भले ही अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग के कर्मियों को पदोन्नति में आरक्षण मिलने संबंधी बाधाओं को सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने खत्म कर दिया हो, लेकिन अब इसमें क्रीमी लेयर को लागू करने की बात ने एक नयी बहस को जन्म दे दिया है। केंद्र सरकार ने भी मौके का फायदा उठाते हुए एससी-एसटी पर क्रीमी लेयर लागू करने का विचार शुरू कर दिया है। उसने ओबीसी संसदीय समिति को नयी जिम्मेवारी सौंपकर यह विचार करने के लिए कहा गया है कि सरकारी नौकरियों में एससी-एसटी पर क्रीमी लेयर को लागू किया जा सकता है अथवा नहीं।
गौरतलब है कि बीते 26 सितंबर 2018 को संविधान पीठ ने एम. नागराज मामले में 12 साल पहले दिये अपने फैसले की समीक्षा के दौरान एससी-एसटी वर्ग के क्रीमी लेयर में आनेवाले कर्मियों को पदोन्नति में आरक्षण देने पर अपनी रजामंदी दी।

केंद्र सरकार के इस कदम को इस रूप में समझा जा सकता है कि एससी-एसटी एट्रोसिटी एक्ट को लेकर पहले से नाराज चल रहे सवर्ण समाज की नाराजगी अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद और बढ़ेगी। वह इसी बहाने सवर्णों को संदेश देना चाहती है कि वह एससी-एसटी को पदोन्नति में आरक्षण तो देगी लेकिन क्रीमी लेयर थोपने के बाद। वह भी केवल पदोन्नति में ही नहीं नियोजन में भी। जैसे ओबीसी पर 1995 में 77वें संविधान संशोधन से क्रीमी लेयर थोपा गया था।
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यही वजह है कि संविधान पीठ के फैसले को आधार बनाकर अब सरकारी नौकरियों में एससी-एसटी वर्ग के अभ्यर्थियों पर क्रीमी लेयर लागू किये जाने पर केंद्र सरकार विचार कर रही है।
यह फैसला भी भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के एक दिन बाद ही लिया है। इस संबंध में सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्रालय द्वारा बताया गया है कि संसदीय समिति इस बात पर विचार करेगी कि एससी-एसटी वर्ग के अभ्यर्थियों को नौकरी में आरक्षण देने के संदर्भ में क्रीमी लेयर लागू किया जा सकता है या नहीं। जिस संसदीय समिति को यह जिम्मेवारी दी गयी है उसके अध्यक्ष गणेश सिंह हैं।

बताते चलें कि यह संसदीय समिति पहले से ही इस मामले पर विचार कर रही है कि ओबीसी पर लागू किया जाने वाला क्रीमी लेयर कितना तर्कसंगत है। वह इसके विभिन्न आयामों की जांच कर रही है। साथ ही यह समिति जिन मुद्दों पर विचार कर रही है, उनमें एक मुद्दा यह भी है कि सरकारी लोक उपक्रमों की नौकरियों में ओबीसी पर क्रीमी लेयर लागू किया जा सकता है अथवा नहीं।
केंद्र सरकार के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट के संवैधानिक पीठ के इस निष्कर्ष से भी बल मिला है जिसमें उसने 2006 में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश के. जी. बालाकृष्णन के उस फैसले को खारिज कर दिया कि क्रीमी लेयर एससी और एसटी के लिए लागू नहीं किया जा सकता है क्योंकि यह केवल पिछड़ा वर्ग के पहचान के लिए है न कि बराबरी के सिद्धांत को लागू करने के लिए।
(कॉपी संपादन : अशोक झा/सिद्धार्थ)
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