आदिवासी छात्र संजय मीणा आज दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर है क्योंकि उसकी सबसे बड़ी भूल यही रही कि उसने जयपुर स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड फाइनेंसियल अकाउंट्स ऑफ इंडिया (आईसीएफएआई) के क्षेत्रीय कार्यालय प्रबंधन के खिलाफ जाकर दाखिला ले लिया। उसकी इसी भूल की वजह से उसे मानसिक प्रताड़ना झेलनी पड़ी और तीन महीने के भीतर ऐसी स्थिति पैदा कर दी गई जिसके आधार पर उसे कॉलेज से निकाला जा सके।
इस संबंध में राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग की तरफ से भी सवाल उठाया गया है और जवाब मांगा गया है। आयोग ने मुख्य सचिव, अतिरिक्त मुख्य सचिव राजस्थान सरकार, सचिव, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय व महानिदेशक पुलिस विभाग राजस्थान सरकार से छात्र की शिकायत पर जवाब मांगा है।

राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के जयपुर स्थित क्षेत्रीय कार्यालय के निदेशक डा नरेश पाल मीणा से जब फॉरवर्ड प्रेस ने संपर्क किया तो उनका कहना था कि उक्त छात्र का मामला मेरे पास ही है और हमलोग इसे लगातार देख रहे हैं। इस सवाल पर कि इस मामले में आपको प्रथम दृष्टया क्या लगता है, उनका जवाब था कि इसमें दो राय नहीं कि उक्त छात्र के साथ ज्यादती हुई है और इस बाबत हमारी तरफ से विश्वविद्यालय के क्षेत्रीय कार्यालय (रीजनल चैप्टर) व संबंधित थाने को बता दिया गया है। 12 दिसम्बर को नई नोटिस फिर से भेजी गई है जिसमें 30 दिन के भीतर जवाब मांगा गया है। तय समय सीमा में जवाब नहीं आता है तो वारंट जारी किया जाएगा।”

निदेशक ने बताया कि “पीड़ित छात्र ने डॉक्यूमेंट्स के साथ-साथ कई ऐसे प्रूफ दिए हैं जिससे साबित होता है कि फाइनल रिपोर्ट में मैनुपुलेशन किया गया है।
इस बीच पीड़ित आदिवासी छात्र संजय से जब फॉरवर्ड प्रेस ने बात की तो उसने सिलसिलेवार ढंग से बताया कि आईसीएफएआई के क्षेत्रीय कार्यालय में उसने अंतिम तिथि 31 अगस्त से पहले 28 अगस्त को एलएलबी प्रथम वर्ष में दाखिले के लिए फार्म भर लिया था लेकिन 31 अगस्त तक कमियां गिनाकर प्रबंधन घुमाता रहा और अंतिम तिथि खत्म होते ही एडमिशन से मना कर दिया गया। हालांकि जब उसे पता चला कि अंदरखाने एडमिशन हो रहा है तो उसने अनजान बनकर एक छात्रा से बात की तो उसने बताया कि उसका एडमिशन 6 सितम्बर को हुआ है लेकिन उसे कहा गया है कि इस बारे में किसी को नहीं बताए कि 31 अगस्त के बाद एडमिशन हुआ है। इस बातचीत का टेप उसके पास है और इस आधार पर ही उसने विश्वविद्यालय के पोर्टल सहित यूजीसी में शिकायत कर दी। लगभग हफ्ते भर बाद जैसे ही इसकी भनक लगी, आनन- फानन में 14 सितम्बर को एडमिशन ले लिया गया।
बता दें कि फाइनल रिपोर्ट में दो-दो जगहों से रेगुलर कोर्स करने की बात की गई है जबकि इस बाबत पीड़ित छात्र संजय मीणा का कहना है कि उसने कॉलेज प्रबंधन से दाखिला लेते वक्त ही बता दिया था कि वह यहां से ही एलएलबी करना चाहता है और जयपुर नेशनल यूनिवर्सिटी से अपना दाखिला वापस ले लेगा। लेकिन एडमिशन के बाद से ही ऐसी परिस्थिति उत्पन्न कर दी गई कि जयपुर नेशनल यूनिवर्सिटी जाना हो ही नहीं सका। पहले दिन से ही उसे रोजाना प्रताड़ित किया जाने लगा जिससे मानसिक रूप से वह परेशान रहने लगा और वहां से अपना दाखिला वापस नहीं ले सका।
बकौल छात्र संजय, उसे छुट्टी वाले दिन को छोड़कर लगभग रोजाना आईसीएफएआई के डायरेक्टर व वायस चांसलर राजेश कोठारी के चैंबर में बुलाया जाता था और कभी बाल-दाढ़ी कटवाने तो कभी तुम-लोग कभी सुधरोगे नहीं, चाहे जितनी भी सीटें रिजर्व कर दी जाए, गंवार ही रहोगे जैसी बातें कहकर अपमानित किया जाता था। संजय का आरोप है कि “जब हमने इसकी शिकायत आईसीएफएआई के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर ईएन मूर्ति, विश्वविद्यालय के पोर्टल व यूजीसी में की तो राजेश कोठारी आग बबूला हो गए और चैंबर में बुलाकर उन्होंने धमकी तक दे डाली कि देख लेंगे तुम्हें, कैसे तुम यहां से पढ़ाई कर लेते हो? अंत में मुझे सिक्यूरिटी गार्ड से मारपीट कराकर फिर उनसे ही थाने में मामला दर्ज कराया और फिर उसी आधार पर विश्वविद्यालय से सस्पेंड किया गया।”
इस बाबत फॉरवर्ड प्रेस की तरफ से आईसीएफएआई के जयपुर स्थित क्षेत्रीय कार्यालय के डायरेक्टर व वाइस चांसलर राजेश कोठारी से बात की तो उन्होंने दावा किया जो भी आरोप लगाए जा रहे हैं, वह पूरी तरह से आधारहीन, बेबुनियाद और गलत इंटेशन से लगाए गए हैं।” उन्होंने कहा कि “छात्र को नियम के तहत विश्विवद्यालय से निष्काषित किया गया है क्योंकि एक साथ उसने दो अलग-अलग यूनिवर्सिटी में अलग-अलग कोर्स में एडमिशन लिया हुआ था।’
(कॉपी संपादन- फॉरवर्ड प्रेस)
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