राष्ट्रीय जनता दल (राजद) प्रमुख लालू प्रसाद रांची के रिम्स अस्पताल में इलाजरत हैं। इन दिनों उनकी परेशानी का सबब सियासी उठापटक या फिर अदालती कार्रवाइयां नहीं हैं, बल्कि वे अपने परिवार में आए तूफान को लेकर परेशान हैं। दरअसल, पांच महीने पहले उनके बड़े बेटे तेजप्रताप यादव की शादी बिहार के भूतपूर्व मुख्यमंत्री दारोगा प्रसाद राय की पोती ऐश्वर्या से हुई। उनके पिता चंद्रिका राय बिहार सरकार के पूर्व मंत्री और वर्तमान में विधायक हैं। शादी की पहल किसी और ने नहीं, बल्कि स्वयं राबड़ी देवी ने की थी। शादी हुई भी खूब धूमधाम से।
फिर आखिर ऐसा क्या हुआ कि तेजप्रताप ने बीते दिनों तलाक की अर्जी डाल दी। उन्होंने मीडिया को अब तक जो बताया है, उसके मुताबिक उनके और ऐश्वर्या के बीच नहीं बनती है। फिर क्या था, यह खबर देश भर की मीडिया में चर्चा का विषय बन गई। चटखारे वाली खबर थी, सो जिसने सुना और पढ़ा- अपने-अपने हिसाब से मतलब निकालने लगा। किसी को तेजप्रताप में दोष नजर आने लगा, तो किसी ने ऐश्वर्या को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया।

इस खबर ने ‘जितने मुंह, उतनी बातें’ वाली कहावत चरितार्थ कर दी। इससे पहले कि हम या आप कोई और आकलन करें, कुछ तथ्यों पर नजर डालते हैं।
तेजस्वी से पहले लालू ने तेजप्रताप में देखा था अपना भविष्य
वर्ष 2013 में जब पहली बार तेजस्वी यादव राजनीति में सक्रिय हुए, तभी यह बात सियासी गलियारे में फैल चुकी थी कि लालू अपना राजनीतिक उत्तराधिकार तेजस्वी को ही सौंपेंगे। लेकिन, इससे पहले 2009 में उनकी सोच दूसरी थी। वे अपने बड़े बेटे तेजप्रताप को नेता बनाना चाहते थे और तेजस्वी को क्रिकेटर के रूप में आगे बढ़ाना चाहते थे। यही वजह थी कि 2009 में लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान तेजप्रताप अपने पिता के साथ मंचों पर नजर आते थे और तेजस्वी दिल्ली के क्रिकेट स्टेडियम में। परंतु, उस लोकसभा चुनाव में राजद को भारी शिकस्त का सामना करना पड़ा। स्वयं लालू प्रसाद भी चुनाव हार गए, वह भी पाटलिपुत्र लोकसभा क्षेत्र से; जहां मुस्लिम-यादव किला काफी मजबूत माना जाता था।

पटना में सीमित रहा तेजप्रताप का बचपन
लालू-राबड़ी की नौ संतानों में एक तेजप्रताप ही ऐसे हुए, जिनकी पढ़ाई-लिखाई या यों कहिए कि बचपन से लेकर किशोरावस्था तक की उम्र पटना में या तो एक-अणे मार्ग में बीती; या फिर सात सर्कुलर रोड पर बीती, जहां इन दिनों राबड़ी देवी का सरकारी आवास है। वे केवल इंटर तक ही पढ़ाई क्यों कर सके, इसकी एक संभावना यह भी हो सकती है कि जिन दिनों उन्हें मार्गदर्शन की आवश्यकता थी, उनके पिता चारा घोटाले के मामले में अदालत और जेल के चक्कर लगा रहे थे और उनकी मां राबड़ी देवी बिहार में सत्ता के शीर्ष पर काबिज थीं। हालांकि, तेजस्वी का बचपन ऐसा नहीं रहा। उन्हें उनकी बड़ी बहन मीसा भारती व उनके पति शैलेश कुमार ने दिल्ली में पढ़ाया-लिखाया। राजलक्ष्मी (लालू-राबड़ी की सबसे आखिरी संतान) की पढ़ाई-लिखाई भी इन्हीं दोनों के सान्निध्य में हुई।
नेता के पहले बिजनेसमैन
तेजप्रताप राजनीति के लिए मिसफिट हैं, इसका अहसास लालू प्रसाद को भी हो ही चुका था। इसका प्रमाण बाद में तेजस्वी और मीसा भारती की सक्रियता के रूप में सामने आया। लेकिन, लालू तेजप्रताप का करियर बनाना चाहते थे। सूत्रों की मानें, तो इसकी इच्छा स्वयं तेजप्रताप ने ही व्यक्त की थी। यही वजह रही कि लालू प्रसाद ने पटना के अनीसाबाद इलाके में राष्ट्रीय राजमार्ग के नजदीक पेट्रोल पंप की व्यवस्था कर दी। इसके पहले औरंगाबाद जिले में मोटरसाइकिल का एक शोरूम भी खुलवा दिया। नाम रखा गया – लारा ऑटोमोबाइल। लारा? मतलब- लालू-राबड़ी।

विधायकी के बाद मंत्री पद के लिए रूठने-मनाने का दौर
ऐसा नहीं है कि तेजप्रताप यादव अपने परिवार में पहली बार रूठे हैं और उन्हें मनाने की कवायद की जा रही है। इसके पहले जब 2015 में विधानसभा चुनाव होने थे, तब भी ऐसा ही दृश्य लालू-राबड़ी आवास में सामने आया था। लालू प्रसाद चाहते थे कि तेजप्रताप अपना बिजनेस संभालें और तेजस्वी राजनीति। लेकिन, तेजप्रताप चुनाव लड़ना चाहते थे और वह भी सुरक्षित सीट से। तेजप्रताप ने महुआ विधानसभा की सीट मांगी। सूत्रों की मानें तो रूठने-मनाने का दौर चला और राबड़ी देवी की पहल पर उन्हें टिकट मिला और वे विधानसभा पहुंच गए। फिर शुरू हुआ एक और दौर। तेजस्वी उप मुख्यमंत्री बनाए गए। तेजप्रताप ने जिद ठान ली कि उन्हें भी तेजस्वी के जैसे तीन विभाग चाहिए। लालू और राबड़ी फिर बेटे की जिद के आगे झुके और स्वास्थ्य विभाग और वन व पर्यावरण विभाग सहित तीन विभागों की जिम्मेदारी दी गई। लालू तेजप्रताप की योग्यता जानते थे, इसलिए स्वास्थ्य महकमे में आर.के. महाजन को प्रधान सचिव नियुक्त कराया। महाजन उनके तब से करीबी माने जाते हैं, जब से लालू दिल्ली में रेल मंत्री थे।

मंत्री बनने के बाद बंगले की चाह
तेजप्रताप ने मंत्री बनने के साथ ही एक अजीबो-गरीब फैसला लिया। वह फैसला था अलग बंगले की चाह। मीडिया में यह खबर सुर्खियों का केंद्र बनी। कहा गया कि लालू के मंत्री पुत्र अब परिवार के साथ नहीं रहना चाहते। खैर, तेजप्रताप को वह बंगला पसंद था, जिसमें पहले विजय कुमार चौधरी (वर्तमान में बिहार विधानसभा के अध्यक्ष) रहते थे। बंगला पुराना था, सो उसे अपने लायक बनवाने के लिए तेजप्रताप ने कोई काेर-कसर नहीं छोड़ी। स्वीमिंग पूल से लेकर झोपड़ी तक। वे दिन भर झोपड़ी में रहते। यहीं कार्यकर्ताओं से मिलते और विभागीय कामकाज भी यहीं से निष्पादित करते। उन दिनों जमीन पर बैठकर फाइल पर हस्ताक्षर करते। तेजप्रताप की ये तस्वीरें सोशल मीडिया में काफी लोकप्रिय हुई थीं।
भाजपा ने दी तेजप्रताप को शह
कहने की आवश्यकता नहीं कि भाजपा की नजर में तेजप्रताप लालू परिवार की सबसे कमजोर कड़ी हैं। इसका सार्वजनिक प्रदर्शन भाजपा ने तब किया, जब केंद्र सरकार ने तेजप्रताप को वाई श्रेणी की सुरक्षा ऑफर की। हालांकि, लालू प्रसाद ने समय रहते एक्शन लिया और उनके कहने पर वाई श्रेणी की सुरक्षा तेजप्रताप ने नहीं ली। लेकिन, इस एक पहल ने तेजप्रताप का पाॅलिटिकल लिटमस टेस्ट तो कर ही दिया था।

तेजप्रताप को परेशान करते थे बंगले के भूत और स्लम के गरीब
लालू प्रसाद के बड़े पुत्र तेजप्रताप कर्मकांडी रहे हैं। प्रारंभ से ही उनकी रुचि इस्कॉन से जुड़ गई थी। जिन दिनों लालू का प्रभुत्व चरम पर था और तेजप्रताप किशोर थे, तब मुख्यमंत्री आवास में इस्कॉन से जुड़े लोगों की आवाजाही नेताओं और कार्यकर्ताओं से भी अधिक सुगम थी। बंगले पर कब्जा जमाने के पहले तेजप्रताप ने भूमि पूजन कराया, साथ ही देवी पूजा भी। तब उनकी पूजा में लालू परिवार का कोई सदस्य शामिल नहीं हुआ; सिवाय उनकी मां राबड़ी देवी के। इसी बंगले में कथित तौर पर भूत-प्रेत तेजप्रताप को तब परेशान करने लगे, जब सुशील मोदी लालू परिवार पर एक के बाद एक हमला बोल रहे थे। इससे बचने के लिए तेजप्रताप ने बंगले में झाड़-फूंक करवाया और ब्राह्मणों की सलाह पर बंगले का मुख्य दरवाजा बंद करवा दिया। इसके साथ ही बंगले के पीछे के हिस्से में एक मुख्य द्वार बनवाया गया। वहां सड़क पर गरीब रहते थे, जिन्हें तेजप्रताप के प्रताप का कोप सहना पड़ा।

बहरहाल, तेजप्रताप यादव का अब तक का आचार-व्यवहार ऐसा रहा है, जिसे सनकी अथवा औघड कहा जा सकता है। अब ऐश्वर्या के साथ तलाक का मसला भी ऐसा ही है। देखना दिलचस्प होगा कि तेजप्रताप इस बार मानेंगे या नहीं। मानेंगे, तो किस शर्त पर। और फिर इस बात की क्या गारंटी कि वह फिर न रूठें।
(कॉपी संपादन : प्रेम/एफपी डेस्क)
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