यौन शिकारियों को सक्षम बनाता है सवर्ण नारीवाद : निहारिका सिंह
सवर्ण स्त्रीवाद को लेकर देश में समय-समय पर बहस हाेती रही है। अब यह बहस #मीटू काे लेकर छिड़ गई है। और इस बहस में फिल्म अभिनेत्रियां आमने-सामने आ गई हैं। एक ताजा मामले में वर्ष 2005 की मिस इंडिया व बॉलीवुड अभिनेत्री निहारिका सिंह ने अभिनेत्री व निर्देशक नंदिता दास और ऐपवा की सचिव कविता कृष्णन की आलोचना करते हुए उन्हें यौन शिकारियों को ‘सक्षम’ करने वाली कहा है। एक लंबे लेख में निहारिका ने कहा है, “स्त्रियों के प्रति दुर्व्यवहार को कौन-सी चीजें स्थापित करती हैं? हम किसे सजा देने के लिए चुनते हैं और किसे माफ कर देने की इच्छा रखते हैं? भारत में तमाम महिलाओं पर होने वाली हिंसा एक आम बात है, लेकिन इस तथ्य से हर्गिज इनकार नहीं किया जा सकता कि कुछ विशेष प्रकार की हिंसा केवल दलित महिलाओं के लिए ही होती है। पितृसत्ता सभी रूपों में सभी महिलाओं पर एक समान रूप से काम करती है।”
निहारिका ने आगे लिखा कि “हम उन मांओं और पत्नियों की भूमिका को अनदेखा नहीं कर सकते, जो अपने बेटों और पतियों के अपराधों को छुपाने या समर्थन करने में बराबर रूप से जिम्मेदार हैं। उन्होंने कहा कि अब यह सोचने का समय आ गया है कि गर्वित कुलीन, सवर्ण स्त्रीवाद किसी को मुक्ति देने वाला नहीं है। नंदिता दास और कविता कृष्णन जैसी सभी शक्तिसंपन्न महिलाएं कुछ शिकारियों के साथ पेशेवर और राजनीतिक निष्ठा रखती हैं और उन्हें अपनी चुप्पी या एकजुटता के जरिए सबल बनाती हैं। जबकि ‘सर्वाइवर’ के द्वारा अब #मीटू आंदोलन में अपनी आवाज उठाने को चालबाजी बताया जा रहा है।”

वो आगे लिखती हैं, “यह सोचने का समय है कि महिमामंडित, उदार, सवर्ण स्त्रीवाद किसी को भी मुक्ति दिलाने नहीं जा रहा है। जब तक कि सवर्ण नारीवादी उस सत्ता संरचना को नहीं तोड़ती हैं, जिससे वे खुद लाभ उठाती आई हैं। इस देश में महिलाएं जलती रहेंगी। उत्पीड़ित और बदनाम होती रहेंगी। उनके सपने ध्वस्त होते रहेंगे। आवाजें चुप कर दी जाएंगी. शरीर पर हमले किए जाएंगे और सबूत मिटा दिए जाएंगे। ‘उदारवादी‘ और ‘भारतीय वामपंथियों‘ द्वारा उत्पीड़न के केवल चुनिंदा मामलों को उठाना उनकी सहूलियत को लाभ पहुंचाता है। हममें से अधिकांश लोगों ने ध्यान दिया होगा कि ये आखिर में अकादमियों में एक दलित छात्रा राया सरकार द्वारा उठाया जाता हैऔर बॉलीवुड में एक ब्यूटी कांटेस्ट विजेता तनुश्री दत्ता द्वारा उठाया जाता है; जबकि वे इसे वर्षों से चुपचाप देखती रही हैं।”
इस पर हमने ऐपवा की सचिव कविता कृष्णन से बात करके उनकी प्रतिक्रिया जाननी चाही, तो उन्होंने प्रति प्रश्न करते हुए कहा कि ये ‘सवर्ण नारीवाद’ क्या है? ये करेक्ट शब्द नहीं है। ये उसी तरह का शब्द है, जैसे- संघी लोग ‘फ्री सेक्स’ शब्द का उपयोग करते हैं। ‘सवर्ण नारीवाद’ शब्द दरअसल एक गाली है। जो नारीवादी होगा, वो सवर्णवाद के पक्ष में कैसे खड़ा होगा? उसे प्रश्रय कैसे देगा?

निहारिका सिंह के आरोप पर प्रतिक्रिया देते हुए कविता कृष्णन कहती हैं कि, ‘‘मैं और मेरा संगठन हमेशा दलित महिलाओं के उत्पीड़न में उनके साथ खड़े हुए हैं। निहारिका सिंह जो आरोप लगा रही हैं, वो निराधार और झूठ है। उनको ये आइडिया कहां से मिला? ये सब मेरे खिलाफ एक राजनीतिक साजिश के तहत प्रोपेगेंडा फैलाकर अभियान चलाया जा रहा है। वर्ना उनसे पूछिए कि कोई एक मामला वो बताएं, जिसमें मैं किसी भी आरोपी के साथ खड़ी हुई हूं। तरुण तेजपाल से लेकर महमूद फारुखी और खुर्शीद आलम तक; हर मामले में मैं पीड़ितों के साथ खड़ी रही। इसके लिए मुझे निशाना भी बनाया गया। मुझ पर ऑनलाइन हमले हुए, गाली-गलौज की गई। यहां तक कि मेरे संगठन में भी जो आरोपी रहे हैं, मैं उनके खिलाफ भी खड़ी हुई हूं। मुझ पर हमला वो लोग करवा रहे हैं, जिन्होंने पीड़ित स्त्रियों के लिए कभी कुछ नहीं किया है। निहारिका सिंह उनके साजिश का शिकार हो गई हैं। बावजूद इसके उनकी लड़ाई में मैं उनके साथ खड़ी हूं।’’

कविता कृष्णन ने राया सरकार मामले पर अपना रुख स्पष्ट करते हुए बताया कि उन्होंने राया सरकार द्वारा जारी लिस्ट की आलोचना सिर्फ इस बुनियाद पर की थी कि लिस्ट में केवल नाम दिए गए थे। किस पर क्या आरोप लगाया गया है? इसका जिक्र तक नहीं था। उन्होंने कहा कि, ‘‘मैंने लिस्ट की प्रक्रिया की आलोचना करते हुए यही कहा था कि अगर आप किसी को आरोपी बना रहे हो, तो उसे उसका आरोप भी तो बताओ। #मीटू का एक लोकतांत्रिक तरीका होना चाहिए। वहीं, जब पार्था चटर्जी ने अपना आरोप पूछा, तो उन्होंने उस लिस्ट से उनका नाम हटा दिया। इस तरह तो आंदोलन की विश्वसनीयता ही खत्म हो जाएगी।’’
वहीं, जब निहारिका सिंह द्वारा अपने ऊपर लगाए आरोप पर प्रतिक्रिया देने के लिए अभिनेत्री व फिल्म निर्देशक नंदिता दास से संपर्क किया गया, तो संपर्क नहीं हो पाया।
(काॅपी संपादन : प्रेम)
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