मेरे जीवन का हालांकि यह ऐतिहासिक क्षण है जब मैं 106वीं अखिल भारतीय विज्ञान कांग्रेस का चश्मदीद गवाह बना हूं, जहां एक साथ अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त तीन नोबेल विजेता मशहूर वैज्ञानिकों : प्रोफेसर थॉमस सुडॉफ, प्रोफेसर अव्रमहर्शको, और प्रोफेसर एफ. डंकन एम. हलडाने को देखने और सुनने का अवसर प्राप्त हुआ। यह पांच दिवसीय आयोजन बीते 3 जनवरी 2019 से लेकर 7 जनवरी 2019 को पंजाब के फगवाड़ा जिले के लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी में किया गया। इस बार का थीम था – ‘भविष्य का भारत : विज्ञान और प्रौद्योगिकी’।
ठीक दो महीने पहले हमारे कुलपति श्री अशोक मित्तल ने जब इस विज्ञान कांग्रेस के आयोजन के बारे में हमें बताया था, तभी से हम बहुत उत्साहित थे कि, विज्ञान के बारे में आधी-अधूरी समझ को विकसित करने में मदद मिलेगी।
हमें उम्मीद थी कि देश भर के जाने-माने मशहूर वैज्ञानिक इसमें शिरकत करेंगे। लेकिन, वैज्ञानिकों के नाम पर उस्मानिया यूनिवर्सिटी, एसआरएम यूनिवर्सिटी, शिवाजी कॉलेज वगैरह से कुछेक लोगों को उठा लिया गया।
सबसे ज्यादा दुःख हमें तब हुआ जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उद्घाटन भाषण से ठीक पहले उद्घोषक ने घोषणा किया कि विज्ञान कांग्रेस की शुरूआत ‘हनुमान चालीसा’ के पाठ से शुरू होगी। और आज जब भौतिक विज्ञान पर चर्चा करने के लिए आईआईटी (आईएसएम), धनबाद के डॉ. रॉय ने जब अपने सम्बोधन की शुरूआत गायत्री मंत्र ‘ॐ भूर्भुवा स्वः’ से की तो मेरा दम घुटने लगा और बीच में ही उठकर मैं खुली हवा में सांस लेने बाहर आ गया।
मेरा मानना है कि विज्ञान सिर्फ विज्ञान है’ और आरएसएस के ‘इतिहास पुनर्लेखन’ की तरह विज्ञान का भी पुनर्लेखन नहीं किया जा सकता।
शीघ्र प्रकाश्य : आरएसएस और बहुजन चिंतन
आपको बताते चलें कि, इस कांग्रेस के पांच दिवसीय आयोजन पर तकरीबन 17 करोड़ रूपये खर्च का अनुमान है और इसके अलावा इस आयोजन की तैयारी में दस हजार लोग शारीरिक रूप से दिन-रात जुटे हुए है। फिर इस विज्ञान कांग्रेस का मजाक तो उड़ाया नहीं जा सकता। मेरा स्पष्ट मत है कि, भौतिक पदार्थों से बने इस संसार में प्रमाणित/साबित हो चुका ज्ञान ही विज्ञान है। समय आ गया है कि तमाम तरह की सड़ी-गली दकियानूसी-रूढ़िवादिता, पाखंड, अंधविश्वास, कुरीतियों, कुप्रथाओं, सड़ांध धार्मिक मान्यताओं, और अन्य अवैज्ञानिक विचारधाराओं से लड़ने के लिए अब विज्ञान को जन आंदोलन का रूप अख्तियार करना होगा।
अखिल भारतीय विज्ञान कांग्रेस को प्रधानमंत्री श्री मोदी ने कम से कम चार बार उद्घाटन किया है। हर बार वही राग-अलाप होता है। विश्वगुरू, विश्व-महाशक्ति, डिजिटल इंडिया, सर्वश्रेष्ठ भारत – आधुनिक भारत। अबकी तो उन्होंने नया नारा भी दिया – ‘जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान, और जय अनुसंधान’। अलबत्ता, उन्होंने यह नहीं बताया कि शोध/अनुसंधान का बजट उनकी सरकार ने कुल सकल घरेलू उत्पाद का 0.1 प्रतिशत क्यों रखा है? जबकि पड़ोसी देश चीन में यह 2.2 फीसदी है।
केंद्रीय विज्ञान मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने अपने सम्बोधन का सत्तर फीसदी हिस्सा प्रधानमंत्री श्री मोदी का स्तुतिगान करने में ही गुजार दिया। उनके पास इन सवालों का कोई जबाब नहीं था कि जिस आधुनिक व प्रगतिशील भारत राष्ट्र का निर्माण करने के लिए वैज्ञानिक सोच, वैज्ञानिक चिंतन, वैज्ञानिक दृष्टिकोण, वैज्ञानिक चेतना के प्रसार के लिए मुकम्मल तौर पर वैज्ञानिक शिक्षा प्रणाली/पद्धति की आवश्यकता है, आरएसएस की मोदी सरकार खुद शिक्षा को अभिजात्य वर्ग कुलीन वर्ग/सुविधाभोगी अमीर वर्ग तक सीमित रखने और कथित राम मंदिर आंदोलन के जरिए आवाम की प्रतिभा व चेतना को कुंद करने का षड्यंत्र रच रही है।
(कॉपी संपादन : एफपी डेस्क)
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