पाणी कसं असतं (पानी का प्रकृति) एक मराठी कविता है। इसके लेखक चर्चित कवि दिनकर मनवर हैं। कवि ने रूपक के रूप में पानी का प्रयोग समाज में व्याप्त असमानता की चर्चा के लिए किया है। यद्यपि पानी का वास्तव में कोई रंग नहीं है फिर भी कविता में पानी के रंग पर सवाल उठाया गया है। इसमें समाज में वर्ग, जाति, लिंग और धार्मिक विभाजन के महत्त्वपूर्ण प्रश्नों को उठाया गया है। इस कविता में पानी के रंग और उसकी प्रकृति की तुलना कई वस्तुओं से की गई है। कविता के तीसरे पैराग्राफ में इसकी एक पंक्ति है : किंवा आदिवासी पोरीच्या स्तनासारखा झांबला” (या किसी आदिवासी युवती के स्तन की तरह जामुनी रंग का)। एक आदिवासी युवती के स्तन से पानी की तुलना करना मनवर को महंगा पड़ा। मुंबई विश्वविद्यालय के शिव सेना के छात्र संगठन युवा सेना और छात्रभारती विद्यार्थी सेना (सीवीसी) ने “पाणी कसं असतं” (पानी की प्रकृति) नामक इस कविता पर आपत्ति करते हुए इसको स्नातक (मराठी) के तीसरे साल के पाठ्यक्रम से हटा लिए जाने की मांग की थी। बताते चलें कि युवा सेना के अगुवा आदित्य ठाकरे हैं। इन संगठनों के राजनीतिक दबाव के आगे झुकते हुए सात सदस्यीय बोर्ड ऑफ स्टडीज ने अब इस कविता को पाठ्यक्रम से निकालने का निर्णय लिया है।

दिनकर मनवर मराठी के चर्चित और राज्य सरकार से पुरस्कृृत कवि हैं। उनकी पाणी कसं असतं (पानी का प्रकृति) कविता को हटाने के संदर्भ में विश्वविद्यालय के अधिकारियों का कहना है कि बोर्ड ऑफ स्टडीज इस कविता को हटना नहीं चाहती थी, लेकिन किसी की भावना आहत ने हो और कोई अप्रत्याशित घटना न घटे इस ध्यान में रखकर इस कविता को पाठ्यक्रम से हटाया गया है। बोर्ड ऑफ स्टडीज के सदस्य डॉ. नीलकंठ शेरे का इस कविता के संदर्भ में कहना है कि कविता का अर्थ बहुत ही सुंदर है पर एक विशेष शब्द का प्रयोग आपत्तिजनक हो सकता है। “कवि को रचनात्मक आजादी हो सकती है, बोर्ड ऑफ स्टडीज ने इसको पाठ्यक्रम में रखकर इस विचार का समर्थन किया है,” यह कहना है सीवीएस के सचिन बांसोड़ का।

कविता को टीवाईबीए (मराठी) में इसी अकादमिक वर्ष में शामिल किया किया था। बीओएस के सात सदस्यों ने एकमत से इस कविता को पाठ्यक्रम में शामिल किया था। यह कविता मनवर की पुस्तक “दृश्य नसलेल्या दृश्यत” का हिस्सा है जिसे 2016 में बरशिव साहित्य पुरस्कार मिल चुका है। उन्हें अपने एक अन्य कविता संग्रह “अजुनही बरंच काही बाकी” के लिए दो पुरस्कार मिल चुका है।
इस पाठ्यक्रम को चार तरह के साहित्य में विभाजित किया गया है – महानगरीय, नारीवादी, दलित और ग्रामीण साहित्य। यह कविता महानगरीय साहित्य का हिस्सा है। “यह एक बहुत ही सुंदर कविता है जिसे पुरस्कृत कवि ने लिखा है, जो विगत में राज्य सरकार का पुरस्कार भी जीत चुके हैं। यह कविता मानववाद और मानवीय मूल्यों पर आधारित है।
इस संदर्भ में कुछ महत्त्वपूर्ण प्रश्न उठते हैं, पहला यह कि विश्वविद्यालयों में क्या पढ़ाया जायेगा और क्या नहीं, क्या इसका निर्णय राजनीतिक दलों के पसंद-नापसंद के आधार लिया जायेगा? या उस विषय के विशेषज्ञों तय करेगें की कोई रचना पढ़ाई जानी चाहिए या नहीं? जब बोर्ड ऑफ स्टडीज ने सर्वसम्मत इस कविता को पाठक्रम में शामिल किया था और आज भी बोर्ड ऑफ स्टडीज इस कविता के पक्ष में है तो उसने इस कविता को पाठक्रम से बाहर करने का निर्णय क्यों लिया?
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(इनपुट : द टाइम्स ऑफ इंडिया, 29-30 सितम्बर 2018)
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