गोंड संस्कृति पर हिंदू धर्म व परंपराओं को थोपने के प्रयास किये जा रहे हैं। इसी क्रम में देवशीष राय जैसे कथित बुद्धिजीवी यह कह रहे हैं कि विवेकानंद ने 1877 में महाराष्ट्र के गोंडिया जिले के दरेकसा गांव में पहली भाव समाधि लगायी थी। जबकि 1877 में दरेकसा नामक गांव ही अस्तित्व में नहीं था।
सच तो यह है कि सतपूड़ा सालेटेकरी श्रृंखला[1] में करोडों सालो से कोयावंशीय मानव समूह निवास करता आया है। यह पवित्र भूमि कोयतूर[2] गुरू लिंगो[3] और संगीतकार महायोगी हिरासुका की पावन धर्मभूमि है। इसीलिये पूरे भारत के मूलनिवासी यहां श्रद्धा से आते हैं। इस प्राचीन गोंडवाना भूमि पर कोयतूरों का ही वास रहा। यही लोग इस भूमि के मालिक रहे हैं। इन्हीं की इस इलाके पर सत्ता रही है। इसलिए यह कहना कि यह विवेकानंद का प्रथम भावसमाधि स्थल है और उनकी याद में स्मृति भवन बनाने की सोच गोंड संस्कृति में और गोंड सामाजिक व्यवस्था में जानबूझकर घुसपैठ करने की कोशिश है।
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