जय आदिवासी युवा शक्ति (जयस) ने मध्यप्रदेश के आदिवासी बहुल 80 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा करके आगामी विधानसभा चुनाव को त्रिकोणीय बना दिया है, वहीं दूसरी ओर कुछ आदिवासी संगठनों ने जयस के राजनीतिक कार्यक्रमों से किनारा कर लिया है।
इन आदिवासी संगठनों ने कहा कि न ही हम ‘आदिवासी सरकार’ के विरोधी हैं और न ही हीरालाल अलावा का बहिष्कार कर रहे हैं, लेकिन आगामी विधानसभा चुनाव के लिए हम जयस की किसी भी राजनीतिक गतिविधि का समर्थन भी नहीं कर रहे हैं। इन संगठनों ने जयस की निर्दलीय राजनीति पर शक जताया और कहा, “हमें डर है कहीं जयस कांग्रेस या भाजपा से समझौता न कर ले।” वहीं जयस का कहना है कि सभी आदिवासी हमारे साथ हैं, कोई भी ‘आदिवासी सरकार’ का विरोधी नहीं है।
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आदिवासी एकता परिषद के मध्य प्रदेश अध्यक्ष व आदिवासी मुक्ति संगठन के महासचिव के गजानंद ब्राह्मणे ने फारवर्ड प्रेस को फोन पर बताया कि जयस को हम अभी तक एक सामाजिक संगठन के रुप में जानते रहे हैं। जयस द्वारा उठाये गये पांचवीं अनुसूची, पेसा कानून, वनाधिकार कानून एवं अन्य सामाजिक मुद्दे पर हम हमेशा साथ हैं, लेकिन जयस की किसी भी राजनीतिक गतिविधि का हम समर्थन नहीं करते। श्री ब्राह्मणे ने बताया कि आदिवासी एकता परिषद और आदिवासी मुक्ति संगठन एक सामाजिक संगठन है, जो किसी भी तरह के राजनीतिक गतिविधि से दूर रहता है।
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इसी प्रकार, आदिवासी एकता परिषद के मध्य प्रदेश महासचिव राजेन्द्र बारिया ने कहा कि सवर्ण समाज के लोग तो ‘आदिवासी सरकार’ का विरोध करते ही रहे हैं, हम लोग भी अगर ‘आदिवासी सरकार’ का विरोध करेंगे तो आदिवासी समाज का भला नहीं हो पाएगा। श्री बारिया ने कहा कि जयस अपने राजनीतिक कार्यक्रमों हमारे आदिवासी एकता परिषद का नाम लेता है, इसलिए हम लोगों ने प्रेस नोट जारी करके बताया कि आदिवासी एकता परिषद सामाजिक संगठन है, राजनीतिक नहीं। हीरालाल अलावा के बहिष्कार के मुद्दे पर श्री बारिया ने कहा कि अखबारों ने हमारे बात को तोड़-मरोड़ कर प्रकाशित किया है, किसी भी आदिवासी संगठन ने हीरालाल अलावा का बहिष्कार नहीं किया है।
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लेकिन, आदिवासी कर्मचारी संगठन (आकास) के मध्य प्रदेश अध्यक्ष जगन सोलंकी ने कहा कि “हमारा संगठन सरकारी आदिवासी कर्मचारियों का है, जयस इसे राजनीति से जोड़कर संगठन की छवि को धूमिल कर रहा है।”
आदिवासी छात्र संघ के मध्य प्रदेश उपाध्यक्ष प्रकाश बंदोड़ कहते हैं कि चुनाव में उतरने से पहले डॉ हीरालाल अलावा ने हम लोगों से कोई विचार-विमर्श नहीं किया, लेकिन वे जयस के राजनीतिक कार्यक्रमों में आदिवासी छात्र संघ समेत तमाम आदिवासी संगठनों के समर्थन की बात कहते हैं, इसी बात से हम लोगों को आपत्ति है। आदिवासी संगठनों के कोई भी आदमी व्यक्तिगत रुप से डॉ. अलावा का समर्थन कर सकते हैं, लेकिन संगठन के रुप में हम उनकाे समर्थन नहीं दे रहे हैं। चुनाव में किसको समर्थन देने के सवाल पर श्री बंदोड़ ने बताया कि अभी चुनाव में चार-पांच महीने का वक्त है। जो उम्मीदवार आदिवासी मुद्दे पर चुनाव लड़ेगा, उसका हम समर्थन करेंगे।
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इस बारे में जयस के राष्ट्रीय संरक्षक डॉ. हीरालाल अलावा कहते हैं कि ‘अबकी बार आदिवासी सरकार’ का नारा आदिवासियों के दिल को छूता है। मध्यप्रदेश में आदिवासी मुख्यमंत्री की मांग बहुत पुरानी है, यही कारण है कि लोग ‘अबकी बार आदिवासी सरकार’ का खुला समर्थन कर रहे हैं। वे कहते हैं कि आदिवासी संगठनों के लोग हमारे कार्यक्रमों में आते हैं और अपना परिचय एवं समर्थन संगठन के रुप में ही देते हैं। जयस भी एक सामाजिक संगठन है, जिसका उद्देश्य स्वतंत्र आदिवासी नेतृत्व पैदा करना है। डॉ. अलावा कहते हैं कि आदिवासी राजनीति भाजपा और कांग्रेस की गुलाम हो गयी थी, जिसमें वंशवाद और परिवारवाद हावी हो गया था। लेकिन जयस के जो आदिवासी युवा है वे नये और जोशीले हैं, उन्हें पांचवीं अनुसूची, पेसा कानून, वनाधिकार कानून समेत आदिवासियों के सभी संवैधानिक अधिकारों की जानकारी है। ये आदिवासी युवा कतई भाजपा और कांग्रेस की गुलामी नहीं करेंगे, साथ ही समाज के माध्यम से आने से आदिवासी राजनीति से परिवारवाद और वंशवाद भी खत्म हो जाएगा।
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जयस के इंदौर अध्यक्ष रविराज बघेल कहते हैं कि जो भी आदमी ‘अबकी बार आदिवासी सरकार’ का विरोध कर रहा है, वह भाजपा-कांग्रेस का आदमी है। ‘अबकी बार आदिवासी सरकार’ का विरोध कोई आदिवासी कर ही नहीं सकता, क्योंकि यह आदिवासियों के आत्मसम्मान का मुद्दा है। ‘अबकी बार आदिवासी सरकार’ की मांग आदिवासियों की है, जयस तो इस मुद्दे पर सिर्फ आदिवासियों का सपोर्ट कर रहा है। श्री बघेल कहते हैं कि बड़वानी जिले के भाजपा-कांग्रेस के कुछ प्रभावशाली लोग आदिवासियों में फूट डालने के लिए जयस के कुछ लड़को को प्रलोभन देते हैं एवं भ्रम पैदा करने के उद्देश्य से अखबारों में अनाप-शनाप प्रेस विज्ञप्ति जारी करते हैं। वे कहते हैं कि जयस एक राष्ट्रीय आदिवासी संगठन है, जिसके पूरे देशभर में 15 लाख से अधिक कार्यकर्ता हैं। जयस आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा एवं उनमें नेतृत्व पैदा के लिए दृढ़प्रतिज्ञ है।
(कॉपी-संपादक : प्र. रं)
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