निषाद आरक्षण महारैली में नई पार्टी के नाम की घोषणा करेंगे मुकेश सहनी
बिहार में राजनीति तेजी से करवट ले रही है। सत्ता के नए-नए केंद्र उभर रहे हैं। विभिन्न जातीय और सामाजिक समूहों में नए-नए चेहरे उभर रहे हैं। सबका अपना संघर्ष है, सबकी अपनी रणनीति। ऐसे ही नवोदित नेताओं में से एक हैं- मुकेश सहनी यानी सन ऑफ मल्लाह। पिछले साढ़े तीन-चार वर्षों से निषाद जाति की उपजातियों को जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं। निषाद रैली के माध्यम से अपनी संख्यात्मक ताकत का अहसास भी कराते रहे हैं और दूसरी पार्टियों के लिए चुनौती भी बन रहे हैं। मुकेश सहनी 4 नवंबर को पटना के गांधी मैदान में ‘निषाद आरक्षण महारैली’ का आयोजन कर रहे हैं। महारैली के उद्देश्य और निषाद समाज के सम्मान की लड़ाई में आने वाली चुनौतियों को लेकर वीरेंद्र यादव ने उनसे बातचीत की। प्रस्तुत है उनसे फारवर्ड प्रेस की बातचीत के प्रमुख अंश :
गांधी मैदान में 4 नवंबर को आयोजित रैली का उद्देश्य क्या है?
पिछले साढ़े तीन-चार साल से निषाद विकास संघ के बैनर तले बिहार और उत्तर प्रदेश में सामाजिक सम्मान की लड़ाई लड़ रहे हैं। इस लड़ाई में समाज के अन्य वर्गों का भी भरपूर सहयोग मिल रहा है। इस संघर्ष का केंद्र बिहार रहा है। बिहार में दर्जनों रैली आयोजित कर हमने समाज के लोगों को जागृत किया। अधिकार हासिल करने की लड़ाई को मजबूत बनाया। 4 नवंबर को आयोजित ‘निषाद आरक्षण महारैली’ का उद्देश्य निषाद और उसकी उपजातियों के लिए आरक्षण में पर्याप्त हिस्सेदारी तय करना है। निषाद विकास संघ की मुख्य मांग निषाद और उसकी उपजातियों को अनसूचित जनजाति में शामिल करना है। निषाद जाति को पश्चिम बंगाल, दिल्ली, उड़ीसा आदि राज्यों में अनुसूचित जाति का दर्जा प्राप्त है, जबकि दक्षिण भारत के कई राज्यों में अनुसूचित जनजाति का दर्जा प्राप्त है। बिहार में इसे अति पिछड़ा वर्ग का दर्जा प्राप्त है, जबकि सामाजिक रूप से उनकी स्थिति आदिवासियों के अनुरूप है। इसलिए निषाद विकास संघ निषाद को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने का मांग कर रहा है।
बिहार में अनुसूचित जनजाति को मात्र एक प्रतिशत आरक्षण प्राप्त है, जबकि अतिपिछड़ी जातियों को 18 प्रतिशत आरक्षण प्राप्त है। वैसे में निषाद समाज को आरक्षण के कोटे में नुकसान उठाना पड़ेगा?
हम आपकी इस बात से सहमत नहीं हैं। निषाद और उसकी उपजातियों की संख्या 14 प्रतिशत है। यदि इनको अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिलता है, तो जनजाति की आबादी राज्य में बढ़ जाएगी। इसके साथ ही राज्य सरकार को अनुसूचित जनजाति का आरक्षण कोटा भी बढ़ाना पड़ेगा। सरकार किसका कोटा काटेगी, यह सरकार की समस्या है। इसके बाद हम केंद्रीय सेवाओं में साढ़े सात प्रतिशत आरक्षण का दावेदार हो जाएंगे। हम अन्य जातियों की तुलना में अधिक सक्षम और संसाधन संपन्न हैं। इसका लाभ समाज को मिल सकता है।
आपके आंदोलन का कोई असर नहीं दिख रहा है?
ऐसी बात नहीं है। हमने पिछले बिहार विधानसभा चुनाव के पहले पटना के गांधी मैदान में विशाल निषाद रैली की थी। इसमें लाखों की संख्या में निषाद समाज के लोग पटना पहुंचे। इससे सरकार परेशान हो गई थी। दूसरी पार्टियों को भी हमारी ताकत का अहसास हुआ। रैली के बाद सरकार इतना दबाव में आ गई थी कि बिहार सरकार ने केंद्र सरकार से निषाद जाति को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने की सिफारिश की। इसके बाद केंद्र सरकार ने राज्य सरकार से एंथ्रोपाेलाॅजिकल सर्वे की रिपोर्ट मांगी। हाल ही में राज्य सरकार ने रिपोर्ट भेजी है। हमारे ही आंदोलन का असर था कि मत्स्य जीवी सहयोग समिति के सदस्य का पद मछुआरा जाति के लिए आरक्षित रखा। इसके पहले सरकार ने इसे सबके लिए खोल दिया था। हमारे आंदोलन का राजनीति असर था कि दोनों खेमों की ओर से हमें राज्यसभा जाने का आफर मिला, जिसे हमने ठुकरा दिया। विधान सभा चुनाव में एनडीए ने 12 और महागठबंधन ने 15 उम्मीदवार निषाद समाज से बनाए। हमारी कई सहयोगी विधायक भी बने।
आपका यह आंदोलन व्यक्तिवादी ज्यादा और नीतिवादी कम दिखता है।
हर आंदोलन की अगुआई कोई न कोई व्यक्ति ही करता है। जो व्यक्ति अगुआई करता है, उसकी पहचान ज्यादा मुखर हो जाती है। आंदोलन की पहचान उसी व्यक्ति से होने लगती है। हमारा आंदोलन इसका अपवाद नहीं है। लेकिन, हम आंदोलन नहीं हैं। आंदोलन निषाद क्रांति है, निषाद विकास संघ है। निषाद विकास संघ समग्र निषाद के विकास के लिए प्रतिबद्ध है। हम शिक्षा और आर्थिक सशक्तीकरण की दिशा में काम कर रहे हैं। राज्य भर में यात्रा करके लोगों को जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं। निषाद विकास संघ सामाजिक आयोजनों का मंच भी बन रहा है। निषाद विकास संघ राजनीतिक लक्ष्यों को हासिल करने के लिए राजनीतिक दल बना रहा है। इसके नाम की घोषणा 4 नवंर की रैली में की जाएगी।
आपकी पार्टी का नाम क्या होगा?
पार्टी के नाम की घोषणा गांधी मैदान में की जाएगी। लाखों लोगों के समक्ष की जाएगी। नाम की भी अपनी सार्थकता होगी, संदेश होगा। हमने खुद लंबा संघर्ष किया है। हम आम लोगों की पीड़ा और जरूरतों को समझते हैं। समाज की पीड़ा को कम करने लिए हमने राजनीति में आने का निर्णय लिया है। इसी दिशा में काम भी कर रहे हैं।
आपका राजनीतिक लक्ष्य क्या है?
हम अपने राजनीतिक दल के माध्यम से समाज के लोगों की राजनीति में सक्रियता, हिस्सेदारी और भागीदारी बढ़ाना चाहते हैं। हम एक मजबूत सामाजिक ताकत हैं और हमारी कोई उपेक्षा नहीं कर सकता है। हमारे समाज को जो गठबंधन सम्मानजनक हिस्सेदारी देगा, हम उसी के साथ गठबंधन करेंगे। इस संबंध में हम अपने साथियों के साथ बैठक कर कोई निर्णय लेंगे।
(काॅपी संपादन : प्रेम)
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