तमिलनाडु के कार्मिक और प्रशासनिक सुधार मंत्री डी. जयकुमार ने हड़ताल कर रहे शिक्षकों व कर्मचारियों को कड़ी नसीहत दी है। उन्होंने हड़ताली सरकारी सेवकों से कहा हे कि राज्य सरकार के कर्मियों का वेतन निजी क्षेत्र के कर्मियों से काफी ज्यादा है। अगर राज्य कर्मियों के वेतन और पेंशन में और बढ़ोतरी की जाती है तो आम जनता के कल्याण के लिए कोई कोष नहीं बचेगा।
उन्होंने हड़ताल कर रहे कर्मचारियों और शिक्षकों से काम पर लौटने का अनुरोध किया और निर्देश का पालन नहीं करने पर विभागीय कार्रवाई की चेतावनी दी। सरकारी कर्मचारी और शिक्षक 22 जनवरी से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर हैं।

मंत्री ने इस बात को विस्तार से बताया कि राज्य में कर्मचारियों और शिक्षकों का वेतन कितना है तथा उस पर सरकार का कुल कितना व्यय हो रहा है। उन्होंने कहा कि वेतन, पेंशन, प्रशासनिक व्यय और ब्याज भुगतान पर राज्य द्वारा किए जाने वाले कुल व्यय की 71 प्रतिशत राशि खर्च होती है।
मंत्री द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार, एक हाई स्कूल हेडमास्टर को आरंभ में 68,280 का भुगतान किया जाता है, जबकि उनका औसत मासिक वेतन 1,03,320 है।
उन्होंने कहा कि राज्य के मंत्रालयों में कार्यरत सरकारी पर्यवेक्षक जब नौकरी शुरू करते हैं, उस समय उन्हें 44,280 रुपये मासिक मिलते हैं, जबकि उनका औसत वेतन 66,840 रुपये है। इसी प्रकार, ज्वॉइनिंग के समय राज्य सचिवालय में कार्यरत एक उप सचिव को 1,48,080 रुपये वेतन मिलता है, जबकि उनका औसत वेतन 2,23,920 रुपये है।

जयकुमार ने बताया कि यदि वेतन वृद्धि की मांग को मंजूरी दे दी जाती है, तो सरकार को जनता पर अतिरिक्त कर लगाना पड़ेगा।
बहरहाल, अक्सर मध्यम वर्ग के लोग मुद्रास्फीति, बढ़ती महंगाई आदि के लिए कृषि उत्पादों की बढ़ी हुई कीमतों को जिम्मेदार मानते हैं। प्याज, आलू या बैंगन की कीमत बढ़ने पर उसे किसी भी प्रकार कम करने की मांग करने लगते हैं। क्या वे कभी अपने भाई-बंधुओं के बढ़ते वेतन पर नज़र दौड़ाते हैं? दरअसल, बढ़ती महंगाई के लिए सरकारों की कार्पोरेटपरस्ती और सरकारी कर्मचारियों का वेतन मुख्य रूप से जिम्मेदार है। आम लोगों को इन प्रश्नों पर विचार करना चाहिए।
(कॉपी संपादन : प्रेम बरेलवी)
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