देश भर के रिसर्च स्कॉलर्स ने दिखाई एकजुटता, कहा- आश्वासनों पर भरोसा करना रही बड़ी भूल, अब नहीं आएंगे झांसे में
केंद्र सरकार द्वारा फेलोशिप में वृद्धि नहीं किए जाने के कारण देश भर के रिसर्च स्कॉलर्स नाराज हैं। आगामी 16 जनवरी 2019 को उनलोगों ने केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय के समक्ष प्रदर्शन करने का निर्णय है। उनकी नाराजगी की वजह और आगे की रणनीतियों के बारे में फारवर्ड प्रेस विभिन्न संस्थाओं से जुड़े रिसर्च स्कॉलरों से बातचीत की।
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फेलोशिप में वृद्धि हमारा अधिकार, हर हाल में इसे लेकर रहेंगे
सोसायटी फॉर यंग साइंटिस्टस व ऑल इंडिया रिसर्च स्कॉलर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष लालचन्द्र विश्वकर्मा ने बताया, “फेलोशिप में वृद्धि के लिए संघर्ष के चार महीने से अधिक का समय निकल चुका है, लेकिन हम सबों को अब तक आश्वासनों के सिवाय कुछ भी नहीं मिला है। सबसे पहले बीते 29 अगस्त 2018 हमलोग केंद्रीय विज्ञान व प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. हर्षवर्धन से मिले। हमलोगों ने उन्हें फेलोशिप में हो रही वृद्धि के बारे बताया और अनुरोध किया कि सम्मानजनक वृद्धि की पहल सरकार करे। उसके बाद 12 सितंबर 2018 को हमलोग केंद्रीय विज्ञान व प्रौद्योगिकी मंत्रालय के सचिव प्रो. आशुतोष शर्मा से हमलोग मिले। हमने उनसे भी अनुरोध किया। उन्होंने आश्वासन भी दिया। इसके बाद अन्य सभी सचिवालय और मंत्रालयों को ईमेल के जरिए अवगत कराया, लेकिन तब भी जब हमारी बातें नहीं मानी गई तब हमलोगों ने 30 अक्टूबर 2018 को मंत्रालय के सामने विरोध प्रदर्शन किया था। उस दिन हमारे एक प्रतिनिधिमंडल ने केंद्रीय विज्ञान व प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अधिकारी डॉ. मुखोपाध्याय से मुलाकात की थी। तब उन्होंने लिखित में जवाब दिया था कि 5 व 6 नवंबर 2018 को अंतर-क्षेत्रीय बैठक हैं, उसके बाद इस मामले के बारे में आपको (रिसर्च स्कॉलरों को) बताते हैं।”
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विश्वकर्मा ने बताया, “इसके चार-पांच दिनों के बाद उन्होंने जवाब दिया कि हम उस मामले पर काम कर रहे हैं। तब हमने एम्स में 17 नवम्बर 2018 को अखिल भारतीय अंतर संस्थान प्रतिनिधि बैठक आयोजित की थी। फिर 20 नवम्बर 2018 को पूर्वाह्न 11:00 बजे, प्रो. के. विजय राघवन, प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार सरकार के साथ हमलोगों ने बैठक की। लेकिन उन्होंने हमें लिखित रूप कुछ भी नहीं दिया। बस आश्वासन दिया कि दिसंबर के अंत तक फेलोशिप की राशि में बढ़ोतरी कर दी जाएगी। सभी से मिल रहे केवल आश्वासनों से निराश होकर रिसर्च स्कॉलरों के संगठनों द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर विरोध प्रदर्शन आयोजित किए गए। इसके बाद हम केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावेड़कर से मिले। उन्होंने भी अश्वावासन दिया। परंतु, सरकार की तरफ से अभी तक कोई निर्णय नहीं आया है। देश भर के शोधार्थी खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। यही वजह है कि हमलोगों को 16 जनवरी 2019 को मानव संसाधन विकास मंत्रालय के समक्ष धरना देने के लिए मजबूर होना पड़ा है। हम सभी रिसर्च स्कॉलर्स ने अपने साथियों को इस स्लोगन के साथ दिल्ली कूच करने के लिए कहा गया है कि अनुसंधान का सहयोग करो, दिल्ली चलो – दिल्ली चलो। विडंबना ही है कि हमें हर चार साल के बाद फेलोशिप में वृद्धि के लिए धरना करना पड़ता है तभी सरकार हमारी बात सुनती है। हमारी मांगों में वर्तमान फेलोशिप में 80-100 प्रतिशत बढ़ोतरी, फेलोशिप बढ़ोत्तरी अप्रैल 2018 से लागू करने और हर चार या दो साल में स्वत: ही फेलोशिप बढ़ोतरी का प्रावधान किए जाने की मांग शामिल है।”
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हर बार करना पड़ता है आंदोलन
आईसीजीईबी, दिल्ली के पीएचडी स्कॉलर संदीप कौशिक के अनुसार “भारत सरकार ने हर चार साल में फेलोशिप बढ़ाने का वादा किया था। लेकिन हमेशा रिसर्च स्कॉलर्स को सड़क पर आना पड़ता है। 2006 में हमारी फेलोशिप 8000 रुपए थी और 2010 में विरोध के बाद इसे 100 प्रतिशत बढ़ाकर 16000 रुपए कर दिया गया था। फिर 2014 में हमें बढ़ोतरी प्राप्त करने के लिए फिर से आंदोलन करना पड़ा। महीनों के विरोध के बाद हमें 56 प्रतिशत यानी जेआरएफ में 25,000 रुपए की बढ़ोतरी मिली। सरकार की तरफ से साथ में भरोसा दिलाया गया कि अब फेलोशिप की राशि अपने आप अगली बार से बढ़ जाया करेगी। पिछली बढ़ोतरी अप्रैल 2014 में हुई थी और जब अप्रैल से जून 2018 तक भी कोई सुगबुगाहट नहीं हुई तो जुलाई-अगस्त में हमलोगों ने उनके पास जाना शुरू किया। सरकार में बैठे मंत्रियाें और अधिकारियों ने हमें बार-बार आश्वास्त किया कि फेलोशिप में वृद्धि प्रक्रियाधीन हैं और जल्द ही इस बाबत घोषणा होगी। लेकिन अभी तक आधिकारिक घोषणा नहीं हुई है। हमारा मानना है कि यदि हर काम में मुद्रास्फीति की दर और वार्षिक वेतन वृद्धि देखी जाती है, तो हम अप्रैल 2018 से 80 प्रतिशत वृद्धि की मांग कर रहे हैं जो कि देखा जाय तो मुद्रास्फीति की दर में हुए परिवर्तन के सापेक्ष बहुत कम है। फिर भी सरकार चुप बैठी है। मजबूरन हमें अनिश्चितकालीन विरोध के लिए 16 जनवरी को एमएचआरडी के समक्ष धरना देना पड़ रहा है।”
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लैब छोड़ आंदोलन करने पर मजबूर कर रही सरकार
सीएसआईआर-एनपीएल, नई दिल्ली के पीएचडी स्कॉलर मनदीप सिंह ने बताया कि “देश भर के शोध छात्रों को अपनी लैब का काम छोड़कर अपनी बात रखने के लिए सड़कों पर आना पड़ रहा है। यह देश के लिए एक बड़ी चिंता का विषय है। सरकार लापरवाही बरत रही है और सिर्फ आश्वासन देकर काम चला रही है। सरकार शोध छात्रों को मूलभूत सुविधाएं तक मुहैया नहीं करवा पा रही है। ऐसे में शोध जैसे महत्वपूर्ण कार्य के प्रभावित होने का भी खतरा बना रहता है। इसके बावजूद सरकार हमारी जायज मांगों को नजरंदाज करने में लगी हुई है और यही वजह है कि हम सबों को मजबूरन 16 जनवरी को प्रदर्शन करने का फैसला करना पड़ा है।”
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हमारी आवाज सुने सरकार
आईआईटी, दिल्ली के पीएचडी रिसर्च स्कॉलर विक्की नांदल के मुताबिक, “अनुसंधान का किसी भी देश की उन्नति में हमेशा से ही बहुत बड़ा योगदान रहा है। इस योगदान में शोधकर्ताओं की क्या भूमिका होती है, यह किसी से छिपी नहीं है। शोधकर्ता अपने जीवन का बहुत ही कीमती समय अनुसंधान में लगा देते हैं जो परोक्ष रूप से देश की सेवा है। सरकार को अपने शोधकर्ताओं का ख्याल रखना चाहिए। देश के हम सभी शोधार्थी पिछले पांच महीनों से फ़ेलोशिप बढ़ोतरी के लिए सरकार से बात कर रहे है और सरकार की तरफ से केवल आश्वासन ही मिल रहा है। सरकार को हम शोधार्थियों की आवाज़ सुननी चाहिए।”
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शोधकर्ता देश की वैज्ञानिक उन्नति के वास्तविक आधार
आरसीबी, फरीपदाबाद की पीएचडी स्कॉलर सुनयना डागर के अनुसार, “शोधकर्ता देश की वैज्ञानिक उन्नति के वास्तविक आधार हैं। यदि वे आधिकारिक कामकाज के घंटों को परेशान किए बिना दिन और रात काम करते हैं तो यह सरकार की एक अनिवार्य जिम्मेदारी बन जाती है कि वे उनकी वित्तीय आवश्यकताओं का ध्यान रखें। लोगों को यह समझने की जरूरत है कि हम छात्र नहीं हैं, बल्कि हम शोधार्थी हैं। हमारे देश के सभी नागरिकों के लिए मुद्रास्फीति की दर समान है फिर हमें समान वेतन क्यों नहीं मिलना चाहिए? हम शोधार्थी स्वस्थ दिमाग रखते हैं और वैज्ञानिक रूप से कार्य कर सकते हैं। हम आर्थिक रूप से बोझ नहीं हैं।”
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मांगें पूरी नहीं होने तक जारी रहेगा हमारा संघर्ष
नेशनल बोटेनिकल रिसर्च इंस्टिट्यूट, लखनऊ की रिसर्च शोधार्थी स्वपनिल पांडेय बताती हैं कि “हमलोग पिछले 6 महीने से फ़ेलोशिप में बढ़ोतरी के लिए सरकार से मांग कर रहे हैं। हमने लखनऊ में धरना प्रदर्शन किया। साथ ही डिपार्टमेंट ऑफ़ साइंस एवं टेक्नोलॉजी, नई दिल्ली के सामने अपनी मांगों को लेकर धरना प्रदर्शन किया। परंतु, सरकार द्वारा केवल आश्वासन ही मिला है। सरकार ने आज तक हमारी जायज मांगों पर कोई आदेश नहीं जारी किया है। अपनी मांगों को लेकर हमलोग मानव संसाधान विकास मंत्रालय के सामने 16 जनवरी को देशव्यापी धरना देने जा रहे हैं और हमारा यह संघर्ष तब तक जारी रहेगा जब तक हमारी मांगें पूरी नहीं हो जाती हैं।”
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हमारी मांगों को लेकर सरकार गंभीर नहीं
एसआरएफ, आईएआरआई के रिसर्च स्कॉलर गुलाब चंद्र के मुताबिक, “केंद्र सरकार फ़ेलोशिप को लेकर गंभीर नहीं है और हमलोगों को गुमराह कर रही है। लेकिन हम बता देना चाहते हैं कि फेलोशिप पर मोलभाव बिल्कुल नहीं चलने वाला है। हमलोग 80 प्रतिशत से कम पर नहीं मानने वाले हैं। इसलिए 16 जनवरी को देश भर से चार हजार से अधिक संख्या में दिल्ली पहुंचकर मानव संसाधन विकास मंत्रालय के सामने प्रदर्शन करेंगे और यह तब तक जारी रहेगा जब तक कि हमारी मांगें नहीं मान ली जाती हैं।”
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सरकार की प्राथमिकता में ही नहीं हैं रिसर्च स्कॉलर
एनआईएमआर, नई दिल्ली की पीएचडी स्कॉलर सोनालिका के अनुसार, “रिसर्च स्कॉलर्स को बुनियादी जरूरतों के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। इसे क्या किसी भी दृष्टि से सही ठहराया जा सकता है? लगता है कि सरकार की प्राथमिकता में ही हम शोधार्थी नहीं हैं। क्योंकि अगर ऐसा होता तो छह महीने से संघर्षरत हम शोधार्थियों की मांगों पर अब तक सरकार ने फैसला जरूर ले लिया होता। सरकार रिसर्च के प्रति कितनी जागरूक है, इसका अंदाजा इसी बात से ही लगाया जा सकता है कि भारत अपने कुल जीडीपी का महज एक फीसदी से भी कम केवल 0.65 फीसदी रिसर्च पर खर्च करता है। जबकि अन्य विकसित व विकासशील देशों की बात करें तो वह अपनी जीडीपी का 2.5 फीसदी से अधिक रिसर्च व रिसर्च स्कॉलर पर खर्च करते हैं। यहां के रिसर्च स्कॉलर्स को बुनियादी सुविधाओं तक के लिए संघर्ष करना पड़ता है। ऐसे में बेहतर रिसर्च की आशा करना कहां तक सही है। सरकार को इन बातों को समझाने के लिए ही देश भर के रिसर्च स्कॉलर्स 16 जनवरी को दिल्ली पहुंच रहे हैं और हम अपनी मांगों के समर्थन में आवाज बुलंद करेंगे।”
हमारी मांगों को अनसुना कर रही सरकार
आईसीजीईबी, दिल्ली के पीएचडी शोधार्थी प्रदीप श्योकंद कहते हैं, “मानव संसाधन विकास मंत्रालय सहित संबंधित सरकारी तंत्र ने रिसर्च स्कॉलर्स को आश्वासन के अलावा कुछ नहीं दिया है। इसलिए बीते तीन जनवरी को एम्स, दिल्ली में अखिल भारतीय अंतर संस्थान प्रतिनिधि बैठक आयोजित की थी और उस बैठक में ही आगामी 16 जनवरी को दिल्ली में अब बहुत बड़े स्तर पर धरना-प्रदर्शन करने का निर्णय लिया गया। यह फैसला हमें मजबूरी में लेना पड़ा क्योंकि सरकार हमारी मांगों को अनसुना कर रही है।”
हर चार साल पर क्यों करना पड़ता है आंदोलन?
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अंतर विश्वविद्यालय त्वरक केंद्र, नई दिल्ली के पीएचडी स्कॉलर सौरभ के. शर्मा के मुताबिक, “सीएसआईआर, डीएसटी और एमएचआरडी जैसे सरकारी निकायों को रिसर्च स्कॉलर्स के मुद्दों के लिए जिम्मेदार होना चाहिए। हम समाज और देश की भलाई के लिए दिन-रात काम करते हैं, लेकिन हमें बुनियादी सुविधाओं तक के लिए संघर्ष करना पड़ता है। सवाल यह है कि हर चार साल के बाद फेलोशिप बढ़ोतरी के लिए हमें आंदोलन क्यों करना पड़ता है? इससे हम अपने अनुसंधान के प्रति पूर्णरूपेण समर्पित कैसे रह सकते हैं?”
सभी फंडिंग एजेंसियाें के लिए बने एक समान नियम
आईएसईआर, मोहाली के पीएचडी छात्र आलोक तिवारी कहते हैं, “देश भर के अनुसंधान विद्वानों को विभिन्न फंडिंग एजेंसियों जैसे एमएचआरडी, सीएसआईआर, यूजीसी, डीबीटी आदि से मासिक फेलोशिप मिलती है( लेकिन यह इतनी कम है कि जरूरी बुनियादी सुविधाएं तक पूरी नहीं हो पाती हैं। हमारी मांग है कि वेतन आयोग के मानदंडों के अनुसार जेआरएफ में 50,285 रुपए और एसआरएफ में 56,320 रुपए की वृद्धि हो। साथ ही मुद्रास्फीति की दरों के अनुसार हर 4 साल के अंतराल पर फेलोशिप राशि का संशोधन हो। इसके अलावा हमारी एक मांग यह भी है कि सभी फंडिंग एजेंसियों के लिए देश भर में एक समान नियम हो और साथ ही समय पर फेलोशिप का भुगतान सुनिश्चित किया जाय।”
48 घंटे में सवर्णों को दे दिया गया आरक्षण, फेलोशिप के लिए आठ महीने से टालमटोल
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आईआईटी, मुबई के पीएचडी स्कॉलर अब्दुल हई सवाल पूछते हैं कि आखिर हर चार साल के बाद हम रिसर्च स्कॉलर्स को फैलोशिप राशि में बढ़ोतरी के लिए सड़क पर क्यों उतरना पड़ता है जबकि यह पार्ट सरकार व संबंधित मंत्रालय का है। उनके अनुसार, “सरकार की लापरवाही का खामियाजा हम रिसर्च स्कॉलर्स को भुगतना पड़ रहा है। यह बिल्कुल बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। 16 जनवरी से उनका आंदोलन तेज होने जा रहा है क्योंकि हमें पता है कि सरकार जानबूझकर देर कर रही है। सवर्ण आरक्षण मसले पर जटिल प्रक्रिया संविधान संशोधन तक 48 घंटे में हो जाता है लेकिन छह से आठ महीने में फेलोशिप राशि पर फैसला नहीं लिया जा रहा।”
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सरकार की बेरूखी से रिसर्च पर असर
पीजीआईएमईआर, चंडीगढ़ के पीएचडी स्कॉलर बाबू मैथ्यू के अनुसार, “सरकार के साथ कई दौर की बातचीत के बावजूद सिर्फ आश्वासन मिला जबकि रिसर्च स्कॉलर्स का इस दौरान काफी नुकसान हुआ है। रिसर्च स्कॉलर्स अपना मन लगाकर काम नहीं कर पा रहे हैं। सरकार को इस बारे में सोचना चाहिए क्योंकि देश की इकॉनमी में भी रिसेर्च स्कॉलर्स का कितना योगदान है, यह किसी से छिपी नहीं है। इसके बावजूद हमारी मांगों को नजरंदाज किया जा रहा है, जिसे बिल्कुल बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।”
(कॉपी संपादन : एफपी डेस्क)
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