वैश्विक अध्ययनों का नया सार यह कह रहा है कि भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) में देरी से प्रवेश के चलते नौकरशाहों का प्रदर्शन कमजोर हो रहा है। इस आशय के अध्ययन शिकागो विश्वविद्यालय, यूसी बर्कले और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के स्कॉलरों ने किए। इसके बाद नेशनल इंस्टीच्यूशन फॉर ट्रांसफर्मिंग इंडिया (नीति आयोग) ने सिविल सेवाओं के लिए आईएएस में प्रवेश की अधिकतम आयु सीमा को सामान्य वर्ग के लिए 32 साल से घटाकर 27 वर्ष करने की सिफारिश की। हालांकि उसके इस प्रस्ताव को केंद्र सरकार ने खारिज कर दिया है।
हालांकि नीति आयोग की सिफारिश को देखते हुए ऐसा लग रहा था कि सरकार उस पर अमल करेगी। इसके साथ ही यह चर्चा का विषय भी बन गया। कई सवाल भी उठाए गए। लेकिन इस बीच 25 दिसंबर 2018 को पीएमओ में पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय (स्वतंत्र प्रभार) के राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह ने एक ट्वीट करके कहा कि सरकार ने सिविल सेवा परीक्षाओं में ‘भाग लेने के लिए आयु संबंधी मानदंड में बदलाव किए जाने को लेकर सरकार द्वारा कोई कदम नहीं उठाया गया है। सभी रिपोर्ट्स और अटकलों पर विराम लग जाना चाहिए।
MoS PMO Dr. Jitendra Singh to ANI: There is no move by Government to alter the age criteria of eligibility to appear in civil service examinations. Reports and speculations should be put to rest. (file pic) pic.twitter.com/81ye4L6DUv
— ANI (@ANI) December 25, 2018
जाहिर है अगर 2022-23 तक नीति आयोग की सिफारिश के मुताबिक अमल किया जाता तो आईएएस परीक्षा देने के लिए आरक्षित श्रेणी में ओबीसी के लिए अधिकतम आयु 30 वर्ष और एससी-एसटी के 37 से घटकर 32 वर्ष हो जाएगी। जिन अध्ययनों को नीति आयोग ने आधार माना है वह अमूमन देश की ऊंची और संपन्न जातियों के सामाजिक और आर्थिक पृष्ठभूमि और व्यवहार से संबंधित है।
दरअसल, शिकागो बूथ स्कूल ऑफ बिजनेस, यूसी बर्कले हास स्कूल ऑफ बिजनेस और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के विद्वानों के हालिया शोध से पता चलता है कि भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) में प्रवेश स्तर पर अधिकतम आयु सीमा कम करने से अधिकारियों की सेवा अवधि बढ़ाकर और कैरियर के प्रोत्साहन में सुधार करके उनके प्रदर्शन को बेहतर किया जा सकता है।

नीति आयोग ने सरकार से सिफारिश की कि 2022-23 तक सिविल सर्विसेज में सामान्य वर्ग के अभ्यर्थियों की अधिकतम आयु घटाकर 27 साल कर दी जाए। साथ ही सुझाव दिया गया कि हर तरह की प्रशासनिक सेवा के लिए केवल एक ही परीक्षा कराई जाए। आयोग ने सभी सेवाओं में भर्ती के लिए सेंट्रल टैलेंट पूल बनाए जाने का सुझाव दिया गया है। इसमें कैंडिडेट्स को उनकी क्षमता के अनुसार विभिन्न सेवाओं में लगाया जाए। नीति आयोग की रिपोर्ट ‘स्ट्रेटजी फॉर न्यू इंडिया @75’ में सुझाव दिया गया है कि सिविल सर्विसेज में समानता लाने के लिए इनकी संख्या में भी कमी की जाए। बता दें कि इस समय केंद्र और राज्य स्तर पर 60 से ज्यादा अलग-अलग तरह की सिविल सर्विसेज हैं जिनके लिए अलग-अलग परीक्षाएं होती हैं।
एक रिपोर्ट के अनुसार अभी सिविल सर्विसेज में सलेक्ट होने वाले अभ्यर्थियों की औसत आयु साढ़े 25 साल है और भारत की एक-तिहाई से ज्यादा आबादी की उम्र इस समय 35 साल से कम है। कहा गया है कि नौकरशाही में शीर्ष स्तर पर विशेषज्ञों की लेटरल एंट्री को भी बढ़ावा दिया जाना चाहिए ताकि हर क्षेत्र में ज्यादा से ज्यादा विशेषज्ञों की सेवाएं मिल सकें।
बहरहाल, जानकारों का कहना है कि अधिकांश सिविल सेवाओं में कैरियर की प्रगति, जिसमें आईएएस भी कोई अपवाद नहीं है, मुख्य रूप से समय-आधारित है, जो अधिक उम्र में प्रवेश करते हैं, उन्हें शीर्ष वेतनमान तक पहुंचने के कम अवसर होते हैं। मसलन मुख्य सचिव स्तर के पदों के लिए अर्हता प्राप्त करने के लिए अधिकारियों को आमतौर पर कम से कम 30 साल की सेवा करनी होती है। ऐसे में जबकि 60 वर्ष में सेवानिवृत्ति की स्थिति होती है तो इसका मतलब है कि 30 वर्ष की आयु में सेवा में आने वाले अधिकारी के पास सिविल सेवा के शीर्ष पर आने का कोई मौका नहीं होगा।
नीति आयोग के मुताबिक इससे सिविल सर्विसेज में काम करने वाले के प्रदर्शन कई तरह से प्रभावित करेगा। सबसे पहले, जो अधिक उम्र में प्रवेश करते हैं, उनके हतोत्साहित होने की अधिक संभावना दिखती हैं। वरिष्ठता- इस पर आधारित पदोन्नति संबंधी बाधाओं को देखते हुए, वे इसे शीर्ष पर जगह नहीं बनाएंगे, भले ही वे कितनी कड़ी मेहनत करें।

आयोग द्वारा यह भी कहा गया कि अधिक उम्र में प्रवेश को कम करने से नौकरशाहों के करियर के विस्तार में मदद मिलेगी और यह सुनिश्चित होगा कि सिविल सेवा में शीर्ष स्तर के पदों को पाने के लिए प्रतिस्पर्धा करने के लिए रास्ता साफ होगा जिससे कड़ी मेहनत करने के लिए प्रेरणा भी मिलेगी। एक अध्ययन में पता चलता है कि यह सिर्फ अनुमान भर नहीं है। रिटायर आईएएस अधिकारियों के एक बड़े आंकड़े को तुलनात्मक रूप से देखा गया तो पता चला कि जो देर से या ज्यादा उम्र में आईएएस बने, उनमें वास्तव में शीर्ष वेतनमान तक पहुंचने की संभावना नगण्य होती है।
लगभग सभी आईएएस अधिकारी सुपरटाइम स्केल (न्यूनतम 16 वर्ष की सेवा की आवश्यकता) तक पहुँचते हैं जबकि देर से आईएएस बने अभ्यर्थी प्रमुख सचिव (न्यूनतम 25 वर्ष सेवा में) और मुख्य सचिव के स्तर (जिसमें न्यूनतम 30 वर्ष काम का अनुभव चाहिए) तक पहुँचने की संभावना कम होती है। जबकि 22 साल में आईएएस में शामिल होने वाले 80 फीसदी लोग मुख्य सचिव के स्तर पर रिटायर होने में सक्षम होते हैं, लेकिन जो लोग 29-30 की उम्र में सेवा में प्रवेश करते हैं उनके लिए संभावनाएं लगभग नहीं के बराबर हैं। आंकड़ों के अध्ययन से ऐसे भी प्रमाण मिलते हैं कि देर से आईएएस बनने वालों का कार्य प्रदर्शन का स्तर कम होता है। कम उम्र में अधिकारी बनने वाले चुस्त दुरुस्त होते हैं तो देर से नौकरशाह बनने वाले कम प्रभावी रहे हैं।
वास्तव में, “स्टील फ्रेम ऑफ इंडिया” ने ख्यात भारतीय प्रशासनिक सेवा में आजादी से पहले उम्र सीमा 21 से 24 साल तक सीमित थी, जो 1970 के दशक में सामान्य प्रवेशकों के लिए 26 वर्ष हुई, 1980 यह 28 साल और 1990 में 30 साल की गई। असल में आयु सीमा संबंधी विचार हमेशा तकनीकी मामले से ज्यादा राजनीतिक है। कई साल तक ‘अपर एज लिमिट’ सामान्य श्रेणी के उम्मीदवारों के लिए 30 वर्ष, ओबीसी के लिए 33 वर्ष और एससी और एसटी उम्मीदवारों के लिए 35 वर्ष थी। सीएसएटी को लेकर हंगामे के बाद 2014 में तत्कालीन यूपीए सरकार द्वारा अतिरिक्त प्रयासों के साथ इसे बढ़ाकर क्रमशः 32, 35 और 37 साल कर दिया गया था। इसका एक संभावित कारण समावेश के लिए दबाव हो सकता है और इसीलिए बासवान रिपोर्ट जो प्रवेश के लिए उम्र सीमा कम करने को कहती है, उस पर अमल नहीं हुआ।
कुल मिलाकर सिविल सेवा में उम्र बढ़ाना सरकार के स्तर पर एक लोकप्रिय फैसला है। सरकार को अब तक उम्र घटाने के कई सुझाव मिले हैं लेकिन उसने इसको घटाने की जगह लगातार बढ़ाया ही है। इसी साल 3 अगस्त को केंद्र सरकार ने राज्यसभा को सूचित किया था कि 1 अगस्त, 2018 तक सामान्य वर्ग के उम्म्मीदवारों की आयु अधिकतम 32 साल कर दी गई है। आरक्षित वर्ग के उम्मीदवारों को आयु में तय नियम के अनुसार छूट रहेगी। यानी 2022-23 तक उम्र सीमा कम हो पाएगी, इस पर संशय के बादल रहेंगे। फिलहाल इस मामले में आईएएस की तैयारी करने वालों की मिलीजुली प्रतिक्रियाएं आईं।
कुछ का कहना है कि सिफारिश सही है। उम्र सीमा 27 कर देने से वे खुद को जल्दी तैयार कर सकेंगे। उनका मांइड सेटअप ऐसा बन पाएगा। 32 साल होने से वो उसी में प्रयास करते रहते हैं। और एग्जाम में असफल होने पर अन्य परीक्षाओं के लिए भी अवसर खत्म हो जाते हैं। जब कि कुछ का कहना है कि यूपीएससी की परीक्षा से बहुत सारे छात्र जुड़े होते हैं। एग्जाम का प्रारूप ऐसा है कि सामान्य स्थिति में भी कम से कम दो वर्ष लगते हैं। ऐसे में आर्थिक संसाधनों की जरूरत होती है। बहुत से अभ्यर्थी पहले जॉब करते हैं फिर एग्जाम के लिए आते हैं। ऐसे में 27 वर्ष उम्र की सीमा निर्धारित कर देने से मेहनती और लगनशील प्रतिभाओं के अवसर छिन जाते हैं।
(कॉपी संपादन : एफपी डेस्क)
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