बिहार की सबसे बड़ी त्रासदी प्राकृतिक आपदायें है। बारिश के मौसम में उत्तर बिहार के अधिकांश जिले प्राय: हर साल बाढ़ की चपेट में आकर तबाह हो जाते हैं। इस वर्ष बिहार में बाढ़ की तबाही और त्रासदी की नौबत नहीं आयी तो सुखाड़ सिर पर चढ़ गया। राज्य के 38 में से 26 जिले सुखाड़ की चपेट हैं। यही कारण है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को सिंचाई के अभाव और कम वर्षा के कारण फसलों की हो रही बर्बादी को लेकर 15 अक्टूबर 2018 को आनन-फानन में कृषि विभाग समेत इससे जुड़े अन्य विभागों की बैठक बुलानी पड़ी। बैठक में स्थिति की समीक्षा के बाद 26 जिलों के 206 प्रखंडों को सूखाग्रस्त घोषित किया गया।
33 फीसदी से कम उत्पादन का मतलब सुखाड़
कृषि विभाग के प्रधान सचिव त्रिपुरारी शरण ने बताया कि सूखाग्रस्त घोषित करने के तीन पैमाने तय किये हैं। इसमें खेती की वास्तविक स्थिति, फसलों के मुरझाने की स्थिति और 33 प्रतिशत से कम उत्पादन को शामिल किया गया है। इसमें से कोई एक भी पैमाना मिल गया तो प्रखंड को सूखाग्रस्त घोषित किया गया है। उन्होंने कहा कि यह घोषणा वर्तमान स्थिति के आधार पर की गयी है। सूखा की स्थिति का लगातार आकलन किया जा रहा है और आवश्यकता पड़ी तो अन्य प्रभावित प्रखंडों को सूखाग्रस्त घोषित किया जाएगा।

बताते चलें कि खरीफ फसल के लिए औसतन 1027 मिली मीटर बारिश की आवश्यकता पड़ती थी, जबकि इस वर्ष मात्र 771 मिली मीटर बारिश ही हुई। यह औसत बारिश के करीब 25 फीसदी कम है। जून महीने में सामान्य बारिश 168 मिमी की जगह 100 मिली बारिश हुई। इसी तरह जुलाई में 343 की जगह 291, अगस्त में 291 की जगह 266 और सितंबर महीने में औसत 224 मिमी की जगह मात्र 112 मिमी बारिश हुई। यही कारण है कि राज्य की सूखा स्थिति भयावह हो गयी और किसानों की परेशानी बढ़ने लगी।
किसानों को मिलेगी रियायत
त्रिपुरारि शरण के मुताबिक इन प्रखंडों में फसल सुरक्षा और बचाव के लिए कृषि इनपुट के रूप में डीजल, बीज आदि पर सब्सिडी दी जाएगी। वैकल्पिक फसल योजना तैयार की जाएगी। किसानों को फसल बीमा योजना का लाभ दिया जाएगा। इसके साथ ही सूखाग्रस्त प्रखंडों में सहकारिता ऋण, लगान, पटवन और बिजली शुल्क की वसूली पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी गयी है। पशु चारा की उपलब्धता की भी व्यवस्था की जा रही है।
31 अक्टूबर तक किसानों को कराना होगा रजिस्ट्रेशन
फसल सहायता योजना का लाभ लेने के लिए किसान 31 अक्टूबर तक अपना रजिस्ट्रेशन करवा सकते हैं, जबकि इनपुट सब्सिडी के लिए 15 नवंबर तक रजिस्ट्रेशन करवाया जा सकता है। इन योजनाओं का प्रचार-प्रसार के लिए सरकार अभियान भी चलाएगी। गौरतलब है कि धान पर पांच, गेहूं पर चार और मक्का पर तीन सिंचाई के लिए डीजल सब्सिडी दी जा रही है।
रोजगार की वैकल्पिक व्यवस्था
सूखाग्रस्त प्रखंडों में रोजगार की वैकल्पिक व्यवस्था भी की जा रही है। इसका जिम्मा ग्रामीण विकास को सौंपा गया है। मनरेगा समेत अन्य योजनाओं में रोजगार के अवसर बढ़ाने का निर्देश दिया गया है, ताकि सुखाड़ झेल रहे लोगों के लिए आय का नया स्रोत उपलब्ध हो सके। पंचायती राज विभाग समेत अन्य विभागों को भी रोजगार की नयी संभावना तलाशने का निर्देश दिया गया है। इसके साथ पीएचईडी विभाग को पानी की उपलब्धता, खाद्य व उपभोक्ता विभाग को खाद्यानों का भंडारण, पशु व मत्स्य संसाधन विभाग को पशुचारा के साथ पशुओं की चिकित्सा की व्यवस्था करने और बिजली विभाग को निर्बाध बिजली आपूर्ति का निर्देश भी दिया गया।

जिला स्तर पर बना टास्क फोर्स
सूखाग्रस्त जिलों के जिला अधिकारी सूखे से निपटने के कार्यों की निगरानी करने के साथ कल्याणकारी योजनाओं के बेहतर कार्यान्वयन का जिम्मा भी संभालेंगे। जिला स्तर पर टास्क फोर्स का गठन किया जाएगा, जो प्रभावित किसानों के बीच लाभकारी योजनाओं की पहुंच सुनिश्चित करेगा। इसके लिए किसानों को जागरूक भी किया जाएगा।
किसानों का दर्द
बहरहाल, सरकार चाहे जितने दावे और घोषणायें कर ले, असलियत अत्यंत ही भयावह है। सूखाग्रस्त जिलों में ऐसे कई जिले हैं, जहां नहर से भी सिंचाई की व्यवस्था है। लेकिन सभी प्रखंड उससे लाभान्वित भी नहीं होते हैं। बहुत बड़़ी आबादी फसलों की सिंचाई के लिए मोटर व बिजली पर निर्भर करती है। लेकिन मोटर य बिजली बारिश के विकल्प नहीं हो सकते हैं। इस वर्ष बिहार में औसत से कम बारिश हुई है। बिहार से गुजरने वाली नदियों के जलग्रहण क्षेत्र में बारिश होने के कारण नदियों में बाढ़ आयी, तबाही भी हुई, लेकिन उसका सिंचाई कार्य के लिए कोई इस्तेमाल संभव नहीं था। किसानों की फसल बीमा से जुड़ी योजनाएं प्रदेश में संचालित हैं, लेकिन उनका प्रभावी और बेहतर कार्यान्वयन नहीं होने से उसका लाभ किसानों को नहीं मिलता है।

मसलन औरंगाबाद जिले के रफीगंज प्रखंड के किसान महीपाल सिंह कहते हैं कि सिंचाई के अभाव में फसल सूख रही है। बिजली और डीजल से चलने वाले मोटरों के माध्यम से किसान धान समेत अन्य खरीफ फसलों को बचाने का भरपूर प्रयास कर रहे हैं। डीजल सब्सिडी से किसानों को थोड़ी राहत मिलती है, लेकिन फसलों को बचाने के लिए किसानों को खुद ही मशक्कत करनी पड़ रही है। वहीं गोह प्रखंड के संजीव तिवारी कहते हैं कि फसल बीमा योजना की प्रक्रिया इतनी जटिल होती है, किसान इसके लाभ लेने से वंचित रह जाते हैं। वे कहते हैं कि प्राकृतिक आपदा को टालना संभव नहीं है, लेकिन इससे होने वाले नुकसान को कम करने का प्रयास किया जाना चाहिए। किसान और सरकार दोनों अपने स्तर पर नुकसान की भरपाई कर रहे हैं।
किसानों को मुंह चिढ़ाती सरकारी घोषणायें
जाहिर ताैर पर सुखाड़ बिहार के लिए कोई नयी आपदा नहीं है। पिछले वर्ष भी राज्य के आधे जिले सुखाड़ की चपेट में थे। तब भी सरकार की तरफ से तमाम तरह के दावे किये गये थे। इस संबंध में कृषि विभाग के उपसचिव अरुण कुमार सिन्हा ने बताया कि डीजल अनुदान के रूप में किसानों के बीच अब तक 60 करोड़ से अधिक रुपये का वितरण किया जा चुका है। सब्सिडी तीन सिंचाई के लिए दी जाती है। पिछले साल डीजल सब्सिडी के रूप में केवल 49 करोड़ रुपये का ही वितरण किया गया था।
(कॉपी संपादन : एफपी डेस्क)
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