अनुसूचित जाति/जनजाति संगठनों के अखिल भारतीय परिसंघ के अध्यक्ष सह सांसद डॉ. उदित राज ने आगामी 3 दिसंबर को एक रैली का आह्वान किया है। इस संबंध में उन्होंने कहा कि यह रैली न्यायपालिका में जारी परिवारवाद और न्यायपालिका द्वारा विधायिका के कामकाज में हस्तक्षेप के विरोध में बुलाई गई है।
उन्होंने कहा कि इसी वर्ष सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी एक्ट में बदलाव का आदेश दिया था, जिसे निष्प्रभावी बनाने के लिए केंद्र सरकार को संसद में संशोधन विधेयक लाना पड़ा। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने जनहित याचिका की सुनवाई करने के दौरान एक्ट में संशोधन करने का फरमान जारी किया था। उन्होंने कहा कि जब कभी दलित-बहुजनों के मतलब की बात होती है, तो जनहित याचिकाओं का खेल खेला जाता है।

उन्होंने कोलोजियम सिस्टम को अलोकतांत्रिक बताते हुए कहा कि 2014 में संसद ने संविधान संशोधन करके नेशनल जूडिशियल अपाइंटमेंट कमीशन बनाया था और 21 राज्यों की विधानसभा ने उसका अनुमोदन भी किया, लेकिन जनहित याचिका को माध्यम बनाकर उस विधेयक को अवैध घोषित कर दिया। सांसद ने न्यायपालिका में दलित, आदिवासी और पिछड़ाें का प्रतिनिधित्व नहीं होने पर भी सवाल खड़े करते हुए कहा कि उन्हें यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि प्रतिनिधित्व नहीं होने से बहुजन हित प्रभावित हो रहा है। गुजरात हाईकोर्ट के एक जज का हवाला देते हुए कहा कि कहा जाता है कि आरक्षण व भ्रष्टाचार की वजह से देश बर्बाद हो रहा है। इसका क्या आशय लगाया जाए कि आरक्षण का लाभ लेने वाले 85 प्रतिशत लोग देश को बर्बाद कर रहे हैं। सांसद ने दो टूक शब्दों में कहा कि गत 20 मार्च 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार निवारण अधिनिय़म-1989 को कमजोर कर दिया और जब उसे मूल रूप में लाने के लिए संसद में संविधान में संशोधन किया गया, तो इस पर आगे कोई सुनवाई नहीं होनी चाहिए थी, लेकिन फिर से सुप्रीम कोर्ट ने इस सिलसिले में पीआईएल मंजूर कर ली है। इस पर जनवरी 2019 में सुनवाई होनी है।
सांसद ने कहा कि कितनी हास्यास्पद बात है कि जो खुद मेरिट से नहीं आ रहे, वो दूसरों की मैरिट तय कर रहे हैं। आज हालत यह है कि 200 ही ऐसे परिवार हैं, जिनमें से जजों की नियुक्ति हो रही है या फिर चेला-गुरु की परंपरा चलती आ रही है। हमें इस पर भी रोक लगाने की जरूरत है।
(कॉपी संपादन : प्रेम/एफपी डेस्क)
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