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मध्यप्रदेश से हुआ है ‘सवर्ण-बंद’ का आगाज, जानें कौन-कौन हैं इसके पीछे?

संभवत: यह पहली बार है जब भारत बंद का आह्वान घोषित तौर पर ‘सवर्ण’ समुदाय की ओर से किया गया है। अन्यथा इससे पूर्व भारत का यह सत्ताधारी समुदाय विभिन्न पार्टियों, संगठनों और मुद्दों के क्षद्म वेश में इस प्रकार के आह्वान किया करता था। फारवर्ड प्रेस की रिपोर्ट :

सवर्ण समुदाय ने भारत बंद का आह्वान, एसएसी-एसटी एक्ट के विरोध में किया है

नरेंद्र मोदी की सरकार द्वारा एससी-एसटी एक्ट को संशोधित कर उसे मजबूत बनाए जाने से आरक्षण विरोधी ताकतें बिफर गई हैं। सुप्रीम कोर्ट में सरकार द्वारा  प्रमोशन में आरक्षण की हिमायत किया जाना, ओबीसी की गणना करवाया जाने के फैसले तथा भारतीय जनता पार्टी के संगठनात्मक ढांंचे में पिछडों तथा दलितों के समावेश के फैसले ने सवर्ण तबके की बेचैनी बहुत तेजी से बढाई है। इस क्रम में 6 सितंबर, 2018 को भारत बंद का एलान किया गया है।

इस ऐलान को देखते हुए  मध्यप्रदेश की शिवपुरी, भिंड और छतरपुर में धारा 144 लागू कर दी गई है। भोपाल में 4 सितंबर को राजपूत करणी सेना के बैनर तले एससी-एसटी एक्ट के विरोध में एक बड़ी रैली की गई। यह वही करणी सेना है जो पद्मवत फिल्म के प्रदर्शन के दौरान हिंसा फैला रही थी। रैली का आयोजन कथा वाचक देवकी नंदन ठाकुर ने किया था। माना जा रहा है कि करणी सेना की भारत बंद की ये ललकार मध्य प्रदेश से निकलकर राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी बीजेपी की परेशानी बढ़ा सकती है।

राजपूत करणी सेना की सभा

दरअसल, मध्य प्रदेश की आरक्षण विरोधी ब्रिगेड में करणी सेना 3 सितंबर को ही कूद गई थी। संगठन से जुडे उपद्रवियों ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के जन आशीर्वाद काफिले पर पत्थरबाजी की और 3 सितंबर की देर रात आयोजित एक सभा में चप्पलें भी फेंकी। शिवराज सिंह चौहान की मानें तो पत्थरबाजी और चप्पलें फेंकने की करतूत को कांग्रेसियों ने अंजाम दिया है। मुख्यमंत्री ने कहा कि कांग्रेस उनके खून की प्यासी हो गई है। उन्होंने कहा कि विचारों का संघर्ष चलता था। अलगअलग पार्टियां अपनेअपने कार्यक्रम करती थीं। लेकिन प्रदेश की राजनीति में ऐसा कभी नहीं हुआ। शिवराज ने कहा कि ये ना तो लोकतंत्र के लिए अच्छा है और ही कांग्रेस के लिए। उन्होंने सोनिया गांधी,राहुल गांधी और कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ से पूछा कि वे कांग्रेस को किस दिशा में ले जाना चाहते हैं?

भरी सभा में शिवराज सिंह चौहान पर चप्पल फेंकी गई

सीएम को काले झंडे दिखाए जाने पर बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह ने फारवर्ड प्रेस से कहा कि यह कांग्रेस की बौखलाहट है। राकेश सिंह ने कहा है कि यात्रा को मिल रहे जनसमर्थन से परेशान कांग्रेस की कुंठा इस तरह की घटनाओं से जाहिर हो रही है। हालांकि तथ्य यह है कि इस प्रकार की कार्रवाइयों में  कांग्रेस के साथ-साथ खुद भाजपा के कार्यकर्ता भी बडी संख्या में शामिल हैं। करणी सेना जैसे संगठन पार्टी आधार पर नहीं चलते, बल्कि इनमें विभिन्न पार्टियों के कार्यकर्ता शामिल रहते हैं।

मध्यप्रदेश में सरकारी कर्मचारियों की संस्था सामान्य, पिछड़ा एवं अल्पसंख्यक वर्ग अधिकार कर्मचारी संगठन (सपाक्स) इन दिनों सक्रिय है। इसमें कई अधिकारी भी शामिल हैं। सवर्णों के भारत बंद को हवा देने में यह संगठन भी सक्रिय है। सपाक्स का मुख्य उद्देश्य सरकारी नौकरियों में एवं पदोन्नति में आरक्षण को समाप्त कराना है। संठगन ने अपने उद्देश्यों में अब एससी-एसटी एक्ट को कथित तौर पर ‘तर्कसंगत’ बनवाने का उद्देश्य भी जोड लिया है। यह संगठन पूरी तरह सवर्ण तबके के आने वाले नेताओं के कब्जे में है तथा ओबीसी का प्रतिनिधित्व करने का भी दावा करता है। जबकि सच्चाई यह है कि ओबीसी से आने वाले बहुत कम कर्मचारियों का समर्थन इसे हासिल है। इसे विभिन्न मसलों पर ओबीसी तबके के विरोध का भी सामना करना पड रहा है।

फारवर्ड प्रेस का इनपुट

फारवर्ड प्रेस को विभिन्न जिलों से अलग-अलग इनपुट मिले हैं। हम उनके आधार पर भी साफ साफ कह सकते हैं कि अपनी ही सरकार के खिलाफ धरना प्रदर्शनों में बीजेपी के सवर्ण कार्यकर्ता शामिल हुए तथा सवर्ण हिंदू और मुसलमान गठजोड बनाने की इच्छुक कांग्रेस की शह भी इसे प्राप्त थी। ऐसा पहली बार हुआ है कि पिछडी जाति के आने वाले लोकप्रिय राजनेता शिवराज सिंह चौहान पर भरी सभा में चप्पल फेंकी गईं। उनके वाहन पर पत्थर चले और मध्यप्रदेश के सारे नेता, मंत्री, सासंद सभी अपने कार्यक्रम रद्द कर जनता से मुंह छुपाते फिर रहे हैं। सवर्ण जगह-जगह कह रहे हैं कि जातियों के तुष्टिकरण में बीजेपी जल्दबाजी में आत्मघाती गोल कर बैठी है चप्पल चलने की घटना के बाद शाम होते-होते केंद्रीय मंत्री कलराज मिश्र ने एस-एसटी के खिलाफ बयान देकर बीजेपी में ऐसे घड़े को खुलकर समर्थन दिया।

चुरहट के पास मध्यप्रदेश के सीएम शिवराज सिंह की गाड़ी पर सवर्णों ने पथराव किया

गौरतलब है कि शिवराज सिंह चौहान विभिन्न ब्राह्मणवादी आस्थाओं को सहला कर आरएसएस के नजदीक बने रहने की कोशिश करते रहे हैं, लेकिन चप्पल चलने की घटना के बाद आरएसएस का कोई नेता अब तक उनके पक्ष में नहीं आया है।

हालात यह हो गई है कि  इसके चलते प्रदेश सरकार के मंत्री सार्वजनिक कार्यक्रमों से किनारा कर रहे हैं। सोमवार को खेल एवं युवक कल्याण मंत्री यशोधरा राजे वे अपना शिवपुरी दौरा, तो नव करणीय ऊर्जा मंत्री नारायण सिंह कुशवाहा ने अंबाह का और राज्यमंत्री ललिता यादव ने दतिया का दौरा निरस्त कर दिया। इसी तरह ग्वालियर  ग्रामीण के विधायक भारत सिंह कुशवाह भी इसी के चलते अंबाह में आयोजित समारोह में नहीं पहुंचे। वहीं पिछले दिनों मुरैना में स्वास्थ्य मंत्री रूस्तम सिंह और ग्वालियर में नगरीय विकास मंत्री माया सिंह को सवर्ण समाज के लोगों के विरोध प्रदर्शन का सामना करना पड़ा था जबकि सामान्य प्रशासन मंत्री लाल सिंह आर्य ने अपना भिंड का दौरा कार्यक्रम रद्द कर दिया।

केंद्र में बैठक

इधर तेजी से बदले घटनाक्रम में केंद्र सरकार सवर्ण जातियों की बढ़ती नाराजगी को लेकर चिंता में है। इस सिलसिले में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने 4 सितंबर को देर शाम बैठक की जिसमें सरकार के शीर्ष मंत्रियों में अरुण जेटली, निर्मला सीतारमण, प्रकाश जवाड़ेकर, जेपी नड्डा, रविशंकर प्रसाद, पीयूष गोयल और स्मृति ईरानी शामिल हुए। इसके अलावा बीजेपी सांसद भूपेंद्र यादव, रामलाल भी बुलाए गए। बैठक में इस बात पर चर्चा हुई कि मोदी सरकार की ओर से ओबीसी और दलितों को लेकर किए गए फैसलों से सवर्ण जाति में नाराजगी फैल रही है और इस नाराजगी को कैसे दूर किया जाए। सरकार मानती है कि सवर्णों को मानाने के लिए वह तरीका निकाला जाए जिससे एससी/एसटी और ओबीसी जाति के लोग भी नाराज ना हों।

बहरहाल, हम मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के काफिले की गाड़ी पर पत्थरबाजी करने और सभा में जूते चप्पल फेंकने की दो तरह से आलोचना करते हैं। एक, यह लोकतांत्रिक और संवैधानिक विधानों और मूल्यों के सरासर खिलाफ है, दूसरा, और सबसे ज्यादा कि यह सारा तमाशा दलित, पिछड़े और बहुजन समुदाय के प्रति सवर्णों के सीधे हमले का प्रतीक है।

यह भी गौर किया जाना चाहिए कि संभवत: यह इतिहास में पहली बार है जब भारत बंद का आह्वान घोषित तौर पर ‘सवर्ण’ समुदाय की ओर से किया गया है। अन्यथा इससे पूर्व भारत का यह सत्ताधारी समुदाय विभिन्न पार्टियों, संगठनों और मुद्दों के क्षद्म वेश में इस प्रकार के आह्वान किया करता था। यही कारण है कि वह इस मामले में ओबीसी को भी साथ लेने की कोशिश कर रहा है क्योंकि उसे पता है कि  संपूर्ण भारत तो क्या वे इस देश में एक गांव तक बंद नहीं करवा सकते। वे बस्तियों में आग लगा सकते हैं, गोलियां चलाकर हहाकार मचा सकते हैं लेकिन वे भी जानते हैं कि उनके जातिवाद से पीडित समुदाय उनके आह्वान पर बंद में कतई शामिल नहीं होंगे।

(कॉपी संपादन : सिद्धार्थ)

कॉपी-संशोधित : 5 सितंबर, रात्रि : 11.15


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लेखक के बारे में

कमल चंद्रवंशी

लेखक दिल्ली के एक प्रमुख मीडिया संस्थान में कार्यरत टीवी पत्रकार हैं।

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