सरदार पटेल की विशालकाय प्रतिमा को लेकर एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विरोध हो रहा है। इससे पहले कि आगामी 31 अक्टूबर 2018 को वे नर्मदा जिले के केवड़िया में ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ यानी ‘एकता की प्रतिमा’ के रूप में सरदार पटेल की 182 मीटर ऊंची प्रतिमा का अनावरण करेंगे, गुजरात के आदिवासियों ने इसका पुरजोर विरोध किया है। उनका कहना है कि इस प्रतिमा के लिए सरकार ने उनसे उनकी जमीनें छीन लीं।
आदिवासियों का कहना है कि सरदार पटेल की प्रतिमा परियोजना उनके लिए विनाशकारी साबित हुई है। उन्होंने आह्वान किया है कि इसके विरोध में वे अपने घरों में चूल्हा नहीं जलाएंगे।
इस विरोध का आह्वान आदिवासी नेता प्रफुल्ल वसावा ने किया है। उनका कहना है कि 72 गांवों में कोई खाना नहीं पकेगा। हम उस दिन शोक मनाएंगे, क्योंकि इस परियोजना ने हमारा जीवन बर्बाद कर दिया। उन्होंने कहा कि यह हमारी परंपरा रही है कि जिस दिन हम शोक मनाते हैं, हम अपने घरों में खाना नहीं बनाते।

उन्होंने सरकार पर आरोप लगाया कि उसने हमारे अधिकारों का उल्लंघन किया है। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि वे सरदार पटेल के खिलाफ नहीं हैं। उनका सम्मान तो किया ही जाना चाहिए, लेकिन यह हमारी जिंदगी के मूल्य पर नहीं हो। सरकार विकास की बातें कह रही है, लेकिन उसका यह विकास एकतरफा है।
गौरतलब है कि सरकार ने आदिवासियों से उनकी जमीन काे सरदार सरोवर नर्मदा परियोजना के साथ प्रतिमा की स्थापना व पर्यटन के विकास आदि उद्देश्यों के लिए अधिग्रहित किया है।

बहरहाल, आदिवासियों के इस असहयोग आंदोलन में गुजरात के सभी आदिवासी संगठन शामिल हैं। खासकर उत्तरी गुजरात के बनासकांठा से लेकर दक्षिण गुजरात के नौ आदिवासी बहुल जिलाें के लोग इस आंदोलन में भाग लेंगे। इस दौरान बंद का भी आह्वान किया गया है।
दरअसल, सरदार पटेल प्रतिमा परियोजना के कारण 32 गांव अस्तित्वहीन हो गए हैं। इनमें से 19 गांवाें के लोगों का पुनर्वास भी नहीं हो सका है। गुजरात सरकार द्वारा वेबसाइट पर दी गई जानकारी के अनुसार, केवड़िया कॉलोनी के छह गांव और गरुडेश्वर ब्लॉक के सात गांवों में सिर्फ मुआवजा दिया गया है। जबकि सरकार ने जमीन और नौकरी देने का वादा भी किया था।
(कॉपी संपादन : प्रेम बरेलवी/एफपी डेस्क)
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