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आदिवासी कर रहे महिषासुर-रावण वध पर रोक लगाने की मांग, अनसुना कर रहे अधिकारी

छत्तीसगढ़ के आदिवासी अपने-अपने इलाके के थाना प्रभारी से लेकर राज्यपाल तक से मांग कर रहे हैं कि रावण-महिषासुर वध के प्रदर्शन पर रोक लगायी जाय क्योंकि वे उनके पुरखे हैं। लेकिन उनकी मांग को सरकारी अधिकारी अनसुना कर रहे हैं। फारवर्ड प्रेस की खबर :

छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग के कई जिलों में आदिवासी समाज के लोग प्रशासन से मांग कर रहे हैं कि उनके इलाकों में महिषासुर और रावण वध के आयोजन पर रोक लगायी जाय। इसके लिए लोग अपने-अपने इलाके के थाना प्रभारी से लेकर जिलाधिकारी और मुख्यमंत्री तक अपनी शिकायत दर्ज करा रहे हैं। लेकिन सरकारी महकमा अभी भी बहुजन आदिवासियों की इस मांग को एक कान से सुनकर दूसरे कान से अनसुना कर रहा है।

जिन जिलों में यह मांग जोर पकड़ रही है उनमें छत्तीसगढ़ का कवर्धा, सूरजपुर, गरियाबंद, महासमुंद, रायगढ़ और राजनांदगांव आदि शामिल हैं। आदिवासियों द्वारा जिला कलेक्टर को ज्ञापन सौप कर मांग की जा रही है कि दुर्गा प्रतिमा के साथ महिषासुर की प्रतिमा न लगाई जाए तथा रावण दहन पर रोक लगाई जाए। आदिवासियों का कहना है कि महिषासुर आदिवासियों के पूर्वज है, मूलनिवासी समुदाय प्राचीनकाल से महिषासुर अथवा रावण को पूजते आए है।

महिषासुर और रावण वध रोकने के लिए थाना पहुंचे आदिवासी समाज के लोग

अपने सांस्कृतिक अधिकारों के लिए आदिवासियों ने अपने आवेदन में संविधान का उल्लेख भी किया है। उनका कहना है कि संविधान के अनुच्छेद 15 में इस बात का उल्लेख है कि राज्य धर्म, वंश, जाति, लिंग अथवा जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव करने पर प्रशासन प्रतिबन्ध लगाए।

लेकिन इसके बावजूद सरकारी अधिकारियों ने आंख और कान दोनों बंद कर रखा है। मसलन गरियाबंद जिले के एसडीएम निर्भय साहू जो स्वयं भी बहुजन समाज से ही आते हैं, आदिवासियों की बात को खारिज करते हुए कहते हैं कि उनके किसी आवेदन पर कोई विचार नहीं किया जाएगा। वे बहुजन आदिवासियों के सांस्कृतिक और धार्मिक अधिकारों को हिंदू समाज की परंपराओं से कमतर आंकते हैं। हालांकि उन्होंने इस बात की पुष्टि की कि “कुछेक आदिवासी संगठनों ने उन्हें इस बाबत ज्ञापन भेजा है कि रावण और महिषासुर उनके पुरखे हैं। लेकिन हम इस मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं कर सकते हैं। यह धार्मिक मामला है। मैंने इस मामले में जिलाधिकारी महोदय को अवगत करा दिया है। अब जो भी करना है वही करेंगे।”

अखिल भारतीय गोंडवाना महासभा द्वारा छत्तीसगढ़ के राज्यपाल को प्रेषित ज्ञापन

जाहिर तौर पर निर्भय साहू के कथन में विरोधाभास झलकता है। पहले तो वे यह कहते हैं कि आदिवासियों के आवेदन पर कोई विचार नहीं किया जाएगा और फिर कहते हैं कि इस मामले में जिलाधिकारी एक्शन लेंगे। आदिवासी संगठनों की मांग को सरकारी महकमों में ऐसे ही दरकिनार किया जा रहा है।

एक उदाहरण कवर्धा जिले के जिलाधिकारी अविनाश शरण से फारवर्ड प्रेस की बातचीत में सामने आया। उन्होंने सवाल सुनने के बाद पहले तो अनसुना करने की कोशिश की। प्रारंभ में तो उन्होंने इस मामले को हल्के में लिया। बाद में उन्होंने स्वीकार किया कि “आदिवासी समाज द्वारा दिया गया आवेदन मिला है। यह धार्मिक मामला है। किसी प्रकार की कार्रवाई नहीं होगी।

दशहरा में दुर्गा के बजाय संविधान की पूजा करते आदिवासी

सवाल उठता है कि आखिर कार्रवाई क्यों नहीं होगी? क्या आदिवासी जो मांग कर रहे हैं, वह असंवैधानिक है? वे अपनी संस्कृति और अपनी परंपराओं को लेकर मांग कर रहे हैं। जैसे हिंदू समाज के लोगों की अपनी परंपराएं और मान्यतायें हैं, वैसे ही आदिवासियों की भी अपनी समृद्ध परंपरा रही है। लेकिन सरकारी बाबुओं के आंखों पर तो जैसे पर्दा लगा है। महासमुंद के जिलाधिकारी हिम शेखर गुप्ता ने हालांकि यह नहीं कहा कि वे आदिवासियों की मांग पर कोई कार्रवाई नहीं करेंगे। लेकिन उन्होंने यह जरुर कहा कि “मुझे इस बारे में नही पता है। में चेक करवाता हूं।” इतना कहने के साथ ही उन्होंने फोन डिस्कनेक्ट कर दिया।

जाहिर तौर पर जिलाधिकारी महोदय उस सच से कन्नी काट रहे हैं जिसे आदिवासी संगठन केवल कह ही नहीं रहा बल्कि लिखित रूप से और वह भी संविधान की भाषा में रख रहे हैं। मसलन गरियाबंद जिले के मूलनिवासी आदिवासी समाज ने अपने ज्ञापन में स्पष्ट रूप से लिखा है – “मूलनिवासी आदिवासी समाज में महाराज राजा रावण को पेन शक्ति के रुप में आदिकाल से पूजता आ रहा है। इसीलिये आदिवासी समाज द्वारा दशहरा पर रावण दहन का विरोध किया जा रहा है।”

बहुजन विमर्श को विस्तार देतीं फारवर्ड प्रेस की पुस्तकें

गोंडवाना युवा शक्ति संघ जिला गरियाबंद के ज्ञापन में कहा गया है कि रावण दहन करने पर भारतीय दंड संहिता 1860 अंर्तगत 153 (अ) और 295 (अ) के तहत अापराधिक मामला दर्ज किया जाये। इसके लिए संवैधानिक उपबंधों का उल्लेख किया गया है। पांचवीं अनुसूची क्षेत्र में रुढि प्रथा का पालन किया जाये। अनुच्छेद 15(4) के तहत धर्म, जाति, वंश, लिंग अथवा इन कारणों के आधार पर भेदभाव प्रतिबंधित किया जाये।

वहीं आदिवासी विकास परिषद के संरक्षक तथा सर्व आदिवासी समाज जिला गरियाबंद के उपाध्यक्ष महेन्द्र नेताम ने बताया कि “दुर्गा नवमी के दिन हम सभी आदिवासी समाज के लोग महिषासुर और रावण की परम्परानुसार अपने घरों व खेतों में पूजा करते है। नवमी के दिन हमारी सभी आदिवासी बहनें निर्जला उपवास रखते हुये, शाम के वक्त अपने घर भाईयों को बुलाकर पुजा करती हैं और यह कामना करती हैं कि उन्हें रावण के जैसा भाई मिले, जिसने बहन की खातिर अपने राजपाट की भी चिंता नही की थी।”

महेन्द्र नेताम के अनुसार “दशहरा पर रामलीला-नाटक आदि पर हमें कोई आपत्ति नही है पर रावण के पुतले का दहन हमारी भावनाओं के साथ खिलवाड़ है। इस पर रोक लगायी जानी चाहिए।”

(कॉपी संपादन : एफपी डेस्क)


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लेखक के बारे में

तामेश्वर सिन्हा

तामेश्वर सिन्हा छत्तीसगढ़ के स्वतंत्र पत्रकार हैं। इन्होंने आदिवासियों के संघर्ष को अपनी पत्रकारिता का केंद्र बनाया है और वे विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर रिपोर्टिंग करते हैं

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