अफ्रीकी छात्रों के लगातार बढ़ते विरोध के बाद घाना यूनिवर्सिटी के कैंपस से बीते 11 दिसंबर 2018 को महात्मा गांधी की प्रतिमा हटा दी गई। इनका विरोध इस बात को लेकर है कि गांधी का अफ्रीकियों के प्रति विचार अच्छा नहीं था, वो उन्हें नीच मानते थे, इसलिए उनकी प्रतिमा को लगाया जाना गलत है।
बता दें कि गांधी की यह प्रतिमा दो साल पहले घाना की राजधानी एक्रा स्थित यूनिवर्सिटी कैंपस में लगायी गई थी अभी वहां केवल चबूतरा है, प्रतिमा वहां से नदारद है। प्रतिमा हटाए जाने से यूनिवर्सिटी के छात्र खुश हैं और यूनिवर्सिटी प्रशासन के इस कदम का स्वागत कर रहे है।यूनिवर्सिटी के एक छात्र बेंजामिन मेनसॉ ने इसे घाना के निवासियों की जीत बताया है क्योंकि उक्त प्रतिमा बार-बार उन्हें अहसास कराता था कि वो नीच हैं। उसे हटा देने से उन सबों का मनोबल बढ़ा है।
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दो साल पहले लगायी गयी थी घाना यूनिवर्सिटी के कैंपस में गांधी की प्रतिमा
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अफ्रीकी छात्र व फैकल्टी लगातार कर रहे थे इसका विरोध
यूनिवर्सिटी के इस छात्र का कहना है कि रिसर्च स्कॉलर्स गांधी की थ्योरी का अध्ययन करते हैं और उनकी चर्चित सविनय अवज्ञा आंदोलन का तो एक्टीविस्ट मार्टिन लूथर किंग जूनियर तक मुरीद थे क्योंकि इसके जरिए ही भारत से ब्रिटिश को जाना पड़ा था लेकिन उन्हीं गांधी द्वारा साऊथ अफ्रीका के लोगों व वहां के पूरे समुदाय के लिए काफी आपत्तिजनक विचार रखे गए हैं।
बहुजन विमर्श को विस्तार देतीं फारवर्ड प्रेस की पुस्तकें
साल 2015 में लिखी गई एक किताब जिसे दो साउथ अफ्रीकी लेखकों ने लिखा है, उसका हवाला देते हुए बताया जा रहा है कि ऐसा कई बार हुआ है जब गांधी ने शिकायत की है कि साउथ अफ्रीका में उन्हें रेल के फर्स्ट क्लास कंपार्टमेंट में चढ़ने नहीं दिया गया और मजबूरन उन्हें अफ्रीकंस के साथ वाले कंपार्टमेंट में बैठकर सफर तय करना पड़ा। अफ्रीकी छात्रों का कहना है कि इस तरह का विचार क्या दर्शाता है? उनके इस विचार से क्या यह साबित नहींं होता है कि उनकी नजर में अफ्रीकी नीच हैं। अफ्रीकी लोगों के साथ बैठ जाने से क्या उनकी इज्जत घट गई। भारतीय सभ्य समाज में रहने वाले व्यक्ति से इस तरह के विचार की आशा नहीं थी।

हालांकि गांधी के प्रति झुकाव वाले स्टूडेंट्स का कहना है कि अफ्रीकी लोगों के प्रति गांधी के विचार पक्षपातपूर्ण है लेकिन उसे नजरंदाज करने की जरूरत है क्योंकि उस समय की स्थितियों व तब की दोषपूर्ण व्यवस्था के हिसाब से उन्होंने यह बात कही थी। उन्होंने सामाजिक न्याय के लिए जो अभियान शुरू किया था, वो केवल भारत के लिए नहीं बल्कि पूरे विश्व के लिए था और इसके जरिए अफ्रीका में कई सामाजिक अधिकार अभियान भी हुए हैं। दक्षिण अफ्रीका के प्रथम अश्वेत राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला ने तो गांधीवादी विचारों से प्रेरणा लेकर रंगभेद के खिलाफ अपने संघर्ष की शुरुआत की थी और दक्षिण अफ्रीका के दूसरे गांधी बन गए थे। भारत से उनके लगाव का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि वह भारत का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न पाने वाले पहले विदेशी थे। इसलिए गांधी व उसके सिद्धांतों को नकारना गलत होगा।

वहीं अफ्रीकन स्टडीज के भाषा, साहित्य व ड्रामा इंस्टीट्यूट के प्रमुख ओबेड कंबोज उपरोक्त तर्क से सहमति व्यक्त नहीं करते। उनका कहना है कि गांधी की प्रतिमा को हटाना जरूरी था क्योंकि यह आत्मसम्मान से जुड़ा मामला था। अगर हम अपने आप के लिए सम्मान नहीं रखेंगे और अपने आंदोलनों के नायकों को नजरंदाज करके उनकी तारीफ करेंगे जो हमारा सम्मान नहीं करते हैं और हमें इंफीरीयर यानी नीच समझते हैं। यह एक बहुत बड़ा इश्यू है। मेरा साफ मानना है कि अगर हम अपने नायकों की इज्जत नहीं करेंगे, खुद के लिए आत्मसम्मान नहीं रखेंगे तो दुनियां क्यों हमारी इज्जत करेगी।
वहीं प्रशासन की तरफ से आधिकारिक तौर पर कहा जा रहा है कि प्रतिमा को कहीं और किसी दूसरे शहर में लगाया जाएगा ताकि घाना की भारत के साथ जो दोस्ताना संबंध हैं, वह बरकरार रहे। हालांकि गांधी की प्रतिमा लगाए जाने का विरोध करने वालों का कहना है कि उन्हें पता चला है कि दूसरे शहर ब्लेनटायर में प्रतिमा लगाने की योजना है लेकिन ऐसा नहीं होने दिया जाएगा।
(कॉपी संपादन : एफपी डेस्क)
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