महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने घोषणा कर दी है कि सत्र के आखिरी दिन आगामी 29 नवंबर 2018 को विधानमंडल के दोनों सदनों में मराठा आरक्षण विधेयक पेश कर दिया जाएगा। इस प्रकार लंबे समय से चल रही इस बहस पर विराम लगने की उम्मीद है।
हालांकि, दो बड़ी विपक्षी पार्टियां कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) इस मुद्दे पर चुप रह जाएंगी, ऐसा नहीं कहा जा सकता। बीते 26 नवंबर 2018 को विधानमंडल के शीतकालीन सत्र में कांग्रेस व राकांपा ने जमकर हंगामा किया था। दोनों विपक्षी पार्टियां सत्र शुरू होने के पहले दिन ही राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट को सदन के पटल पर रखने की मांग पर अड़ गई थीं। इस कारण कार्यवाही बाधित भी हुई। ऐसे में विपक्षी पार्टियों की जल्दबाजी को श्रेय लेने की होड़ के रूप में देखा जा रहा है। लेकिन, इस पहलू को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि मराठा समुदाय भी इसे जल्दी लागू करवाने के पक्ष में है। इस तरह मराठा समुदाय का गुस्सा कांग्रेस-राकांपा को राजनीतिक लाभ पहुंचा जा सकता है।
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गौरतलब है कि 26 नवंबर को ही मराठा समाज के लोग भी आरक्षण को तत्काल लागू करने की मांग कर रहे थे। सैकड़ों की संख्या में मराठा समाज के लोग लोनावला से मुंबई की तरफ बढ़े, जिन्हें पुलिस ने रोकने की कोशिश की। इस तरह यह लगता है कि मराठा आरक्षण यदि जल्दी लागू होता है, तो इसका भरपूर फायदा कांग्रेस और राकांपा उठा सकती हैं। निश्चित रूप से यह भी राज्य की भाजपा सरकार के लिए सिरदर्द का कारण बनेगा।
कांग्रेस और राकांपा ने मराठा आरक्षण के मुद्दे के अलावा मुस्लिम आरक्षण का मुद्दा भी गरमाने की कोशिश की, लेकिन विधानसभा में राजस्व मंत्री चंद्रकांत पाटिल ने कहा कि मुस्लिम समाज को धर्म के आधार पर आरक्षण नहीं दिया जा सकता। पाटिल ने यह साफ कर दिया कि राज्य में मुस्लिम समाज को पहले ही ओबीसी वर्ग में शामिल किया गया है।
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उल्लेखनीय है कि पिछड़ा वर्ग आयोग ने इस मामले में अपनी रिपोर्ट सौंपते समय कहा था कि महाराष्ट्र में मराठा आबादी 30 प्रतिशत है, इसलिए उन्हें 16 प्रतिशत आरक्षण दिया जाना चाहिए। साथ ही आयोग ने यह भी कहा था कि मराठों को आरक्षण देने के दौरान ओबीसी कोटे में कोई परिवर्तन नहीं किया जाए। अब यदि 29 नवंबर को मराठा आरक्षण लागू होता है, तो सभी श्रेणियों को मिलाकर राज्य में कुल आरक्षण 68 प्रतिशत हो जाएगा। वर्तमान समय में राज्य में अलग-अलग वर्ग को मिलाकर 52 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था है।
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मराठा आरक्षण आंदोलन के समर्थकों में अब भी भाजपा सरकार के वादों पर विश्वास नहीं हो रहा है। कांग्रेस के युवा नेता और मराठा आरक्षण के समर्थक मंदार पवार ने कहा, ”मराठा आरक्षण का लागू होना बहुत जरूरी है। आरक्षण की मांग शैक्षिक, आर्थिक और सामाजिक स्थिति को देखते हुए की गई है। इसलिए यह एक जरूरी मांग है। लेकिन, जब तक यह लागू नहीं होता, तब तक कुछ कहा नहीं जा सकता। क्योंकि, भाजपा सरकार पर मुझे बिलकुल भरोसा नहीं है।’
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वहीं महाराष्ट्र का दलित-बहुजन समाज स्वतंत्र रूप से मिलने वाले मराठा आरक्षण के खिलाफ नहीं है। लेकिन, वे चाहते हैं कि एससी, एसटी और पिछड़ों को जो आरक्षण की सुविधा दी गई है, वह केवल कागज तक सीमित न रहे; बल्कि उस पर अमल भी हो। भीम आर्मी के महाराष्ट्र प्रमुख अशोक कांबले ने इस सिलसिले में कहा, ”हम स्वतंत्र रूप से मिलने वाले मराठा आरक्षण के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन महाराष्ट्र में दलित-बहुजनाें काे मिलने वाला आरक्षण केवल कागज पर ही क्यों है? वे इसको लेकर सवाल उठाना चाहते हैं। महाराष्ट्र में एससी में आने वाले बौद्धों के साथ अन्याय हो रहा है। जहां एक तरफ वर्ष 1992 के बाद से सरकारी नौकरियों में एससी के लिए आरक्षित पदों को नहीं भरा गया है, वहीं तेजी से हो रहे निजीकरण ने भी एससी-एसटी के लिए रोजगार पाने के रास्ते बंद कर दिए हैं। दूसरी तरफ दलित छात्रों को स्कॉलरशिप नहीं मिल पा रही है। षड्यंत्र रचकर एससी-एसटी के छात्रों की स्कॉलरशिप रोकी जा रही है, ताकि छात्र रोहित वेमुला की तरह अपनी जान देने पर मजबूर हो जाएं। इसलिए मेरा कहना है कि मराठा आरक्षण लागू जरूर हो, लेकिन जिनको पहले से आरक्षण मिल रहा है, उन्हें भी ताे नौकरियां दी जाएं।”
(कॉपी संपादन : प्रेम/एफपी डेस्क)
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