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नंबर कम आने पर फिर से बच्चे होंगे फेल, सरकार खत्म करेगी नो डिटेंशन पॉलिसी

केंद्र सरकार के विधेयक को लोकसभा में पारित किया जा चुका है। अब राज्यसभा में इसका विरोध करने की तैयारी है। विपक्ष के मुताबिक सरकार की इस नीति के शिकार सबसे अधिक दलित, आदिवासी और अन्य पिछड़ा वर्ग के बच्चे होंगे

केंद्र सरकार प्राथमिक शिक्षा नीति में अहम बदलाव लाने जा रही है। इसके मुताबिक नंबर कम आने पर बच्चे फेल घोषिए किए जाएंगे। जबकि वर्तमान में जो नीति अमल में लायी जा रही है उसके अनुसार नंबर कम हाेने पर भी किसी भी छात्र को 8वीं तक फ़ेल नहीं किया जा सकता। इसमें बदलाव लाने को सरकार की ओर से चल रहे संसद सत्र में विधेयक पेश किया जा चुका है और लोकसभा में इस मंजूरी भी मिल चुकी है। लेकिन राज्यसभा में इसके कड़े विरोध की संभावना है।

इस संबंध में दिल्ली स्थित नेशनल कोईलीशन फॉर एजुकेशन, ऑल इंडिया प्राइमरी टीचर्स फेडेरेशन और सेव द चिल्ड्रेन आदि संगठनों द्वारा सांसदों के साथ बीते 12 दिसंबर को ‘कॉन्स्टिट्यूशन क्लब’ में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में कांग्रेस, एनसीपी, आरजेडी, सीपीआई, भाजपा और एआईडीएमके समेत अन्य राजनैतिक दलों के राज्य सभा के सांसद शामिल थे। इन दलों के प्रदीप तमता, डी राजा, रवि प्रकाश वर्मा, जनाब जावेद अली खान, वंदना चव्हाण, विकास महात्म्य, प्रसन्न आचार्या, मनोज झा और हुसैन दलवई आदि शामिल थे।  

  • लोकसभा में मिल चुकी है सरकार के विधेयक को मंजूरी

  • राज्यसभा में विपक्ष करेगा विरोध

  • वर्तमान में आठवीं तक किसी को भी फेल नहीं करने की है नीति

बताते चलें कि देश में शिक्षा को मौलिक अधिकार बनाने को लेकर चली लंबी बहस के बाद तत्कालीन यूपीए सरकार द्वारा 2009 में ‘शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009’ को लागू कर छह से चौदह साल की उम्र के बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा उपलब्ध कराने की अनिवार्यता सुनिश्चित की गई। इस कानून के अनुच्छेद 30 के तहत सीसीई (सतत एवं व्यापक मूल्यांकन) के अंतर्गत बच्चों को भयमुक्त शिक्षा प्रदान करने की बात कही गई है। विभिन्न अध्ययनों ने यह पुष्टि भी  की है कि ‘फेल’ करने से बच्चों की मानसिकता पर नकारात्मक असर पड़ता है। यूनेस्को की 2010 की रिपोर्ट के अनुसार बच्चों को फेल करने का मतलब सिस्टम का सारा दोष बच्चों के सिर पर मढना है।

केंद्र सरकार के द्वारा लाए गए विधेयक के संबंध में बैठक करते राज्यसभा सांसद व सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधि

एनसीई इंडिया द्वारा तीन दिनों तक चलाये गए डोर टू डोर अभियान के तहत राज्यसभा सांसदों से मुलाक़ात कर नो डिटेन्शन पॉलिसी को खत्म न करने के लिए ज़ोर दिया गया। चर्चा के दौरान माना गया कि अगर ये पॉलिसी खत्म हो गई तो इसका सीधा असर समाज के दबे-कुचले, दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक और हाशिये पर खड़े समाज से आने वाले बच्चों और खासतौर से लडकियों पर होगा। बच्चों को फ़ेल करने की पॉलिसी से ड्रॉप आउट बच्चों की संख्या में वृद्धि होगी खासकर लड़कियों में।

समाजवादी पार्टी के सांसद रवि प्रकाश वर्मा ने कहा, “स्कूल सिर्फ शिक्षण के लिए नहीं हैं बल्कि मूल्यांकन और प्रमाणीकरण की व्यवस्था भी है। इस बात का ध्यान में रखकर ही हमें कोई फैसला करना चाहिए। वहीं वंदना चव्हाण ने इस चिंता को साझा किया कि यदि सिस्टम बुनियादी इनपुट प्रदान करने में विफल रहा है, तो बच्चों को असफल करना अन्यायपूर्ण है।”  

सीपीआई के सांसद डी. राजा ने कहा, “इस पॉलिसी को रोकने के लिए हम पूरी कोशिश करेंगे और संसद में सवाल खड़ा करेंगे।”

सेव द चिल्ड्रेन की अल्का सिंह ने कहा, “हमें बाल्यावस्था देखभाल एवं शिक्षा पाठ्यक्रम (ईसीसीई) पर ज्यादा खर्च करनी चाहिए जिससे हम बच्चों के सीखने की क्षमता को बढ़ा सकें। एनसीई इंडिया ने संसद सदस्यों से सिफारिश की कि नो डिटेन्शन पॉलिसी के प्रभावों को देखने के लिए कोई उचित अध्ययन या शोध किया जाना चाहिए। इसके लिए किसी समिति की स्थापना की जानी चाहिए जिनकी सिफारिशें होनी चाहिए पॉलिसी को खत्म करने से पहले सरकार द्वारा इस पॉलिसी का सही तरीके से पालन किया जाए।”

(कॉपी संपादन : एफपी डेस्क)


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लेखक के बारे में

कुमार समीर

कुमार समीर वरिष्ठ पत्रकार हैं। उन्होंने राष्ट्रीय सहारा समेत विभिन्न समाचार पत्रों में काम किया है तथा हिंदी दैनिक 'नेशनल दुनिया' के दिल्ली संस्करण के स्थानीय संपादक रहे हैं

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