नई दिल्ली, 31 दिसम्बर : जाति जनगणना के मसले को खटाई में डालने की कोशिशें लगातार जारी हैं। सभी जातियों की उनकी आर्थिक और शैक्षणिक स्थिति के साथ गणना किये जाने की जगह मामले को सिर्फ ‘सर्वेक्षण’ की ओर मोड़ा जा रहा है। वह भी सभी जातियों का नहीं, सिर्फ ओबीसी का!
समाचार एजेंसियों द्वारा जारी ताजा ख़बर के अनुसार एक बार फिर से “ओबीसी में शामिल जातियों की अलग-अलग अनुमानित जनसंख्या जानने के लिए व्यापक सर्वे किया जाएगा। केंद्र की सूची में शामिल ओबीसी जातियों के वर्गीकरण के लिए जांच कर रहे सेवानिवृत्त न्यायाधीश जी. रोहिणी की अध्यक्षता वाले पांच सदस्यों के आयोग ने इसके लिए सरकार से 200 करोड़ रुपए से अधिक का अलग से बजट मांगा है। आयोग ने इसके लिए केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत को पत्र लिखा है।”
जस्टिस रोहिणी ने अपने पत्र में कहा है कि “केंद्रीय ओबीसी सूची में करीब 2600 जातियां शामिल हैं। इनमें से कुछ की आबादी काफी कम है लेकिन यह भौगोलिक रूप से काफी फैली हुई है। इसलिए सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में सभी जिले शामिल करते सर्वे करवाया जाना जरूरी है।”
पत्र में कहा गया है कि “ओबीसी जातियों के वर्गीकरण के लिए उनकी अनुमानित जनसंख्या के साथ प्रत्येक जाति के लोगों के शैक्षणिक स्तर और रोजगार की स्थिति का भी पता लगाया जाएगा। यह सारी जानकारी जुटाने के लिए करीब दस लाख घरों का सर्वे किया जाएगा।”
ग़ौरतलब है कि इस प्रकार के सर्वेक्षण पहले भी विभिन्न राज्य सरकारें व केंद्र सरकार करती रही हैं और इनके आँकड़ें सरकारों के पास मौजूद हैं।
सवाल यह भी है कि जाति जनगणना में सवर्ण समुदाय को शामिल करने से सरकार क्यों डरती है? अगर सर्वेक्षण ही करना है तो सवर्णों समेत सभी तबकों का क्यों नहीं?
बहुजनों को ओबीसी के साथ-साथ सवर्ण समुदाय की सम्पूर्ण गणना की मांग करनी चाहिए, ताकि भारतीय समुदायों की मुक्कमल तस्वीर सामने आ सके।
(इनपुट : एजेंसियां व विभिन्न समाचार पत्र)
कॉपी एडिटिंग : अर्चना
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