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बस्तर में सांस्कृतिक-धार्मिक विवेक की अनूठी लड़ाई

छत्तीसगढ़ के उत्तर बस्तर के इलाके मानपुर निवासी विवेक कुमार को 2015 में पुलिस ने दो साल पहले फेसबुक पर एक पोस्ट को लेकर गिरफ्तार कर लिया था। उन्हें हाईकोर्ट से जमानत लेनी पड़ी। इस क्रम में उनका व्यवसाय प्रभावित हुआ। साथ ही अन्य साथियों की गिरफ्तारी से आंदोलन कमजोर हुआ। लेकिन वे हारे नहीं हैं। बता रही हैं प्रेमा नेगी :

फॉलोअप : महिषासुर-दुर्गा विवाद

महिषासुर दिवस का पहला चर्चित आयोजन वर्ष अक्टूबर 2011 में दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में हुआ था। उसके बाद से हिंसा-मुक्त और समतामूलक भारत का संदेश देने वाला यह आंदोलन बढ़ता ही गया है। आज देश के सैकड़ों कस्बों-गांवों में ब्राह्मणवाद की वर्चस्ववादी  संस्कृति से मुक्ति का यह उत्सव मनाया जाने लगा है। लेकिन इन वर्षों में इससे संबंधित कई अन्य घटनाक्रम भी हुए हैं। कई जगहों पर दुर्गा के खिलाफ टिप्पणी करने पर मुकदमे दर्ज हुए। छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश समेत कई राज्यों में महिषासुर और रावेन के अपमान के खिलाफ शिकायतें दर्ज कराई गई। कुछ कस्बों में दुर्गा के कथित अपमान के खिलाफ प्रदर्शन किए गये तो कुछ जगहों पर महिषासुर के सम्मान में भी बड़ी-बड़ी रैलियां निकाली गईं। ‘महिषासुर-दुर्गा विवाद’ से संबंधित इस फॉलोअप सीरीज में हम उन घटनाओं के पुनरावलोकन के साथ-साथ मौजूदा स्थिति की जानकारी दे रहे हैं। आज पढिए, विवेक कुमार के संघर्ष के बारे में – संपादक


  • प्रेमा नेगी 

छत्तीसगढ़ के उत्तर बस्तर इलाके में रहने वाले पिछड़ों आदिवासियों के लिए काम कर रहे लेखक विवेक कुमार ने 2013 में दशहरे से पहले दुर्गा और महिषासुर को लेकर फेसबुक पर एक टिप्पणी थी, जिसे राज्य में भाजपा की सरकार आने के 2 साल बाद उनकी गिरफ्तारी का आधार बनाया गया। कहा गया कि उनकी इस टिप्पणी से समाज में वैमनस्यता और भेदभाव का माहौल कायम हो रहा है, साथ ही वह हिंदू देवी-देवताओं के बारे में अनर्गल बातचीत भी कर रहे हैं। गौर करने वाली बात है कि उनकी उसी टिप्पणी को आधार बनाकर छत्तीसगढ़ में पुलिस ने 9 लोगों को गिरफ्तार किया, जिन्होंने उसे शेयर किया था।

पिछले 12 सालों से मानपुर और छत्तीसगढ़ में सामाजिक रूप से सक्रिय और सीए की पढाई कर चुके सीमेंट के व्यापारी विवेक कुमार को 2015 में 2013 में की गई एक फेसबुक पोस्ट के लिए 295ए के तहत जेल में डाल दिया गया। ‘दक्षिण कौशल’ अखबार से जुड़े विवेक आदिवासियों तथा दलित-बहुजन आंदोलन से जुड़े हैं। उनके पिता राम सुशील सिंह कांशीराम जी बसपा से जुड़े रहे हैं। कुर्मी जाति से आने वाला उनका परिवार मध्य प्रदेश से छत्तीसगढ़ के राजनांदगाँव आ बसा था, फिलहाल वो रायपुर में बस चुके हैं।

फेसबुक पोस्ट से शुरु हुआ विवाद

पेशे से बड़े सीमेंट व्यवसायियों में शुमार विवेक कुमार बताते हैं, जब 2013 में सोशल मीडिया पर यह टिप्पणी की थी तब जेएनयू में एक प्रोग्राम आयोजित किया गया था जिसमें उदित राज समेत कई राजनेता भी शामिल थे, मगर मुझे नहीं पता कि मेरे किस फेसबुक एकाउंट की टिप्पणी को आधार बनाकर मुझ पर एफआईआर की गई, क्योंकि मेरे दो-तीन एकाउंट थे, जो फेसबुक द्वारा एक के बाद एक एकाउंट ब्लॉक करने की स्थिति में मैंने बनाए थे, तब शेयर लाइक का भी इतना ट्रेंड नहीं था। किसी भी पोस्ट की रिपोर्ट होने पर फेसबुक तुरंत एक्शन लेते हुए ब्लॉक कर देता था, और जिस पोस्ट को लेकर बवाल हुआ वह मैंने जिस एकाउंट पर लिखी थी वह भी ब्लॉक हो चुका था। मेरी पोस्टों पर इससे पहले आरएसएस और शिवसेना वालों ने भी विरोध किया था, मगर बाद में फैक्ट उपलब्ध करवाने पर वो मानते थे कि यह ठीक है। एक बड़े नेता ने तो फोन पर यह भी कहा था आप जिस बात को कह रहे हैं, जिस दिशा में जा रहे हैं, वह ठीक है, मगर मैं इसे इसलिए सही नहीं ठहरा सकता क्योंकि पिछले 30 सालों से मैं जिस विचारधारा-पॉलिटिक्स का सपोर्टर हूं, आपको पब्लिकली सही ठहराते ही वह गलत हो जाएगी।

दैनिक भास्‍कर, जगदलपुर, मार्च, 2016
  • 2013 में दुर्गा-महिषासुर के संबंध में फेसबुक पर पोस्ट को लेकर दो साल बाद 2015 में दर्ज हुआ था विवेक पर मुकदमा

  • हिंदुत्ववादियों ने लगाया था अपमानजनक नारा

  • दलितों-आदिवासियों की शिकायत पर दर्ज हुआ था हिंदुत्ववादियों पर मुकदमा

  • एक आरोपी भाजपा कार्यकर्ता सतीश दुबे की हुई थी गिरफ्तारी

विवेक के मुताबिक 2014 में सरकार बदलने के साथ ही चीजें बिल्कुल बदल गईं। फेसबुक से चीजें वाट्सअप पर शेयर होने लगीं। दुर्गा और महिषासुर वाली पोस्ट को वाट्सअप पर विवेक कुमार के विरोध में खूब प्रसारित किया गया। 9 अगस्त 2014 को इसे ज्यादा हवा तब मिली जब उन्होंने मूलनिवासी अधिकार दिवस मनाया था आदिवासी बहुल इलाके मानपुर जोकि छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र के बॉर्डर पर पड़ता है। यह वही जगह है जहां पर विवेक कुमार समेत तमाम लोगों ने आदिवासियों, वंचितों और दलितों के हक-हकूक के लिए एक मूवमेंट शुरू किया था। उन्होंने उन लोगों के बीच काम करना शुरू किया जो नक्सल और हथियारों में मुक्ति का रास्ता तलाश रहे थे, हिंसा को ही अंतिम उपाय मान रहे थे। इन्हीं लोगों को इन लोगों ने अपने आंदोलन में शामिल किया और समझाया कि हिंसा कोई रास्ता नहीं है और न ही इससे कोई समाधान निकलेगा, लोगों ने इस बात को माना भी।

पत्नी और बच्चे के साथ विवेक कुमार

उसी दौरान भाजपा सरकार ने वहां शिक्षकों के लिए एक कार्यक्रम शुरू किया था बिल्कुल आरएसएस की तर्ज पर उन इलाकों में किस तरह पढ़ाना है। इसके अलावा उन्हें हिंदुत्व के पाठ भी बच्चों को पढ़ाने के लिए कहा जा रहा था। इसका शिक्षक और वहां के लोकल लोग विरोध कर रहे थे, जो हमारे साथ हो गए अपनी बात कहने के लिए। जब चीजें सरकार के मनमुताबिक नहीं हुईं तो प्रशासन की मदद से उन लोगों की सोशल प्रोफाइल पर नजर रखी जाने लगी जो आदिवासियों के बीच काम कर रहे थे। इसी कड़ी में विवेक कुमार की महिषासुर-दुर्गा पर की गई फेसबुक टिप्पणी को वाट्सअप पर वायरल किया गया, ताकि एक माहौल बनाया जा सके।

संघियों ने लगाये थे अपमानजनक नारे

विवेक बताते हैं, फरवरी-मार्च 2015 में मानपुर में काम कर रही आरएसएस की शाखा ने विवेक कुमार की गिरफ्तारी के लिए प्रशासन पर दबाव बनाना और प्रदर्शन करने शुरू किए। इसके लिए पुतला दहन से लेकर 3 दिन तक शहर बंदी तक की गई कि एफआईआर दर्ज कर जल्द से जल्द उन्हें जेल में डालो। मानपुर ही नहीं मोहला विधानसभा से लेकर चौकी शहर को भी इस दौरान संघ-बीजेपी के लोगों ने बंद करवाया। संघ-भाजपा से जुड़े लोग जो विवेक कुमार की गिरफ्तारी की मांग कर रहे थे, प्रदर्शन में उनका दलित-आदिवासी विरोधी चेहरा खुलकर सामने आ गया। प्रदर्शनों में वे नारे लगा रहे थे ‘महिषासुर (भैंसासुर) के औलादों को जूता मारो सालों को’, ‘रामायण-गीता को नहीं मानने वालों को, जूता मारो सालों को’, ‘अबूझमाड़ियो होश में आओ’, ‘राक्षस के औलादों को, जूता मारो सालों को’, जो वीडियो में रिकॉर्ड हो गए।

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मार्च में ही यहां मंडई मेला आयोजित किया जाता है, जिसके लिए भीड़ के मद्देनजर पुलिस चाक-चौबंद होती है। जब विवेक कुमार के खिलाफ माहौल बन रहा था तो भारी संख्या में आदिवासी वहां इकट्ठा थे, जो कि उनके समर्थन में थे। मेले में तनाव न फैल जाए इसलिए पुलिस ने तब विवेक को गिरफ्तार नहीं किया। 28 मार्च 2015 को उन्हें गिरफ्तार किया गया और पुलिस ने दिखाया 29 मार्च 2015। बिना कोर्ट में पेश किए पुलिस ने उन्हें थाने में बिना आफिशियली रिमांड पर रखा।

विवेक कुमार कहते हैं, जब मेरे खिलाफ एफआईआर दर्ज करने और गिरफ्तारी के लिए लगातार प्रदर्शन हो रहे थे तो मैं 10 दिन अंडरग्राउंड भी रहा, मगर उसके बाद मैंने  मेरी गिरफ्तारी की मांग कर रहे दल का नेतृत्व कर रहे उमाकांत तांडिया जो फिलहाल बीजेपी के महामंत्री हैं, को फोन किया। ये खुद शिड्यूल कास्ट से बिलोंग करते हैं। मैंने उनसे कहा कि इस विरोध-प्रदर्शन का कोई मतलब नहीं है। ये वही उमाकांत तांडिया हैं जो तब खुद फर्जी सीबीआई अधिकारी बनकर लोगों को ठगने-लूटने के नाम पर 420 के अंदर 3-4 महीने की जेल काटकर आए थे। वो मेरे पुराने परिचित भी थे, क्योंकि हम दोनों ही मूल रूप से मानपुर के हैं। हमारी कोई दुश्मनी भी नहीं थी, मगर राजनीति के लिए उन्होंने मुझे निशाना बनाया। ये तनाव तब से था जब 2013 में चुनाव हुए थे। हमारे क्लासमेट जो बीजेपी से चुनाव लड़ रहे थे, हमने उनके विरोध में निर्दलीय कैंडिडेट खड़ा किया था। इसी बात की खुंदक उमाकांत को थी कि हमने बजाय उनका साथ देने के किसी और का साथ दिया और लोग मेरे साथ खड़े हैं। उनका मानना था कि हमारे चलते वहां बीजेपी को हारना पड़ा और कांग्रेस का उम्मीदवार जीता। तो जब मेरी गिरफ्तारी का माहौल बन रहा था मैंने उन्हें बताया कि मैं कहीं जाने वाला नहीं हूं, रायपुर वाले घर पर ही हूं, आपको जो करवाना है करवा लीजिए।  मैंने पूरे तथ्यों और इतिहास के साथ अपनी बात को उन्हें बताया। उनसे कहा कि पॉलिटिकली असहमति हो सकती है, मगर जो सही है उसे नहीं झुठलाया जा सकता। महिषासुर दिवस मनाने पर बीजेपी को आदिवासियों की भावनाओं से नहीं खेलना चाहिए। इस बातचीत के बाद ही मेरी गिरफ्तारी हुई, उन्होंने ही पुलिस को मेरे बारे में जानकारी दी होगी।

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हाईकोर्ट से मिली राहत

मगर गिरफ्तारी के बाद विवेक कुमार को यह अंदेशा नहीं था कि जमानत नहीं मिलेगी। गिरफ्तारी 295ए और 66ए के तहत की गई थी, जबकि आईटी एक्ट 66ए धारा खत्म हो चुकी थी तब। जब यह जानकारी उन्होंने पुलिस को दी तो कहा गया कोर्ट अगर इस धारा को हटाना चाहेगी तो हटाएगी। जब उन्होंने गिरफ्तारी के बाद जमानत याचिका फाइल की तो उसे मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी द्वारा खारिज कर दिया गया और उन्हें 3 महीने जेल में बिताने पड़े। गौरतलब है कि उनके मामले में चार्जशीट भी पुलिस द्वारा 60 दिन के बाद पेश की गई। इस दौरान लोअर कोर्ट से भी जमानत याचिका खारिज हुई। हाईकोर्ट में केस पहुंचा तो 3 बार सुनवाई से पहले ही जज उठ गए। इसके अलावा एक बार जज बैठे भी तो थानेदार केस डायरी ही लेकर नहीं पहुंचा। पांचवीं बार में उनकी जमानत याचिका मंजूर हुई।

हिंदुत्ववादियों के पक्ष में खामोश रही पुलिस

विवेक कुमार कहते हैं जेल में रहने के दौरान 2 बड़ी घटनाएं हुईं। एक प्रदर्शन 12 मार्च 2015 को भाजपा के समर्थकों द्वारा आयोजित की गयी जिसमें आदिवासियों और दलितों को अपमानित किया गया। इसके खिलाफ 30 अप्रैल 2015 को दलिताें और आदिवासियों द्वारा मोर्चा निकाला गया जिसमें हजारों की संख्या में लोग शामिल हुए और 12 मार्च के प्रदर्शन के दौरान दलितों और आदिवासियों को अपमानित करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गयी। इसके लिए बड़ी संख्या में लोगों ने पुलिस को शिकायत पत्र सौंपा।

 

जन दबाव में पुलिस को संघ-भाजपा से जुड़े लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करनी पड़ी, मगर बड़ी चालाकी से सबको फरार घोषित कर दिया गया। क्योंकि नारेबाजी करने वाले ज्यादातर लोग बीजेपी-संघ से से जुड़े व्यापारी थे तो 2-4 दिन अपनी दुकानों पर कोई नहीं बैठा, मगर जिस दिन उनकी गिरफ्तारी के लिए प्रदर्शन हुआ था उस दिन सारे आरोपी शहर में मौजूद थे। बावजूद इसके पुलिस ने किसी को नहीं छुआ, क्योंकि मामला सत्ताधारी पार्टी भाजपा से जुड़ा था और आरोपी में से ज्यादातर बीजेपी के पदाधिकारी। यह राजनीतिक दबाव ही था कि वहां पर आईजी, डीआईडी, भारी संख्या में सब इंस्पेक्टर मौजूद होने के बावजूद आरोपियों में से किसी को अरेस्ट नहीं किया गया।

आदिवासी-दलित समुदाय की आस्था को चोट पहुंचाने वाली नारेबाजी करने वाले बीजेपी पदाधिकारियों पर जो एफआईआर दर्ज हुई उसमें भी षडयंत्रपूर्वक कुछ नाम देकर अन्य कर दिया गया, जबकि वीडियो में साफ-साफ देखा जा सकता है कि कौन-कौन अनर्गल नारेबाजी कर रहे थे।

विवेक कुमार कहते हैं कि मेरे जेल से बाहर आने के बाद अनर्गल नारेबाजी मामले में हम लोगों ने कोर्ट में एक परिवाद दायर किया, जिसके बाद एक व्यक्ति सतीश दुबे को अरेस्ट किया गया, जोकि बीजेपी पदाधिकारी थे। इनकी गिरफ्तारी के बाद भी बाकी को फरार बता दिया गया। जब एक बार फिर से बाकी की गिरफ्तारी का दबाव बनाने के लिए कोर्ट में परिवाद दायर किया गया, मगर कुछ नहीं हुआ। ये तब हुआ जब करीब एक हजार आदिवासियों और दलितों ने थाने में एफिडेविट के साथ शिकायत किया था कि इन लोगों ने हमारी आस्था को चोट पहुंचाई है इन्हें गिरफ्तार किया जाए, जबकि वहां पर कुल आबादी ही करीब पांच हजार होगी, मगर इसके बावजूद कोई तवज्जो नहीं दी गई।

भाजपा कार्यकर्ता सतीश दुबे की गिरफ्तारी के 20-25 दिन बाद जब उनकी चार्जशीट फाइल की जानी थी उससे पहले ही उनके पिता की मौत हो गई तो पैरोल पर बाहर आ गए। जबकि नारेबाजी मामले में हाईकोर्ट से सतीश दुबे समेत मंच पर मौजूद सभी संदिग्ध की जमानत खारिज हो चुकी थी। सतीश दुबे के पिता की मौत के बाद आयोजित सभा में सीएम रमन सिंह के बेटे और भाजपा सांसद अभिषेक सिंह समेत तमाम भाजपा के दिग्गज मौजूद थे। इसके बाद फिर पुलिस प्रशासन पर सत्ता का दबाव पड़ा कि सतीश दुबे की दुबारा गिरफ्तारी नहीं होगी। यह माहौल बनाया गया कि सतीश के जेल जाने के सदमे में उनके पिता की मौत हो गई। इनकी चार्जशीट लगभग 62 दिन के बाद पेश की गई। चार्जशीट पेश करने के टाइम में बाकी संदिग्धों यानी अन्य को भी बेल दे दी गई, तभी हाईकोर्ट से सतीश दुबे की बेल भी ग्रांट की गई थी।

महिषासुर के अपमान केविरोध में मूलनिवासी लोग मानपुर में प्रदर्शन करते हुए

हैरत की बात तो यह है कि नारेबाजी प्रकरण में शामिल भाजपा के बड़े पदाधिकारियों को छुआ भी नहीं गया। इसके उलट उनकी गिरफ्तारी की मांग करने और आदिवासियों की लड़ाई लड़ रहे लोगों को जरूर जेलों में ठूंस दिया गया, जो आज भी जेलों में बंद हैं। विवेक कुमार की गिरफ्तारी के बाद दुर्गा-महिषासुर मामले में पुलिस द्वारा 9 गिरफ्तारियां की गईं, जिन्होंने उनकी पोस्ट शेयर की थी।

  • जेल में हिंदुत्ववादियों ने किया था विवेक पर हमला

  • परिजनों को जेल से देते थे धमकियां

  • विवेक के बिजनेस पर पड़ा प्रतिकुल प्रभाव

  • एक करोड़ से अधिक का बकाया मार्केट में फंसा

कभी पुलिस बनाती थी बहाने तो कभी नहीं बैठते थे जज

विवेक कहते हैं केस को लंबा खींचने के लिए मेरी पेशी पिछले लंबे समय से नहीं हो रही है। अंतिम पेशी दिसंबर 2016 में की गई है। हर चौदहवें दिन की पेशी की तारीख मिलती है मुझे और मैं कोर्ट रायपुर से तकरीबन 160 किलोमीटर दूर अंबागढ़ चौकी पहुंचता हूं, मगर पेशी नहीं होती। हर बार ऐसा होता है कि कभी शासन द्वारा मेरे मामले में बनाए गए गवाह नहीं पहुंचते या जज नहीं बैठते या फिर कोई अन्य कारण जिम्मेदार होता है।

गौर करने वाली बात तो यह है कि विवेक कुमार जब जेल में थे, तब भी उनकी सिर्फ एक बार पेशी की गई। इसके लिए तरह-तरह के बहाने बना दिए जाते, जबकि वीडियो कांफ्रेंसिंग की सुविधा भी है।

विवेक बताते हैं कि मेरे जेल में रहने के दौरान भाजपा के कुछ असामाजिक तत्व भी हत्या वगैरह के मामले में जेल में थे। 150 की क्षमता वाली जेल में तब 300 से ज्यादा लोग थे। जेल में मुझे मारने की सुपारी भी दी गई, ताकि आदिवासी-बहुजन डरकर चुप बैठ जाएं और उनका आंदोलन भी थम जाए। धर्मसेना से जुड़े लोगों ने जेल में मुझ पर हमला करवाया था। वे मुझे महिषासुर की औलाद या राक्षस कहते थे। हालांकि जल्द ही मूलनिवासी लोगों से मुझे समर्थन मिल गया, दोनो पक्षों में टकराव की स्थिति बन गई, इसलिए वहाँ वे मुझे शारीरिक रूप से क्षति नहीं पहुंचा सके। लोगों ने मुझे आगाह किया कि आप हमेशा कैमरे की जद में रहें, नहीं तो ये लोग आपका मर्डर कब कर देंगे पता भी नहीं चलेगा। इस मामले में मैंने एसपी और एसडीएम से बात की थी। एसडीएम को तो चिट्ठी भी लिखी थी कि जेल की जांच कराओ। जांच के दौरान उन लोगों के पास से चाकू, तलवार समेत कई हथियार मिले थे, मगर बावजूद इसके कोई एक्शन नहीं लिया गया। जांच होने के बाद मेरा बयान तक मेरी जमानत के 2 महीने बाद लिया गया, बयान के बाद आज तक उस मामले में कोई कार्रवाई नहीं हुई है। मोबाइल जेल में एलाउड नहीं होता, मगर उन लोगों के पास से 25-30 मोबाइल मिले। हमारे मामले में यह था कि अखबार तक सेंसर होकर आता था।  

पत्नी के साथ विवेक कुमार

जेल से विवेक के परिजनों को दी जाती थी धमकियां

जेल के अंदर से विवेक कुमार के घर में ये भाजपा समर्थक फोन करके तमाम तरह की धमकियां देते थे। उनका दुस्साहस कितना बढ़ा हुआ था इसे इसी बात से समझा जा सकता है कि विवेक के वकील तक को केस न लेने के लिए धमकाया गया। मीडिया तक शासन-प्रशासन के इशारे पर काम कर रहा था। आदिवासियों ने जब नारेबाजी के खिलाफ हजारों की संख्या मे जुटकर भाजपा-संघ कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी की मांग की और वहां पूरे जिले की पुलिस इकट्ठा थी तब इस बारे में किसी अखबार ने एक लाइन नहीं लिखा।

एक करोड़ से अधिक का बकाया रिकवर नहीं

इस बीच विवेक कुमार के व्यवसाय पर बड़ा असर पड़ा है। पहले उनके पास दो रिटेल काउंटर थे, लेकिन अब केवल एक बचा है। उस पर भी एक करोड़ रुपए से अधिक का भुगतान मार्केट में फंसा है। विवेक के मुताबिक चूंकि हमारी पिछड़ी कम्युनिटी में आमतौर पर बड़े बिजनैसमैन नहीं होते, बनिये या ब्राहमण ही ज्यादातर व्यापार करते हैं, जो ज्यादातर बीजेपी की सेवा में हैं। मेरे देनदारों में ज्यादातर भाजपाई हैं, और सरकार उनकी है, इसलिए उनके खिलाफ तो एफआईआर भी दर्ज नहीं होगी।

परिस्थितियां विषम लेकिन जारी रहेगा हमारा संघर्ष

विवेक बताते हैं कि पुलिस ने लगातार दमनात्मक कार्रवाईयां कर पूरे इलाके में दहशत फैला रखा है। हाल के दिनों में पत्थलगड़ी आंदोलन को दबाने के क्रम में उसने एक दर्जन से अधिक मुखर आदिवासी नेताओं को गिरफ्तार कर जन सुरक्षा कानून के तहत जेल भेज दिया है। इसके अलावा हाल ही में करीब 15 दिन पहले हिंदुत्वादियों ने एक बुजुर्ग आदिवासी सामाजिक कार्यकर्ता तुलाबी दादा की हत्या धोखे से कर दी। इन सबके कारण मानपुर के इलाके में स्थितियां विषम हैं। लेकिन वे हमारा हौसला नहीं तोड़ सके हैं। अस्मिता और आत्मसम्मान की लड़ाई जो शुरु हुई  थी, अब घर-घर उसका संदेश जा चुका है। उन्होंने कहा कि इस बार चूंकि नवंबर में विधानसभा चुनाव होने हैं लिहाजा हिंदुत्ववादी ताकतें भी सक्रिय हैं। वहीं पूरे इलाके में महिषासुर शहादत दिवस मनाने की तैयारियां की जा रही हैं। विवेक मुस्कराते हुए कहते हैं कि वे हमें झूठे मुकदमों में फंसाकर जेल भेज सकते हैं लेकिन वे हमारा हौसला नहीं तोड़ सकते।

(कॉपी संपादन : एफपी डेस्क)


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लेखक के बारे में

प्रेमा नेगी

प्रेमा नेगी 'जनज्वार' की संपादक हैं। उनकी विभिन्न रिर्पोट्स व साहित्यकारों व अकादमिशयनों के उनके द्वारा लिए गये साक्षात्कार चर्चित रहे हैं

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