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जब तक रहेगी जाति, तब तक रहेगा आरक्षण : कांचा आयलैया शेफर्ड

बहुजन चिंतक कांचा आयलैया शेफर्ड मानते हैं कि यदि जाति व्यवस्था को खत्म कर दिया जाए, तो आरक्षण की आवश्यकता केवल 30 वर्षों तक होगी। फिर समाज में बराबरी सुनिश्चित हो जाएगी। फारवर्ड प्रेस से विशेष बातचीत का संपादित अंश

हाल ही में दिल्ली विश्वविद्यालय के अकादमिक मामलों की स्थायी समिति ने बहुजन चिंतक प्रो.कांचा आयलैया शेफर्ड की तीन किताबों को बाहर करने का फैसला लिया। इन किताबों में वे सबसे अधिक जाति-व्यवस्था पर प्रहार करते हैं। जाहिर तौर पर ये सवाल वंचित तबकों के हक-हुकूक से जुड़े हैं, जिसके लिए संविधान में आरक्षण की व्यवस्था की गई है। लेकिन केंद्र में सत्तासीन भाजपा और उसके मातृ संगठन आरएसएस के द्वारा आए दिन आरक्षण पर सवाल उठाया जाता है। इस संबंध में फारवर्ड प्रेस ने प्रो. आयलैया से बातचीत की।

 

मौजूदा आरक्षण व्यवस्था को लेकर आपकी क्या राय है ? क्या पर्दे के पीछे से किसी तरह की साजिश की बात सही है?

आरक्षण को लेकर जितनी भी चिल्लपों हो, जितनी भी साजिश रची जाए, कुछ भी बदलने वाला नहीं है। क्योंकि, बहुसंख्यक समाज अब उनके न तो झांसे में आने वाला है और न ही उनके चंगुल में फंसने वाला है। बहुसंख्यक समाज के लोग आरक्षण विरोधी लॉबी पर नजर रखे हुए हैं। अगर किसी तरह का दुस्साहस किया गया, तो इसका परिणाम बहुत बुरा होगा।

ऐसे में क्या अतिरिक्त सतर्कता बरतनी होगी?

बहुजन समाज को एकजुट रहने की जरूरत है और समाज के उन जाति के लोगों, जैसे- जाट, गुर्जर, मराठा, पटेल आदि को भी जोड़कर रखने की जरूरत है, जो अभी आरक्षण को लेकर संघर्ष कर रहे हैं। इनका सहयोग करने के साथ-साथ संविधान में संशोधन के लिए दबाव बनाना होगा, ताकि इनके लिए अलग से आरक्षण की व्यवस्था हो सके। हमें यह बात नहीं भूलनी चाहिए कि कुल आबादी का 16 प्रतिशत ही दलित हैं और सामूहिक रूप से एकजुट रहकर ही हम आरक्षण विरोधियों के मंसूबों पर पानी फेर सकते हैं। हो सकता है आंदोलन करने की नौबत तक आ जाए और फिर से सड़कों पर उतरना पड़े। हर तरह की विषम परिस्थितियों के लिए बहुजनों को तैयार रहना होगा।

प्रो. कांचा अायलैया शेफर्ड

आप कह रहे हैं कि आरक्षण को लेकर साजिश रची जा रही है। यह आप किस आधार पर कह रहे हैं?

आरक्षण को लेकर कभी आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत समीक्षा की बात करने लगते हैं, तो कभी केंद्र सरकार में बैठे उनके नुमाइंदे समीक्षा की वकालत करने लगते हैं। लेकिन, जब इसका पुरजोर विरोध होता है, तब फिर खंडन आना शुरू होता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक खंडन के लिए आगे आ जाते हैं और ऐसा केवल और केवल बहुजन समाज की एकजुटता की वजह से ही संभव हो पा रहा है। एकजुटता में जरा-सी ढिलाई हुई, जिसका आरक्षण विरोधी लॉबी बेसब्री से इंतजार ही कर रही है, अपना उद्देश्य पूरा करने में जुट जाएंगी। बहुजन समाज के लोगों को इसका खासतौर पर ध्यान रखना होगा। तभी उन ताकतों के मंसूबों पर पानी फेरा जा सकता है।

आपके पास कोई योजना है क्या?

आरक्षण को लेकर जिस तरह हाय-तौबा मचाई जा रही है, उसकी जरूरत नहीं है। जरूरत है, तो केवल और केवल जाति व्यवस्था खत्म करने की। जब तक जाति रहेगी, तब तक आरक्षण रहेगा। जाति को खत्म कर दो, आरक्षण की व्यवस्था खुद-ब-खुद खत्म हो जाएगी। बस एक फार्मूले भर पर काम करना है। फार्मूला यह है कि जाति व्यवस्था खत्म कर दो और केवल 30 साल तक आरक्षण जारी रखा जाए, तब सब कुछ सामान्य हो जाएगा, सबकी भागीदारी हो जाएगी। हां, सरकार को इसके लिए आगे आना होगा और इस दौरान शिक्षण व्यवस्था को दुरुस्त करना होगा। मसलन अगर स्कूली शिक्षा की बात करें, तो सरकारी स्कूलों को सुदृढ़ करना होगा और वहां प्राइवेट स्कूल की तर्ज पर अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाई की व्यवस्था लागू करनी होगी। प्राइवेट स्कूलों को सरकार को खत्म करना, होगा या फिर उसका नियंत्रण अपने हाथों में लेना होगा।

क्या आपने इस पर कोई होम वर्क किया है? इसके लिए और क्या-क्या करना होगा?

बिल्कुल, हमारे पास योजना है और सबसे पहले तो यूरोप की तर्ज पर पढ़ाई का जिम्मा सरकार को उठाना होगा। ऐसा कर लेने के बाद देखिएगा किस तरह समान व्यवस्था लागू हो जाती है और किस तरह समाज में समानता की बहार आ जाएगी। ऊंच-नीच की खाई खुद-ब-खुद खत्म हो जाएगी।

(कॉपी संपादन : प्रेम/एफपी डेस्क)


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लेखक के बारे में

कुमार समीर

कुमार समीर वरिष्ठ पत्रकार हैं। उन्होंने राष्ट्रीय सहारा समेत विभिन्न समाचार पत्रों में काम किया है तथा हिंदी दैनिक 'नेशनल दुनिया' के दिल्ली संस्करण के स्थानीय संपादक रहे हैं

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