यूपीएससी परीक्षाओं में दो अतिरिक्त मौका दिए जाने की मांग को लेकर दिल्ली के मुखर्जीनगर में सीसैट पीड़ित छात्रों का प्रदर्शन जारी है। मांगों को लेकर छात्र हफ्ते भर से अनशन पर बैठे हैं लेकिन इसके बावजूद अब तक सरकार की तरफ़ से कोई आधिकारिक संवाद स्थापित नहीं किया गया है।
इसको लेकर युवा-हल्लाबोल आंदोलन का नेतृत्व कर रहे अनुपम ने बताया कि “वर्ष 2011 में संघ लोक सेवा आयोग ने सिविल सेवा परीक्षा में सीसैट प्रणाली की शुरुआत की थी, जो ग्रामीण पृष्ठभूमि से आने वाले छात्रों के प्रति भेदकारी थी। बाद में निगवेकर कमिटी की रिपोर्ट ने इसकी पुष्टि भी की कि सीसैट परीक्षा प्रणाली भारतीय भाषाओं के छात्र और ग़ैर-इंजीनियरिंग पृष्ठभूमि के अभ्यर्थियों के ख़िलाफ़ था। इसी के ख़िलाफ़ छात्रों की मांग रही है कि सीसैट के कारण जिन अभ्यर्थियों के बहुमूल्य वर्ष बर्बाद हुई उन्हें दो अतिरिक्त मौका (क्षतिपूरक प्रयास) दिए जाएं।”

अनुपम ने सवाल किया कि जब यह पूर्णतः स्पष्ट हो चुका है कि सीसैट परीक्षा प्रणाली भेदकारी थी, तो इस विफल सरकारी प्रयोग से पीड़ित छात्रों को क्षतिपूरक प्रयास क्यूं नहीं दिया जा रहा? हैरत की बात है कि ढाई सौ से भी ज़्यादा सांसदों द्वारा समर्थन पत्र के बावजूद मोदी सरकार छात्रों की मांग नहीं मान रही है। मांग मानना तो दूर उल्टे प्रदर्शनकारी छात्रों के साथ पुलिस द्वारा अमानवीय व्यवहार किया जा रहा है।
एसएससी के छात्र जब सीजीओ कॉम्प्लेक्स में सड़कों पर बैठे थे तो पुलिस ने चादर, कंबल हटाने से लेकर शौचालय और पानी तक बंद कर दिया था। अब जब यूपीएससी अभ्यर्थी मुखर्जीनगर में बैठे हैं तो इस कड़ाके की ठंढ में भी आग बुझाना, प्रदर्शनस्थल पर पानी फेंकना, ज़ोर ज़बरदस्ती और बार बार डिटेन करने जैसी कार्यवाई पुलिस कर रही है।”

प्रदर्शन कर रहे यूपीएससी अभ्यर्थी अंशु चतुर्वेदी ने बताया कि “सीसैट के कारण हुए अन्याय के ख़िलाफ़ पांच छात्र अनशन पर बैठे हुए हैं और हम अपना प्रदर्शन तब तक जारी रखेंगे जब तक कि सरकार हमारी मांग मान नहीं लेती है। उन्होंने बताया कि राज्य सभा में एनसीपी सांसद द्वारा यूपीएससी छात्रों का सवाल उठाया गया था लेकिन सरकार की तरफ़ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई। राज्य सभा सांसद संजय सिंह ने भी मुखर्जीनगर पहुंचकर पुलिसिया कार्रवाई पर सवाल उठाते हुए छात्रों की मांग का समर्थन किया है।
(कॉपी संपादन : अर्चना)
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