भारत सरकार द्वारा उच्च शिक्षा के लिए रिसर्च स्कॉलरों[1] को दी जाने वाली फेलोशिप की राशि में 15 फीसदी की वृद्धि किए जाने की योजना है। केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय के विश्वस्त सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, इसे इसी सप्ताह से लागू किया जाना है। फारवर्ड प्रेस द्वारा इस संबंध में खबर प्रकाशित किए जाने के बाद अनेक रिसर्च स्कॉलरों ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। रिसर्च स्कॉलरों का कहना है उनकी मांग 80 से 100 फीसदी बढ़ोतरी की है। महज 15 फीसदी की बढ़ोतरी करना उनकी समस्याओं का मजाक उडाना होगा। उन्होंने कहा कि अगर सरकार 80 फीसदी से कम बढ़ोतरी करती है, तो शोधार्थियों को मजबूरन सड़कों पर उतरना होगा।
सोसायटी ऑफ यंग साइंटिस्ट्स के अध्यक्ष लाल चंद्र विश्वकर्मा ने फारवर्ड प्रेस बातचीत में कहा कि, “हम लोग शुरू से ही सरकार से वाजिब वृद्धि की मांग कर रहे हैं। हम अपने देश, समाज और मानवता के लिए दिन-रात एक करके काम करते हैं। इसके लिए हम सरकार से अपेक्षा रखते हैं कि वह हमें कम से कम इतना तो दे, ताकि हम सम्मान के साथ जी सकें। यह भी महत्वपूर्ण है कि दिन पर दिन महंगाई बढ़ती जा रही है। सरकारी कर्मचारियों को सातवां वेतन आयोग का लाभ दिया जा रहा है। फिर हमारे साथ भेदभाव क्यों?”
-
केंद्र सरकार के प्रिंसिपल साइंटिफिक एडवाइजर ने ट्वीट करके दी जानकारी
-
मंत्रालय द्वारा फेलाेशिप की राशि में 15 फीसदी वृद्धि की संभावना
-
शाेधार्थी कर रहे हैं शत-प्रतिशत वृद्धि की मांग

विश्वकर्मा ने दावा किया कि, “हर चार वर्ष पर फेलोशिप में वृद्धि का प्रावधान है। [2] परंतु, हर बार सरकार इसे करने में आना-कानी करती है। इससे पहले 2014 में भी जब वृद्धि की गई थी, तब इसके लिए आंदोलन करना पड़ा था। लेकिन, उस समय भारत सरकार के प्रिंसिपल साइंटिफिक एडवाइजर के. विजय राघवन ने आश्वस्त किया था कि अब रिसर्च स्कॉलरों को फेलोशिप की वृद्धि के लिए आंदोलन नहीं करना पड़ेगा। सरकार ‘ऑटो-एनहांसमेंट’ की तर्ज पर वृद्धि कर देगी। परंतु, ऐसा नहीं हुआ। चार वर्ष पूरे होने के बाद छह माह से अधिक समय और बीत गया, लेकिन फेलोशिप बढ़ाने के लिए कोई पहल नहीं की गई।”
यह भी पढ़ें : रिसर्च स्कॉलरों के लिए खुशखबरी, इसी सप्ताह होगी फेलोशिप में वृद्धि
विश्वकर्मा ने कहा कि, “हम लोगों ने बीते 5 नवंबर 2018 को एक पत्र एम्स के निदेशक प्रो. बलराम भार्गव को लिखा था। इस पत्र के मुताबिक, 2010 में जेआरएफ (जूनियर रिसर्च फेलोशिप) के तहत 16,000 रुपए दिए जाना तय किया गया। इसे 2014 में बढ़ाकर 25,000 रुपए कर दिया गया। इस बार इसे बढ़ाकर कम से कम 50,285 रुपए किया जाना चाहिए। इसी प्रकार एसआरएफ (सीनियर रिसर्च फेलोशिप) की राशि 2014 के 28,000 रुपए से बढ़ाकर 56,320 रुपए हो।”

नेशनल इंस्टीट्यूट फार्मास्यूटिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (एनआईपीएआर) के पीएचडी स्कॉलर नवनीत कुमार सिंह ने ईमेल के जरिए बताया कि “हम लोगों ने पांच मांगें सरकार के समक्ष रखी हैं। इनमें सरकार को 10 दिनों का अल्टीमेटम दिया जाना भी शामिल है। हम लोगों ने सरकार से कहा है कि वह 10 दिसंबर 2018 तक फेलोशिप में वैसे ही वृद्धि करे, जैसा कि हम लोगों ने अपने ज्ञापन में प्रस्तावित किया है। इसके अलावा हम लोगों ने यह भी कहा है कि यह वृद्धि अप्रैल 2018 के प्रभाव से लागू हो, क्योंकि पहली वृद्धि अप्रैल 2010 में लागू हुई थी। साथ ही हम लोगों ने यह भी कहा कि सरकार एक ऐसा सिस्टम डेवलप करे, ताकि हर चार साल पर फेलोशिप की राशि में समय-सीमा के तहत बिना किसी झंझट के बढ़ोतरी हो।”
बहरहाल, फारवर्ड प्रेस को ईमेल भेजकर महज 15 प्रतिशत की बढ़ोतरी की योजना को अपर्याप्त बताने वालों में डिपार्टमेंट ऑफ केमिकल इंजीनियरिंग, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, मुंबई के शोधार्थी नीरव लेकिनवाला; डिपार्टमेंट ऑफ मेकेनिकल इंजीनियरिंग, एमएएनआईटी, भोपाल के प्रेम कुमार चौरसिया; डिपार्टमेंट ऑफ अप्लाइड मैकेनिक्स, इंडियन इस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, दिल्ली के दीपक चौहान; इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस की शोधार्थी कनिष्का शर्मा; सीएसआईआर-आईएचबीटी, पालमपुर की आरती शर्मा; सीसीएमबी, हैदराबाद के पंकज वर्मा; इंडियन इंस्टीच्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी, वाराणसी के सुमित कुमार आदि शामिल हैं। इन्होंने बताया कि “हमने 20 नवंबर 2018 को देश भर के कई उच्च अध्ययन संस्थानों[3]से संबद्ध शोधार्थियों के संगठनों ने भारत सरकार के प्रिंसिपल साइंटिफिक एडवाइजर के. विजय राघवन को संयुक्त रूप से ज्ञापन सौंप कर 100 फीसदी बढोत्तरी की मांग की थी। लेकिन सरकार हमारी जायज मांगों को मानने में आनकानी कर रही है। इसका व्यापक विरोध किया जाएगा।”
(कॉपी संपादन : प्रेम)
[1] जेआरएफ (जूनियर रिसर्च फेलोशिप), एसआरएफ (सीनियर रिसर्च फेलोशिप), आरए (रिसर्च एसोसिएट), आरओ (रिसर्च ऑफिसर), एसआरओ (सीनियर रिसर्च ऑफिसर) और पीडीएफ (पोस्ट डॉक्टरल फेलोशिप
[2] फारवर्ड प्रेस हर चार साल पर वृद्धि के प्रावधान के दावे की पुष्टि नहीं करता है। यह दावा संबंधित व्यक्ति के बयान पर आधारित है।
[3] डीबीटी (डिपार्टमेंट ऑफ बायोटेक्नोलॉजी), सीएसआईआर (काउंसिल अॉफ साइ्रटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च), आईसीएमआर (इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च), डीएई (डिपार्टमेंट ऑफ एटॉमिक एनर्जी), डीएसटी (डिपार्टमेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी), आईसीएआर (इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चर रिसर्च), एमएचआरडी (मिनिस्ट्री ऑफ ह्यूमन रिसोर्स डेवलपमेंट), डीआरडाीओ (डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट आर्गेनाइजेशन), सीसीआरएच (सेंट्रल काउंसिल फॉर रिसर्च इन होम्योपैथी), सीसीआरएएस (सेंट्रल काउंसिल फॉर रिसर्च इन आयुर्वेदिक साइंस), सीसीआरयूएम (सेंट्रल काउंसिल फॉर रिसर्च इन यूनानी मेडिसीन), सीसीआईएम (सेंट्रल काउंसिल फॉर रिसर्च इन इंडियन मेडिसीन), एसईआरबी (साइंस एंड इंजीनियरिंग रिसर्च बोर्ड) के अलावा आयुष मंत्रालय के द्वारा प्रायोजित संस्थाएं और देश भर के सभी विश्वविद्यालय आदि।
फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्त बहुजन मुद्दों की पुस्तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्य, सस्कृति व सामाजिक-राजनीति की व्यापक समस्याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in
फारवर्ड प्रेस की किताबें किंडल पर प्रिंट की तुलना में सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं। कृपया इन लिंकों पर देखें