डाइवर्सिटी के जरिए उद्याेग जगत में आगे बढ़ेंगे बहुजन
समाज में डाइवर्सिटी को स्थापित करने के उद्देश्य से स्थापित किए गए संगठन बहुजन डाइवर्सिटी मिशन द्वारा हर साल ‘डाइवर्सिटी-डे‘ धूमधाम से आयोजित किया जाता है, जिसमें देशभर के अनगिनत ख्यात बहुजन लेखक, बुदि्धजीवियों समेत अन्य क्षेत्रों की विद्वान हस्तियां शिरकत करती हैं। पिछले 12 साल से लगातार आयोजित हो रहे ‘डाइवर्सिटी-डे’ कार्यक्रम यानी 13वें ‘डाइवर्सिटी-डे’ का आयोजन इस बार 4 नवंबर, 2018 को उत्तर प्रदेश के मऊ जनपद स्थित नगरपालिका कम्युनिटी हॉल में आयोजित होगा।
इस बार 4 नवंबर को भव्य रूप से आयोजित होने वाले इस कार्यक्रम में देश के विभिन्न हिस्सों के जाने-माने प्रमुख लेखक, पत्रकार और शिक्षाविद शिरकत रहे हैं। इस बार के आयोजन में संगठन के संस्थापक अध्यक्ष- जो कि बतौर डाइवर्सिटी मैन के नाम से ख्यात हैं –समेत तमाम जाने–माने लोग, अपने–अपने क्षेत्रों के स्थापित बहुजन नाम हिस्सा लेंगे।
बहुजन डाइवर्सिटी मिशन के संस्थापक अध्यक्ष और ख्यात बहुजन लेखक एचएल दुसाध कहते हैं– ‘‘आजाद भारत के दलित आंदोलनों के इतिहास में भोपाल सम्मलेन (12-13 जनवरी, 2002) का एक अलग महत्व है, जिसमें 250 से अधिक शीर्ष दलित बुदि्धजीवियाें ने हिस्सा लिया था। उसमें दो दिनों के गहन विचार मंथन के बाद 21 सूत्रीय ‘भोपाल घोषणा-पत्र’ जारी हुआ था, जिसमें अमेरिका की डाइवर्सिटी नीति का अनुसरण करते हुए वहां के अश्वेतों की तरह ही भारत के दलितों, पिछड़ों, आदिवासियों को सप्लायर, डीलर, ठेकेदार इत्यादि बनाने का सपना दिखाया गया था; मगर किसी को भी यकीन नहीं था कि डाइवर्सिटी नीति भारत में लागू भी हो सकती है। भोपाल घोषणा-पत्र जारी करते समय किए गए वादे के मुताबिक, 27 अगस्त 2002 को वरिष्ठ कांग्रेसी नेता दिग्विजय सिंह ने अपने राज्य के छात्रावासों और आश्रमों के लिए स्टेशनरी, बिजली का सामान, चादर, दरी, पलंग, टाट-पट्टी, खेलकूद का सामान इत्यादि के नौ लाख 19 हजार के सामान की खरीद का आॅर्डर भोपाल और होशंगाबाद के दलितों, पिछड़ों के 34 उद्यमियों के मध्य वितरित कर भारत में ‘सप्लायर डाइवर्सिटी’ की शुरुआत की थी। हमारा संगठन दलितों, पिछड़ों का एकमात्र ऐसा संगठन है, जो आरक्षण से परे हर क्षेत्र में दलितों–पिछड़ों की भागीदारी की लड़ाई जोर–शोर से लड़ रहा है।’’
दुसाध आगे बताते हैं– “दिग्विजय सिंह की उस छोटी–सी शुरुआत से दलितों में यह विश्वास पनपा था कि यदि सरकारें चाहें तो सदियों से उद्योग-व्यापार से बहिष्कृत किए गए एससी/एसटी को उद्योगपति-व्यापारी बनाया जा सकता है। इसी का परिणाम था कि डाइवर्सिटी लागू करवाने के लिए दर्जनों संगठन वजूद में आ गए, जिनमें आरके चौधरी का बीएस-4 भी था। बाद में इसी उद्देश्य से उत्तर भारत के दलित लेखकों ने 15 मार्च, 2007 को ‘बहुजन डाइवर्सिटी मिशन’(बीडीएम) संगठन स्थापित, जिसका संस्थापक अध्यक्ष मुझे चुना गया।’’
बकौल एचएल दुसाध– ‘‘बीडीएम के गठन की प्रकिया के दौरान ही डॉ. संजय पासवान की पहलकदमी पर डाइवर्सिटी पर एक बड़ा सम्मलेन आयोजित करने का मन बनाया गया था। मध्य प्रदेश में लागू हुई ‘सप्लायर डाइवर्सिटी’ के दिन यानी 27 अगस्त 2006 को यह आयोजन ‘वंचित प्रतिष्ठान’ और ‘एमेटी दलित सिनर्जी फोरम’ द्वारा दिल्ली के ‘इंडिया इंटरनेशनल सेंटर’ में संयुक्त रूप से किया गया।’’
उस आयोजन को ‘डाइवर्सिटी-डे’ नाम दिया गया। बाद में जब 15 मार्च, 2007 को बीडीएम की स्थापना हुई, तो बहुजन डाइवर्सिटी मिशन से जुड़े लेखकों ने मध्य प्रदेश में लागू हुई सप्लायर डाइवर्सिटी से प्रेरणा लेने के लिए भविष्य में भी ‘डाइवर्सिटी-डे’ मनाते रहने का निर्णय लिया। इसके बाद हर साल 27 अगस्त, 2007 से देश के जाने-माने बहुजन बुदि्धजीवियाें की उपस्थिति में डाइवर्सिटी-डे मनाने का जो सिलसिला शुरू हुआ, वह आज तक अनवरत जारी है। हालांकि, पिछले दाे-तीन साल से यह आयोजन तय तिथि पर न होकर आगे–पीछे हो रहा है, मगर यह सिलसिला जरूर जारी है। इस बीच डाइवर्सिटी के वैचारिक आंदोलन के चलते उतर प्रदेश, बिहार, उत्तराखंड आदि प्रदेशों में नौकरियों से आगे चलकर उद्योग-व्यापार में हिस्सेदारी में डाइवर्सिटी का सिद्धांत फलित होता जरूर नजर आ रहा है।
इस बार 4 नवंबर को डाइवर्सिटी-डे का हिस्सा बनने वाले प्रमुख लोगों में बुद्ध शरण हंस, डॉ. लाल रत्नाकर, महेंद्र नारायण सिंह यादव, के. नाथ, फ्रैंक हुजूर, विद्या गौतम, डॉ. राम विलास भारती, अरसद सिराज मक्की, सत्येन्द्र पीएस, राजस्थान भीलवाड़ा के ख्यात दलित कार्यकर्ता भंवर मेघवंशी, गोरख पासवान, चंद्रभूषण सिंह यादव, विद्यानंद आजाद, आरके यादव, शिवचंद राम, के.सी. भारती, डॉ. जी. सिंह कश्यप, उमेश कुमार रवि, डॉ. अमरनाथ पासवान, डॉ. राजबहादुर मौर्य, डॉ. राहुल राज, डॉ. कौलेश्वर ‘प्रियदर्शी‘, डॉ. नानटून पासवान, अनूप श्रमिक, निर्देश सिंह, ज्ञानवती पासवान, डॉ. सीपी आर्या, राजवंशी जे.ए. आंबेडकर, मन्नू पासवान, इकबाल अंसारी, गणेश रवि, झारखंड के गढ़वा से रामाश्रय बौद्ध, कपिलेश प्रसाद, अरमा कुमारी समेत कई अन्य नाम शामिल हैं।
(काॅपी संपादन : प्रेम)
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