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हेपेटाइटिस-बी के संक्रमित वैक्सीन से दस छात्राएं अचेत, एक आदिवासी छात्रा की मौत

महाराष्ट्र के वर्धा में मेडिकल काॅलेज की छात्रा की हेपेटाइटिस-बी का वैक्सीन लगाने से मौत हो गई। अगर वैक्सीन में गड़बड़ी थी, तो स्वास्थ्य महकमे को इसकी जिम्मेदारी लेनी चाहिए थी। लेकिन, इस मामले में प्रशासन इस हद तक संवेदनहीन है कि मामले की प्राथमिकी तक दर्ज नहीं की गई है। फारवर्ड प्रेस की खबर :

बीते 4 नवंबर 2018 को महाराष्ट्र के वर्धा में हेपेटाइटिस-बी का इंजेक्शन लगाए जाने के बाद एक नर्सिंग काॅलेज की 10 छात्राएं गंभीर रूप से बीमार हो गईं। इनमें से एक 19 वर्षीय आदिवासी छात्रा हिमानी रविंद्र मलोंडे की मौत हो गई। वह महाराष्ट्र के देवल की रहने वाली थी और आदिवासी समाज के गोवारी समुदाय से ताल्लुक रखती थी।

बताया जा रहा है कि हेपेटाइटिस-बी का जो वैक्सीन छात्राओं को लगाया गया, वह संक्रमित था और इस कारण वैक्सीन लगाए जाने के तुरंत बाद ही एनाफाइलेटिक रिएक्शन होने लगा।

इस घटना की शिकार सभी छात्राएं स्थानीय राधिकाबाई नार्सिंग काॅलेज में पढ़ रही हैं। रिएक्शन होने के बाद उन्हें निजी अस्पताल विनोबा भावे ग्रामीण अस्पताल में भर्ती कराया गया। इलाज के दौरान नाै छात्राओं की जान बच गई, लेकिन एक आदिवासी छात्रा की मौत हो गई।

उठ रहे कई तरह के सवाल

छात्रा की मौत से अनेक सवाल उठ रहे हैं। आशंका जताई जा रही है कि आदिवासी होने के कारण हिमानी मलोंडे की उपेक्षा की गई और उसकी जान चली गई। हालांकि, इस मामले में स्थानीय पुलिस पोस्टमार्टम रिपोर्ट का इंतजार कर रही है और उसने अभी तक एफआईआर भी दर्ज नहीं की है।

मृतक आदिवासी छात्रा हिमानी मलोंडे

गौरतलब है कि राधिकाबाई नार्सिंग काॅलेज और विनोबा भावे ग्रामीण अस्पताल दोनों के मालिक भारतीय जनता पार्टी के पूर्व सांसद दत्ता राघोबाजी मेघे हैं। स्थानीय सूत्रों के मुताबिक, आशंका यह भी जताई जा रही है कि उनके ऊंचे रसूख के कारण भी पुलिस कार्रवाई करने से हिचक रही है।

वहीं, मृतका हिमानी मलोंडे के परिजन इस घटना के बाद आक्रोशित हैं और वे पूरे मामले की उच्च स्तरीय जांच कराए जाने की मांग कर रहे हैं।

उठ रहे तमाम सवालों को राधिकाबाई नार्सिंग काॅलेज और विनोबा भावे अस्पताल के अधिकारी सिरे से खारिज करते हैं। लेकिन, सवाल यह उठता ही है कि यदि वे पाक-साफ हैं, तो उच्च स्तरीय जांच से कतरा क्यों रहे हैं?  

राधिकाबाई नार्सिंग कॉलेज का परिसर

दरअसल, बीते 4 नवंबर 2018 को महाराष्ट्र के वर्धा स्थित राधिकाबाई नर्सिंग काॅलेज, सावंगी (मेघे) की मेडिकल छात्राओं को रुटीन चेकअप के बाद हेपेटाइटिस-बी के वैक्सीन लगाए गए, जिसमें 10 छात्राओं को रिएक्शन हो गया और उन सभी को इलाज के लिए फौरन अस्पताल के आईसीयू में भर्ती कराना पड़ा। लेकिन, इनमें एक की तड़के 3ः00 बजे मौत हो गई।

पल्ला झाड़ रहे अस्पताल के अधिकारी

हालांकि, विनोबा हॉस्पिटल के चिकित्साधिकारी चंद्रशेखर माहकालकर ने कहा, “छात्राओं को वैक्सीन दी गई थी। इस वैक्सीन को जिला अस्पताल ने मुहैया कराया था। हेपेटाइटिस-बी के वैक्सीन के कारण रिएक्शन बहुत कम होता है। कोई 10 लाख लोगों में किसी एक को। हमने बचाने का पूरा प्रयास किया, लेकिन सफल नहीं हो सके।”

माहकालकर भी मानते हैं कि हिमानी की मौत एनाफाइलैक्टिक रिएक्शन से हुई। उसको विनोबा भावे ग्रामीण अस्पताल में भर्ती कराया गया। जानकारी के अनुसार, काॅलेज की ओर से विद्यार्थियों और कर्मचारियों को रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए वैक्सीन दिए जाते हैं। इसी के तहत बीएससी-नर्सिंग की छात्राओं को सुबह इंजेक्शन दिए गए। वैक्सीन दिए जाने के कुछ देर बाद 10 छात्राओं की तबीयत खराब हो गई है। सभी को विनोबा अस्पताल ले जाया गया।

वहीं, नर्सिंग कॉलेज की प्राचार्य डॉक्टर सीमा सिंह ने बताया कि छात्राओं का रुटीन हेल्थ चेकअप किया जाता है। इसके चलते वैक्सीन दिए गए थे।

जबकि जिला स्वास्थ्य अधिकारी अजय ढवले ने बताया कि हेपटाइटिस-बी की आपूर्ति जिला स्वास्थ्य विभाग के द्वारा की जाती है। वैक्सीन के बैच नंबर देखकर उसे जांच के लिए भेजा जाएगा। बेहद कम मामलों में ही एनाफाइलैक्टिक रिएक्शन होता है।

यह केवल लापरवाही नहीं, हत्या है : डाॅ. सूर्या बाली

एम्स, भोपाल में चिकित्सक डाॅ. सूर्या बाली इस घटना के बारे में कहते हैं कि आदिवासी छात्रा हिमाली मलोंडे की मौत केवल इस वजह से नहीं हुई कि उसे संक्रमित वैक्सीन लगाया गया। उसकी मौत की वजह केवल लापरवाही नहीं हो सकती है। यह एक प्रकार की हत्या है। इसकी उच्च स्तरीय जांच होनी ही चाहिए कि आखिर जिस वैक्सीन प्रोग्राम को लेकर पूरे विश्व में अभियान चलाया जा रहा है, उसके कारण एक बार में 10 छात्राएं कैसे गंभीर रूप से बीमार हो गईं। सामान्य तौर पर हेपेटाइटिस-बी का वैक्सीन दिए जाने के समय तीन बातों का ध्यान रखा जाना चाहिए।

पहला तो यह कि वैक्सीन का ट्रांसपोर्टेशन सही तरीके से किया गया है या नहीं। चूंकि ये वैक्सीन सीधे-सीधे सरकारी निगरानी में रखे जाते हैं और इसके लिए जिस प्रक्रिया का इस्तेमाल किया जाता है, उसे ‘कोल्ड चेन ट्रांसपोर्टेशन’ कहा जाता है। इस प्रक्रिया के तहत यह सुनिश्चित किया जाता है कि भंडारण से लेकर वैक्सीन लगाए जाने के समय तक उसे 4 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान पर रखा जाए। इसे हर स्टेज पर नोट किया जाता है। इसकी रिपोर्टिंग भी होती है।

दूसरा यह कि वैक्सीन लगाए जाने से पहले उस व्यक्ति से फार्म भराया जाता है, जिसे वैक्सीन लगाया जाना है। इस फार्म में एक तो वह वैक्सीन लगाने की स्वीकृति देता है और दूसरा यह कि वह घोषित करता है कि उसे पहले से किसी प्रकार का संक्रमण अथवा संक्रमण जनित रोग नहीं है।

तीसरी बात यह कि वैक्सीन लगाने वाले चिकित्सक को यह ध्यान रखना पड़ता है कि उसके पास एनाफाइलैक्टिक किट हो, ताकि रिएक्शन होने पर तत्काल उसकी जान को बचाया जा सके। हालांकि, यह रेयर ही होता है, लेकिन इसके बावजूद विश्व स्वास्थ्य संगठन का निर्देश है कि हेपेटाइटिस-बी का वैक्सीन लगाते समय एनाफाइलैक्टिक किट मौजूद रहे।

डाॅ. सूर्या बाली बताते हैं कि जिस तरह की घटना की शिकार हिमानी मलोंडे हुई है, उससे कई तरह के सवाल खड़े हाेते हैं। सबसे बड़े सवाल तो यही हैं कि वैक्सीन संक्रमित हुई, तो किसकी वजह से हुई और बिना एनाफाइलैक्टिक किट के वैक्सीन कैसे दे दी गई?

इसलिए लगाए जाते हैं हेपेटाइटिस-बी के वैक्सीन

डा. सूर्या बाली के अनुसार हेपेटाइटिस-बी वास्‍तव में ‘बी’ टाइप के वायरस से होने वाली बीमारी है। हेपेटाइटिस-बी को सीरम हेपेटाइटिस भी कहा जाता है। यह रोग रक्त, थूक, पेशाब, वीर्य और योनि से होने वाले स्राव के माध्यम से होता है। ड्रग्स लेने वाले लोगों में या उन्मुक्त यौन संबंध और अन्य शारीरिक निकट संबंध रखने वालों को भी यह रोग होता है। विशेषकर अप्राकृतिक संभोग करने वालों में यह रोग महामारी की तरह फैलता है। हेपेटाइटिस-बी का वैक्सीन इस बीमारी से बचाव करता है।

सोलापुर में भी सामने आई लापरवाही

बहरहाल, महाराष्ट्र के सोलापुर में स्थानीय सहकारी अस्पताल के स्टोर से लिए गए इंजेक्शन में इल्लियां (कीड़े की एक प्रजाति) पाए जाने का बेहद गंभीर मामला सामने आया है। अन्न और औषधि प्रशासन और अस्पताल प्रशासन ने भी स्टोर की दवाओं की जांच की है। पृथ्वीराज दत्रातेय चौहान (2 साल) को तीन दिन पहले बुखार, सर्दी और खांसी होने से अस्पताल में भर्ती कराया गया था, सुबह डाॅक्टर के लिखे गए दो इंजेक्शन स्टोर से लाए गए। सलाइन भी मंगाई गई थी। दूसरा इंजेक्शन लगाते समय एक रिश्तेदार को उसमें इल्ली दिखाई दी। इस बारे में उसने डॉक्टर और नर्स से सवाल किया, लेकिन उसे उल्टे-सीधे जवाब दिए गए। उसके बाद रिश्तेदार सीधे जेल रोड पुलिस थाने में गए। बच्चे के चाचा शंकरराव चह्वाण ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई और कार्रवाई की मांग की। इसके बाद वहां स्वास्थ्य राज्य मंत्री देशमुख भी पहुंच गए और उन्होंने पूरी जानकारी ली। सोलापुर का ये उदाहरण बताता है कि राज्य में वैक्सीन संबंधी शिकायतों पर सरकारी मशीनरी का कोई ध्यान नहीं है।

(काॅपी संपादन : प्रेम/एफपी डेस्क)


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कमल चंद्रवंशी

लेखक दिल्ली के एक प्रमुख मीडिया संस्थान में कार्यरत टीवी पत्रकार हैं।

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