देश की राजनीति अब सवर्ण बनाम बहुजन के ढर्रे पर अग्रसर हो चुकी है। मध्य प्रदेश में ओबीसी, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अल्पसंख्यक कर्मचारी संगठन द्वारा सवर्णों को वोट नहीं देने के एलान के बाद अब तेलंगाना में सवर्णों के खिलाफ पिछड़े वर्गों की सीधी लड़ाई का आगाज हो चुका है। बीते 10 अक्टूबर 2018 को तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद के सरुननगर इंडोर स्टेडियम में एक नयी पार्टी का गठन किया। पिछड़ा वर्ग राजकीय समिति के (बीआरएस) नाम से यह पार्टी तेलंगाना के 90 विधानसभा क्षेत्रों में से केवल उन क्षेत्रों में ही अपने उम्मीदवार उतारेगी जहां विभिन्न राजनीतिक पार्टियां केवल सवर्णों को उम्मीदवार बनायेंगी। इसके लिए एक नारा भी दिया गया है – बहुजन ही सत्ता का अधिकारी।
सवर्ण बनाम बहुजन की यह राजनीति पहली बार खुलकर सामने आयी है। इससे पहले बिहार में सवर्ण बनाम बहुजन की राजनीति का दौर चला था। वह 1995 में हुआ बिहार विधानसभा का चुनाव था जिसमें लालू प्रसाद की पार्टी जनता दल ने 82 फीसदी सीटों पर बहुजनों को अपना उम्मीदवार बनाया था। लेकिन उस वक्त भी लालू प्रसाद ने सवर्णों से पूर्णतया किनारा नहीं किया था।
लेकिन तेलंगाना में जो आगाज बीआरएस के साथ हुआ है, वह पूरी तरह सवर्णों के खिलाफ है। इसका गठन पिछड़े वर्ग के नेताओं ने किया। इनमें तेलंगाना में पिछड़े वर्ग के नेता जजुला श्रीनिवास गौड़, इन्डियन इंस्टीच्यूट ऑफ पॉलिटिकल लीडरशिप के अध्यक्ष एम सतीश चंदर और ऑल इंडिया बैकवर्ड क्लासेज फेडरेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष जस्टिस वी. ईश्वरैया शामिल हैं।
फारवर्ड प्रेस के साथ बातचीत में जस्टिस ईश्वरैया ने कहा कि उनका संगठन ऑल इंडिया बैकवर्ड क्लासेज फेडरेशन राजनीतिक पार्टी नहीं है लेकिन हमलोगों ने निर्णय लिया है कि बीआरएस के बैनर तले हम उन क्षेत्रों में अपने उम्मीदवार खड़ा करेंगे जहां केवल सवर्ण उम्मीदवार होंगे। हम उन क्षेत्रों में अपना उम्मीदवार नहीं बनायेंगे जहां किसी भी राजनीतिक दल ने पिछड़े वर्ग के व्यक्ति को अपना उम्मीदवार बनाया है।
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यह पूछने पर कि पिछड़े वर्ग में क्या केवल ओबीसी शामिल हैं, जस्टिस ईश्वरैया ने कहा कि इंदिरा साहनी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 1993 में ही इसकी व्याख्या कर दी थी। संविधान की धारा 16(4) में उल्लेखित पिछड़ा वर्ग का संबंध समाज के उन सभी वर्गों से है जो शैक्षणिक, राजनीतिक,आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े हैं। ऐसे में ओबीसी, दलित, आदिवासी, घूमंतू जातियां, अति पिछड़ा वर्ग सभी पिछड़ा वर्ग की परिधि में शामिल हैं। उन्होंने कहा कि मौजूदा पार्टियां ऊंची जातियों की पार्टियां हैं जहां केवल दिखावे के लिए वंचितों को शामिल किया जाता है। उनका एजेंडा ऊंची जातियों के लोगों के हितों की रक्षा करना है।
(कॉपी संपादन : सिद्धार्थ)
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