हिमाचल प्रदेश के सैंकड़ों भेड़पालक बीते सितंबर माह में हुई भारी बर्फबारी के कारण फंसे थे। डेढ़ महीने बाद वे अब सुरक्षित अपने घरों को लौट आए हैं। सवाल उठता है कि आखिर सरकार ने उनकी खबर प्राकृतिक आपदा के आते ही क्यों नहीं ली? क्यों भेड़पालकों की याद सरकार को सबसे अंत में आई?
सरकारी कार्यशैली पर सवालिया निशान लगाने वाली यह घटना कांगड़ा जिले की दुर्गम घाटियों में से एक बड़ा भंगाल की थमसर जोत की है। जहां बर्फबरी के दौरान भेड़पालक अपनी भेड़ों व अन्य मवेशियों के साथ जीवन बचाने के लिए संघर्ष करते रहे। राज्य सरकार ने हालांकि रेस्क्यू आपरेशन चलाया और साढ़े चार हजार से अधिक लोगों की जिंदगियां बचाईं।
रेस्क्यू टीम को भी भेड़पालकों की याद सबसे अंत में क्यों आई? इस संबंध में टीम का कहना है कि राज्य सरकार उससे संपर्क में थी, हमें (टीम से) कहा गया था कि जब जरूरत पड़ेगी, तब उन्हें बुलाया जाएगा।

बताते चलें कि रेस्क्यू टीम 40 डेरों में फंसे करीब 150 से 200 भेड़पालकाें, जिनके पास 10 से 15 हजार भेड़-बकरियों व 250 से 300 घोड़े थे, को लेकर सुरक्षित लौट आई है। हैरानी की बात तो यही है कि जनजातीय विभाग, वूल फेडरेशन और आपदा प्रबंधन बोर्ड ने एक माह से अधिक समय तक इनकी कोई खैर-खबर नहीं ली। और यह भी कि एनडीआरएफ की टीम अब जाकर बड़ा भंगाल का सर्वेक्षण करने निकली हुई है। सरकार की उदासीनता से भेड़पालक दुखी हैं।

प्राकृतिक आपदा में फंसे इन भेड़पालकों को बड़ा भंगाल से मुरालाधार-पलाचक-पनिहारटू पहुंचने के लिए लगातार 12 घंटे चलकर भारी बर्फबारी के बीच दुर्गम रास्ते काे पार करना पड़ा। बचाव टीम के सदस्याें के अनुसार, दिन में यहां का तापमान माइनस 8 डिग्री सेंटीग्रेट रहता था, जाे रात को माइनस 15 डिग्री तक पहुंच जाता था। रेस्क्यू टीम के सदस्यों का कहना है कि इन भेड़पालकों के पास राशन भी नहीं बचा था। साथ ही भारी बर्फबारी से पशुअाें का चारा भी उसमें दब गया था। ऐसे में विकट ठंड पड़ने और भाेजन के न रहने से भेड़पालकाें और मवेशियों दाेनाें का बचना मुश्किल हो गया था। इतना ही नहीं 800 से 1000 मेमने (भेड़ के बच्चे), 80-100 भेड़ें और 30-35 घोड़े इस आपदा में मौत के मुंह में समा गए। इस खतरनाक स्थिति में उन्हें भेड़पालकों और उनके मवेशियों को भगवान भरोसे नहीं छोड़ सकते थे। हालांकि, भेड़पालक भारी बर्फबारी में बचने के उपाय जानते हैं और मवेशियाें काे शरीर पर घने बालाें के कारण ठंड कम महसूस होती है। इस कारण भी ये लाेग इतने दिन बचे रह सके।
रेस्क्यू टीम के पर्वतारोहण केंद्र मैक्लोडगंज के पर्वतारोही मलकीत सिंह कहते हैं कि सात दिनों में बड़ा भंगाल से मुरालाधार, पलाचक और पनिहारटू तक रास्ते में भी भेड़पालकों की 10 से 12 भेड़ें दम तोड़ गईं। दुर्गम पहाड़ियाें में से ऐसे में निकलना मुश्किल हाेता है, उस पर क्षेत्र में हुई मूसलाधार बारिश और बर्फबारी के कारण छह जगह पर लैंडस्लाइड (भूस्खलन) हो गया। आगे निकलना जोखिम था, फिर भी भेड़पालकाें ने हिम्मत नहीं हारी। थमसर जोत के उस पार बड़ा भंगाल की ओर रास्ते के छह पुल टूटने के चलते हमें रावी नदी को जोखिम उठाकर पार करना पड़ा। थमसर जोत को क्रॉस करने के बाद दो पुलियां बहने के कारण भी खड्डों को पार करना पड़ा। जो मवेशियों के लिए जोखिम भरा था।
(कॉपी संपादन : प्रेम बरेलवी/एफपी डेस्क)
फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्त बहुजन मुद्दों की पुस्तकों का प्रकाशक भी है। हमारी किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्य, संस्कृति, सामाज व राजनीति की व्यापक समस्याओं के सूक्ष्म पहलुओं को गहराई से उजागर करती हैं। पुस्तक-सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in
फारवर्ड प्रेस की किताबें किंडल पर प्रिंट की तुलना में सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं। कृपया इन लिंकों पर देखें