तेलंगाना में पेरुमल्ला प्रणय को दिन के उजाले में उस वक्त मौत के घाट उतार दिया गया,जब वह और उनकी गर्भवती पत्नी अमृता वर्षिणी मिरयालगुडा में एक अस्पताल जा रहे थे। प्रणय मला (दलित) जाति से आते थे, जबकि उनकी 21 वर्षीया पत्नी अमृता वर्षिणी वैश्य समुदाय से हैं। नृशंस हत्या की यह वारदात सीसीटीवी कैमरे में दर्ज हो गयी।
हालांकि तेलंगाना पुलिस तमाम तथ्यों के सामने आने के बाद भी खुलकर नहीं बोल रही है कि यह इज्जत के नाम पर की गयी एक हत्या यानी ऑनर किलिंग है। दूसरे ही दिन तेलंगााना की राजधानी हैदराबाद में एक और घटना को अंजाम दिया गया। हैदराबाद में दिन के उजाले में एक व्यस्त सड़क पर एक व्यक्ति ने धारदार हंसिया से एक प्रेमी युगल पर हमला किया। बताया जा रहा है कि इन दोनों घटनाओं में नवविवाहितों पर हमले करवाने वाले इन महिलाओं के पिता थे जो कथित रूप से उनके विवाह के विरुद्ध थे।
दरअसल इज्जत के नाम पर हत्याएं पितृसत्ता वाले समाज में गहरे पैठे जातिवाद का परिणाम हैं, जो महिलाओं की अधीनता के जरिए जीवित रहती है। आम तौर पर ऐसे नृशंस अपराधों को अंजाम देने वालों का मानना है कि पीड़ितों/मृतक जोड़ों ने अपने परिवार और जाति के ‘सम्मान से जुड़े कायदे-कानून’ का उल्लंघन किया। ये हत्याएं ग्रामीण इलाकों और अशिक्षित लोगों तक ही सीमित नहीं हैं। शहरों और पढ़े-लिखे सभ्य परिवारों में भी ऐसी घटनायें अंजाम दी जाती हैं।
जबकि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का सख्त फैसला आ चुका है। सरकारों ने भी ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए नियम-कानून बनाये हैं। लेकिन सच्चाई यह है कि समाज में व्याप्त जातिपरक पहचान और कथित सम्मान के लिए ऑनर किलिंग का दौर जारी है। इसकी सजा प्रेम करने वालों को तो मिल जाती है लेकिन वे खुलेआम घुम रहे होते हैं जो इस प्रकार की नृशंस हत्याओं को अंजाम देते हैं।
हर साल बढ़ती ही जा रही है ऑनर किलिंग की संख्या
ऑनर किलिंग की घटनायें बढ़ती ही जा रही हैं। वर्ष 2014 से 2016 के बीच देश में इज्जत के नाम पर हत्या के 356 मामलों की सूचना लोकसभा को दी गई थी। केंद्रीय गृह राज्यमंत्री हंसराज गंगा राम अहीर ने एक लिखित जवाब में यह जानकारी दी थी। साथ ही उन्होंने यह भी कहा था कि मंत्रालय ने सभी राज्यों को इज्जत के नाम पर हत्या से जुड़े मसलों के समाधान के लिए निवारक, उपचारात्मक और दंडात्मक उपायों को लागू करने की सलाह दी है। अहीर ने कहा, “राष्ट्रीय अपराध अभिलेख ब्यूरो (एनसीआरबी) की ओर से दी गयी अद्यतन जानकारी के अनुसार, वर्ष 2014 में देश में कुल 28 मामले ऐसे दर्ज किये गए थे जिनका मकसद इज्जत के नाम पर हत्या करना था। 2015 में ऐसे 251और 2016 ऐसे 77 मामले दर्ज किये गए। हालांकि ये ऐसी घटनाएं हैं जिनकी रिपोर्ट दर्ज कराई गई है। इसमें वे आंकड़े शामिल नहीं हैं जिनकी जानकारी पुलिस थानों तक नहीं पहुंचती। यह सभी जानते हैं कि स्थानीय समुदाय की स्वीकृति के कारण, खास कर उन ग्रामीण इलाकों में जहां संविधानेतर खाप पंचायतें तालिबानी फैसले सुनाती हैं।

क्या कहता है सुप्रीम कोर्ट?
मई 2011 में,इज्जत के नाम पर हत्याओं पर एक फैसला सुनाते हुए, सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस मार्कण्डेय काटजू और ज्ञान सुधा मिश्रा के दो सदस्यीय खंडपीठ ने कहा, ” इज्जत के नाम पर हत्याओं में कुछ भी इज्जत के लायक नहीं है , और ये सामंती सोच वाले कट्टर लोगों द्वारा की गई बर्बर और क्रूर हत्याओं के सिवाय कुछ नहीं हैं। अब इन बर्बर, सामंती प्रथाओं को खत्म करने का समय है, जो हमारे देश पर कलंक हैं।”
अपनी इस टिप्पणी के साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने सुनवाई अदालतों और उच्च न्यायालयों को निर्देश दिया कि इस प्रकार की हत्याओं को ‘दुर्लभ में दुर्लभतम’ मामलों के रूप में देखा जाए और इनके अपराधियों को मौत की सजा दी जाए। उस समय ऐसा माना गया कि अदालत का यह निर्देश ‘इस प्रकार के अपमानजनक और असभ्य व्यवहार के लिए ‘निवारक’ का काम करेगा।
हालांकि सर्वोच्च न्यायालय के इस कठोर फैसले का भी प्रभाव नहीं दिखता है। इज्जत के नाम पर नौजवान प्रेमी युगलों की हत्याओं का दौर जारी है जो एक-दूसरे का हाथ थाम नये जीवन की शुरुआत कर रहे होते हैं।
इज्जत के नाम पर हत्याएं और समाज
डॉ. आबेडकर ने एक बार कहा था, “मैं किसी समुदाय की प्रगति को महिलाओं द्वारा हासिल की गई प्रगति के पैमाने से मापता हूं।” वे मानते थे कि समाज के स्वास्थ्य का आकलन उसकी महिलाओं की स्थिति से किया जा सकता है। जबकि इज्जत के नाम पर हत्याएं समाज मे महिलाओं की निम्न स्थिति को बताता है। इस प्रकार इज्जत के नाम पर हत्याओं का मूल प्राथमिक रूप से जातिवाद और पितृसत्ता में है। ये दोनों हिंदू धर्म में पैदा हुए और अब भारत और उपमहाद्वीप के अन्य धर्मों में घुस चुके हैं।
आंबेडकर ने ‘हिंदू महिलाओं का उत्थान और पतन’ शीर्षक अपने लेख में इसका व्यापक विवरण प्रस्तुत किया है कि मनु, मनुस्मृति के माध्यम से, किस प्रकार हिंदू समाज में महिलाओं की अधीनता के लिए जिम्मेदार है। उन्होंने लिखा, “बौद्ध धर्म ने महिलाओं को पुरुषों के स्तर पर उठाकर उन्हें अपनाने का प्रयास किया। मनु बौद्ध धर्म का सबसे बड़ा विरोधी था। यह उन अनेक असमानताओं का रहस्य है जिन्हें उसने महिलाओं पर थोपा।” उन्होंने दोहराया, “महिलाओं के पतन के लिए कौन जिम्मेदार था? यह मनु था, हिंदुओं का विधि-दाता।”

आंबेडकर ने मनुस्मृति के उन ‘श्लोकों’ के अर्थ की व्याख्या की जो महिलाओं की अधीनता के सूचक हैं:
अस्वतंत्रा: स्त्रियःकार्योःपुरुषैःस्वैर्द्दिवानिशम्।
विषयेषुचसञ्ज्ञन्त्यःसंस्थाप्याञात्मनोवशे॥
यानी महिलाओं को दिन-रात उनके परिवारों के पुरुषों द्वारा अनिवार्यतः अधीनता में रखा जाना चाहिए और अगर वे उन्हें आनंद के लिए संलग्न करते हैं तो उन्हें निश्चित ही नियंत्रण में रखा जाना चाहिए।
बाल्ये पितुर्वशे तिष्ठेत्पाणिग्राहस्य यौवने।
पुत्राणां भर्तरि प्रेते न भजेत्स्त्री स्वतन्त्रताम्॥
एक स्त्री को अनिवार्य रूप से बचपन में अपने पिता के अधीन, युवावस्था में पति के अधीन और जब पति की मृत्यु हो जाए तब अपने पुत्रों के अधीन रहना चाहिए : एक महिला कभी भी स्वाधीन नहीं होनी चाहिए।
बालया वा युवत्या वा वृद्धया वाऽपि योषिता।
न स्वातन्त्र्येण कर्तव्यं किं चिद् कार्यं गृहेष्वपि॥
एक बालिका द्वारा, एक युवा स्त्री द्वारा, यहां तक कि एक उम्रदराज महिला द्वारा अपने घर में भी स्वाधीन रूप से कुछ भी नहीं किया जाना चाहिए।
नास्ति स्त्रीणां क्रिया मन्त्रैरिति धर्मे व्यवस्थितिः।
निरिन्द्रिया ह्यमन्त्राश्च स्त्रीभ्योऽनृतं इति स्थितिः॥
यानी महिलाओं को वेदों का अध्ययन करने का कोई अधिकार नहीं है। यह इसलिए क्योंकि उनके अनुष्ठान वेद मंत्रों के बिना किये जाते हैं। महिलाओं को धर्म का कोई ज्ञान नहीं है क्योंकि उन्हें वेदों को जानने का कोई अधिकार नहीं है। वेद मंत्रों का उच्चारण करना पाप दूर करने में सहायक है। महिलाएं वेद मंत्र का उच्चारण नहीं कर सकतीं इसलिए वे अशुद्ध/अस्वच्छ और असत्य हैं।
ऊपर दिये गए उद्धरणों से यह स्पष्ट है कि महिलाओं की पराधीनता को धार्मिक स्वीकृति है। आंबेडकर ने इस प्रकार महिलाओं की पराधीनता के पीछे की ब्राह्मणी साजिशों का भंडाफोड़ किया। ब्राह्मणी पितृसत्ता महिलाओं के व्यवहार को नियंत्रित करने के बारे में है। इस नियंत्रण को गंवा देने में शर्म की भावना निहित है। समुदाय शर्म की इस भावना को बढ़ाने और विनियमित करने में शामिल होता है। यह महिलाओं के लिए सामाजिक सांस्कृतिक स्वायत्तता को कोई स्थान नहीं देता।
हाल के दशकों में, महिलाओं की शिक्षा और आर्थिक स्वाधीनता के कारण यह बदलने लगा है। फैसला करने में उनकी भूमिका बढ़ी है। हालांकि जाति व्यवस्था के अनुयायी इन बदलावों को स्वीकार करने के इच्छुक नहीं हैं। इस टकराव ने अक्सर बेहद बुरी सूरत अख्तियार कर ली जिसके परिणामस्वरूप इज्जत के नाम पर हत्याएं हुईं।
जातिवादी व्यवस्था में अनुलोम और प्रतिलोम
संस्कृत ग्रंथों में दो प्रकार के अंतरजातीय विवाहों का उल्लेख है – अनुलोम और प्रतिलोम। अगर महिला निम्न जाति की है तो विवाह अनुलोम है, और अगर वर निम्न जाति का है तो विवाह प्रतिलोम है। ये संस्कृत ग्रंथ अनुलोम विवाह को स्वीकृति देते हैं लेकिन प्रतिलोम को मजबूती से अस्वीकार करते हैं। यहां तक कि किसी ब्राह्मण, क्षत्रिय या वैश्य कन्या का किसी शूद्र लड़के से विवाह, किसी ब्राह्मण कन्या का किसी क्षत्रिय या वैश्य लड़के से विवाह की तुलना में कहीं ज्यादा घृणित है।

इज्जत के नाम पर की गई अधिकतर हत्याएं प्रतिलोम विवाह के मामलों में होती हैं। प्रतिलोम विवाहों का सबसे ज्यादा विरोध होता है क्योंकि ऐसे अंतरजातीय विवाह में महिला की जाति उसके पति की जाति हो जाती है।
जब किसी उच्च जाति की महिला किसी निम्न जाति के पुरुष से विवाह करती है तब उस महिला की अवस्थिति निम्न हो जाती है। यह उस लड़की के परिवार के लिए शर्म की बात समझी जाती है। ऐसे में समुदाय और परिवार इज्जत की झूठी भावना से प्रेरित होकर इस ‘शर्म’ के स्रोत को अर्थात लड़की को खत्म कर देता है। एक उच्च जाति की महिला के साथ एक निम्न जाति के पुरुष का संबंध, उस महिला और पुरुष दोनों के लिए गंभीरतम सजा को आमंत्रित करता है। इससे आगे, ब्राह्मणी पितृसत्ता और जातिवाद ने एक महिला को उसके परिवार के पुरुष सदस्यों और जाति समुदाय की संपत्ति बनाकर सीमित कर दिया है। जब कभी यह संपत्ति किन्हीं अन्य हाथों में, विशेष रूप से एक सवर्ण समुदाय से शूद्र और अतिशूद्र समुदायों ( पिछड़ी जातियों और अनुसूचित जातियों) में जाती है, तब तनाव पैदा होता है। ये हत्याएं उच्च जातियों की ओर से निम्न जातियों को यह चेतावनी देने का काम भी करती हैं कि वे उनकी महिलाओं से दूर रहें।
गैर-हिंदुओं में जातिवाद और इज्जत के नाम पर हत्याएं
जाति और इज्जत के नाम पर हत्याओं की बुराई भारतीय उपमहाद्वीप के अन्य धर्मों में भी घर कर चुकी है। मुस्लिमों के बीच, जैसा कि घोष अंसारी ने उत्तर भारतीय मुस्लिमों के बीच सामाजिक और जातिगत स्तरीकरण पर अपने अध्ययन में दिखलाया है। अशराफ जिनमें कुलीन मुसलमान शामिल हैं, मुस्लिम आप्रवासियों –सैयद, शेख, मुगल या पठान– का और उच्च हिंदू जातियों का वंशज होने का भी दावा करते हैं। फिर अजलाफ हैं, जो जुलाहा और दर्जी जैसी ‘शुद्ध’ पेशेवर जातियों से आते हैं। इस श्रेणीक्रम में सबसे नीचे अरजाल, मेहतर और भंगी जैसी ‘अशुद्ध’ पेशेवर जातियां हैं। सिखों में चार अंतर्विवाही समूह हैं : जाट ( मुख्य रूप से कृषि कार्य से जुड़े और उच्चतम स्थिति वाले ), व्यापारिक जातियां, रामगढ़िया (कारीगर और शुद्ध पेशे वाली अन्य जातियां ) और मजहबी (हिंदू अछूत जातियों से धर्मान्तरित)। ईसाइयों को लेकर केरल और तमिलनाडु में किये गये अध्ययनों ने दिखलाया है कि अछूत समुदायों से धर्मान्तरित पलयजों और सीरियाई ईसाइयों के बीच सामाजिक भेद बरकरार रखा गया है। यहां तक कि बंगाली ईसाइयों को उन कुलनामों का इस्तेमाल करते देखा गया है जो धर्मान्तरण के पहले वाली उनकी जातियों को दर्शाते हैं।
हाल ही में, केरल के कोट्टयम में, 23 वर्षीय दलित ईसाई केविन जोसेफ ने एक समृद्ध ईसाई परिवार से आने वाली 21 वर्षीय नीनू चाको से उनकी परिवार की मर्जी के विरुद्ध विवाह किया। 27 मई 2018 को जोसेफ को कथित रूप से उनके घर से बाहर खींच लिया गया और एक रिश्तेदार के साथ कार में ले जाया गया। उस रिश्तदार ने, जिसे बाद में छोड़ दिया गया था, जोसेफ के माता-पिता और पत्नी को इस घटना के बारे में आगाह किया। अगले दिन, जोसेफ का शव केरल के कोल्लम जिले के थेम्मला के पास एक नाले में मिला। पुलिस ने हत्या के आरोपियों के रूप में नीनू के भाई शानू समेत दस आरोपियों की पहचान की।
इस प्रकार समतावादी सिद्धान्तों पर आधारित धर्म भी जातिवाद और इज्जत के नाम पर हत्याओं से मुक्त नहीं है।
जैसे-जैसे निम्न जातियों की महिलाएं अधिक शिक्षित और स्वाधीन हो रही हैं, जाति व्यवस्था में तनाव बढ़ता जा रहा है। जातिगत सम्मान को अक्सर चुनौती दी जा रही है। पुलिस को समाज की इस प्रवृत्ति को लेकर सतर्क रहने की जरूरत है। अनेक मामलों में, पुलिस अंतरजातीय जोड़ों पर आने वाले खतरों से आगाह किये जाने के बावजूद उनकी सुरक्षा के लिए समुचित उपाय करने में नाकाम रही है। इज्जत के नाम पर हत्याओं को रोकने के लिए अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के अनुरूप एक मजबूत कानून की भी जरूरत है, ताकि अंतरजातीय जोड़े निर्भीक होकर विवाह कर सकें और शेष समाज के लिए एक उदाहरण पेश कर सकें।
(अनुवाद : दिव्या राय, काॅपी संपादन : एफपी डेस्क)
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