जाकर तैयारी करने में असमर्थ हैं। उनके मुद्दों में आदिवासी महानायकों बिरसा मुंडा, खाज्या नाइक, राणापुंजा भील, टंट्या मामा, गोविंद गुरु को पाठ्यक्रम में शामिल करने के अलावा भुला दिये गये आदिवासी महानायकों यथा डुंगरपुर की स्थापना करने वाले डूंगर भील, उदयपुर की स्थापना करने वाले उदा खराड़ी, बांसवाड़ा का बांसियां सरपोटा भील, सागवाड़ा तहसील की स्थापना करने वाले खगिया डिंडोर भील, गलियाघोट की स्थापना करने वाले गिलीया डामोर भील, कुशालगढ़ की स्थापना करने वाले कुसला कटारा जैसे अनेक आदिवासी महानायकों के इतिहास, जिन्हें हिंदुत्ववादी शक्तियों ने पुरजोर मिटाने की कोशिश की है, पर शोध कराके पाठ्यक्रम में शामिल कराना शामिल शामिल है।

पृथक भील प्रदेश की लंबे अरसे से मांग करने वाले ‘भील प्रदेश विकास समिति’ के संस्थापक सदस्य कांति रौत कहते हैं कि आदिवासी परिवार विचारधारा के तहत ‘भील प्रदेश विकास समिति’ द्वारा ही ‘भील प्रदेश विद्यार्थी मोर्चा’ और ‘भील प्रदेश आदिवासी कर्मचारी संगठन’ का गठन किया गया है, जिसका मुख्य उद्देश्य आदिवासी इलाकों में पांचवीं अनुसूची, पेसा कानून एवं स्वशासन व्यवस्था को लागू कराना है। डूंगरपुर में हमलोगों का प्रभाव पहले से ही था, लेकिन मेवाड़-वागड़ के अन्य पांच जिलों में भी हम धीरे-धीरे अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। उदयपुर, बांसवाड़ा, राजसमंद, चित्तौड़गढ़ और प्रतापगढ़ में हिंदुत्ववादी शक्तियां बहुत पहले से ही सक्रिय हैं। आर्थिक अभाव के कारण हमलोग इन जिलों में भील प्रदेश विद्यार्थी मोर्चा को सपोर्ट नहीं कर पाये एवं सिर्फ आठ कॉलेजों में ही चुनाव लड़े, जिसमें से सात में सफलता मिली।
डुंगरपुर के ईश्वर रौत कहते हैं कि भील प्रदेश विद्यार्थी मोर्चा की यह जीत निश्चित ही आने वाले विधानसभा चुनाव पर असर डालेगी।
वहीं प्रकाश डामोर कहते हैं कि छात्र चुनाव में भील प्रदेश विद्यार्थी मोर्चा की यह जीत भील प्रदेश की मांग को बल दिया है। 2013 में मानगढ़ के शताब्दी वर्ष के मौके पर भाजपा ने हमलोगों से वादा किया था कि वह सत्ता में आयेगी तो राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के भील आदिवासी बहुल इलाकों को मिलाकर भील प्रदेश का गठन करेगी, लेकिन राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र में भाजपा की ही सत्ता है, भाजपा आदिवासियों से किये वादे को भूल गई है। आगामी विधानसभा चुनाव में आदिवासी भाजपा-कांग्रेस को सबक सिखायेंगे।
अनिल गरसिया कहते हैं कि यहां के आदिवासी बहुत गरीब और अनपढ़ हैं। भील प्रदेश के नाम पर राजनीतिक लोग रोटियां सेंकते हैं और आदिवासियों के वोट लेकर फिर पांच साल बाद अगले चुनाव में ही आते हैं। आगामी विधानसभा चुनाव में यह मांग कितना असर करेगा, नहीं कहा जा सकता, क्योंकि हर चुनाव में तो यह मांग उठती ही है।
ज्ञात हो कि दक्षिणी राजस्थान के मेवाड़-वागड़ क्षेत्र के अंतर्गत आदिवासी बहुल छह जिले– उदयपुर, डूंगरपुर, बांसवाड़ा, प्रतापगढ़, चित्तौड़गढ़ और राजसमंद आते हैं। इन छह जिलों में विधानसभा की 28 सीटें हैं। इनमें 16 सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं। बांसवाड़ा, डूंगरपुर और प्रतापगढ़ ऐसे जिले हैं जिनकी सभी विधानसभा सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं। आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर भारतीय ट्राइबल पार्टी और सीपीएम ने भील प्रदेश के मुद्दे को ही हवा दी है।
(काॅपी संपादन : एफपी डेस्क)
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