यूनिवर्सिटीज और कॉलेजों में 13 प्वाइंट रोस्टर सिस्टम के मुताबिक शिक्षकों की विभागवार भर्ती करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले से देश भर में उबाल है। इसी के चलते सभी यूनिवर्सिटीज और कॉलेज के एससी, एसटी, ओबीसी के शिक्षक आंदोलनरत हैं। साथ ही सरकार को बड़े आंदोलन की चेतावनी भी दे रहे हैं। इतना ही नहीं कुछ सवर्ण शिक्षक भी आरक्षित वर्ग के अधिकारों के हनन का विरोध कर रहे हैं। लेकिन, सरकार के कान में जूं नहीं रेंग रही और वह इस मामले में आरक्षण विरोधी इस सिस्टम को निरस्त करने की बजाय जिस तरह से हीला-हवाली कर रही है, उससे इन शिक्षकों का गुस्सा बढ़ता जा रहा है, क्योंकि इससे यूनिवर्सिटीज और कॉलेजों में अधिक-से-अधिक सवर्णों की नियुक्ति हो जाएगी और एससी, एसटी, ओबीसी के योग्य अभ्यर्थी भी नौकरी से वंचित रह जाएंगे। इस मुद्दे पर फारवर्ड प्रेस ने कई शिक्षकों से बातचीत की। प्रस्तुत हैं उनकी प्रतिक्रियाओं के अंश :

विश्वविद्यालय को यूनिट मानकर लागू हो रोस्टर सिस्टम
31 जनवरी की आक्रोश रैली में भाग लेने आए विक्रम कॉलेज, मध्य प्रदेश में गणित के प्रोफेसर डॉ. राकेश परमार कहते हैं- “सरकार जल्द-से-जल्द 13 प्वाइंट रोस्टर खत्म करके, 200 प्वाइंट रोस्टर लागू करे। शैक्षणिक आयोग बनाया जाए। संवैधानिक प्रस्ताव करके सभी केंद्रीय यूनिवर्सिटीज को एक यूनिट मानकर उस पर रोस्टर सिस्टम लागू किया जाए। इसमें सारे पद कैलकुलेट किए जाएं, जैसे कि शिक्षकों के साथ-साथ लाइब्रेरियन, स्पोर्ट्स स्टाफ, कुलसचिव आदि पदों को भी इसमें शामिल किया जाए। साथ ही सभी आईआईटी डायरेक्टर का क्लब पूल बनाया जाए और सारे पद एक करके रोस्टर लागू किया जाए। आदिवासी समुदाय में अति निर्धनता के चलते ज्यादा दिन तक पढ़ाई जारी रख पाना असंभव नहीं है। अतः पीएचडी, नेट, क्रेट की अनिवार्यता खत्म की जाए। छह माह या एक साल की ट्रेनिंग देकर आदिवासी समुदाय के शिक्षकों की पोस्टिंग की जाए।”

दलित समाज की दूसरी पीढ़ी को रोकने के लिए है यह व्यवस्था
देशबंधु कॉलेज के हिंदी के प्रोफेसर बजरंग बिहारी तिवारी कहते हैं- “दलित समाज की दूसरी पीढ़ी की संभावना को रोकने के लिए यह व्यवस्था की गई है। सरकार की सारी पॉलिसी अधिकारों से वंचित समाज को अधिकार विहीन करना है। भय का ऐसा माहैल बनाया जा रहा है कि लोग घरों से बाहर न आएं। फिर भी लोगों का बाहर आना यह बताता है कि वे दहशत में नहीं हैं और सरकार को शिकस्त देता है। सरकारी स्कूलों की हालत खस्ता है। सेंट्रल यूनिवर्सिटीज को निजी हाथों में देने की तैयारी है यह। फंडिंग रोकना, उधार नहीं देने देना, यह सब सार्वजनिक यूनिवर्सिटीज को शट-डाउन करने की कोशिश है।”
13 प्वाइंट रोस्टर के जरिए की जा रही आरक्षण की हत्या
मोतीलाल नेहरू कॉलेज की संस्कृत विषय की प्रोफेसर कौशल पंवार ने कहा- “13 प्वाइंट रोस्टर सिस्टम के द्वारा आरक्षण की हत्या की जा रही है। रोस्टर के नाम पर संविधान में दिए गए प्रतिनिधित्व के साथ खिलवाड़ नहीं होने दिया जाना चाहिए। सरकार तुरंत इस सत्र में अध्यादेश लेकर आए।”

क्या पीएचडी करके मजदूरी करें हम
जाकिर हुसैन कॉलेज के उर्दू के प्रोफेसर भानू प्रताप कहते हैं- “200 प्लाइंट रोस्टर में सबको जगह मिलती है। अभी हाल में ही राज्सथान यूनिवर्सिटी में 13 प्वाइंट रोस्टर सिस्टम के हिसाब से निकली शिक्षकों की रिक्तियों को देख लीजिए, जिसमें एक भी आरक्षित वर्ग के लिए रिक्ति नहीं निकली है। एससी, एसटी और ओबीसी के लोग पीएचडी करके आएं और उन्हें यूनिवर्सिटी तथा कॉलेजों में शिक्षक की नौकरी न मिले, तो क्या हम फिर से मजदूरी करें। सरकार अध्यादेश लाए। 13 प्वाइंट रोस्टर के कारण एसटी लगभग हर जगह से गायब है।”
संविधान का हनन करके गणतंत्र दिवस का जश्न मनाना बेमानी है
किरोड़ीमल कॉलेज की हिंदी की प्रोफेसर प्रज्ञा रोहिणी कहती हैं- “नया रोस्टर सिस्टम उनकी (भाजपा की) अपनी विचारधारा को संतुष्ट करने के लिए लागू किया जा रहा है। बैकलॉग तक नहीं भरा गया है। 26 जनवरी को उन्होंने गणतंत्र दिवस मनाया, सारे देश ने देखा; लेकिन समता, बंधुत्व, समानता कहीं नहीं दिख रहे आज। गणतंत्र का जश्न मना रहे हो, तो गणतंत्र के मतलब पर खरे उतरो, उसे पूरा करो। जब संविधान का ही हनन कर रहे हो, उसे लागू नहीं कर रहे हो, तो क्या मतलब है इस जश्न का?”
निम्न वर्ग के अधिकारों का हनन है यह
लक्ष्मीबाई कॉलेज की हिंदी विषय की प्रोफेसर सुमन जी कहती हैं- “हमारा हित सुरक्षित रखा जाए। 13 प्वाइंट रोस्टर हमारे अधिकारों का हनन कर रहा है। निम्न वर्ग के अधिकारों का हनन हो रहा है। सरकार अध्यादेश लाकर 200 प्वाइंट रोस्टर लागू करे।”
दलितों-पिछड़ों को साथ लिए बिना देश आगे नहीं बढ़ सकता
रामजस कॉलेज की कैमिस्ट्री की शिक्षिका डॉ. महक कहती हैं- “जिनका हक है, उन्हें मिलना चाहिए। हम लोग तो आजादी से पहले से ही पिछड़े हुए हैं। सरकार को समझना चाहिए कि दलितों-पिछड़ों को साथ लिए बिना देश आगे नहीं बढ़ सकता। देश का विकास हमें साथ लेकर ही होगा।”
अतिथि महाविद्यालय बवाना के गणित के शिक्षक एस.के. यादव का कहना है कि “विभागवार भर्ती से आरक्षण के सारे मानदंड पूरे नहीं होते। इससे आरक्षण 25 प्रतिशत भी नहीं बैठ रहा। जबकि सरकार ने 60 प्रतिशत आरक्षण का प्रवाधान किया है। यह हमें चाहिए कि हम 13 प्वाइंट रोस्टर सिस्टम का विरोध करें। अन्यथा ऐसे तो एससी, एसटी, ओबीसी, अल्पसंख्यकों और विकलांगों को उनका हक ही नहीं मिल पाएगा। सामाजिक न्याय की लड़ाई के लिए हम अब लंबी लड़ाई लड़ने को भी तैयार हैं। इसलिए 13 प्वाइंट रोस्टर को डिसमिस करके 200 प्वाइंट रोस्टर लागू किया जाना चाहिए।”
ये स्थितियां बहुत डरावनी और खतरनाक हैं
दौलतराम कॉलेज की हिंदी विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर नीतिशा खालको कहती हैं- “यह पूरी तरह से एक साजिश है। कुछ खास कम्युनिटीज पर, जिनको आज हम मार्जिनलाइज्ड सेक्शन कहते हैं, उन पर लगातार अटैक होता रहा है। इस अटैक की ही श्रेणी में 13 प्वांइट रोस्टर है। पहले एससी, एसटी अत्याचार अधिनियम को हटाने की बात की गई, फिर आर्थिक आधार पर सवर्णों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने का मामला आता है। उसके बाद हम देख रहे हैं कि 13 प्वाइंट रोस्टर सिस्टम आ जाता है। ऐसा लगता है कि एक खास तबके को अलग-अलग जगहों पर मारने की कोशिश की जा रही है। और विज्ञापनों में यह दिखाया जा रहा है कि हम सबका साथ सबका विकास करना चाह रहे हैं। बेटी को बचाना और पढ़ाना चाह रहे हैं। लेकिन इन तमाम स्लोगनों के पीछे उसकी वास्तविक स्थितियां खुलकर सामने आती हैं। ये स्थितियां बहुत डरावनी और खतरनाक हैं। 13 प्वाइंट रोस्टर सिस्टम को लेकर जो तैयारियां की गई हैं, वे आरक्षण को पूरी तरह ध्वस्त करने की कोशिश के तहत की गई हैं। ध्वस्त करने के क्रम में यूनिवर्सिटीज-कॉलेजों में शिक्षक पदों की भर्तियों पर जो हमला हुआ है, उसका उद्देश्य एससी, एसटी, ओबीसी के लोगों को उच्च शिक्षा से वंचित करना है। पुराने जमाने को जी शिक्षा व्यवस्था थी, वह चंद मुट्ठी भर लोगों के हाथों में थी। लेकिन फिर मुगलों और अंग्रेजों के समय में शिक्षा जब डेमोक्रटिक होती है, तो शिक्षा में सबकी सहभागिता बढ़ती है। लोग जब पढ़ लेते हैं, तो अपने लिए बोलने लगते हैं। अभी तक तो यह सब कर्म के आधार पर खास लोगों के सीमित था। आज जब शिक्षा से लोग समानता की स्थिति तक पहुंच रहे हैं, तो सवाल खड़े कर रहे हैं और इससे इन्हें परेशानी हो रही है। यही वजह है कि इन्होंने सीधे तौर पर शिक्षण व्यवस्था पर अटैक किया है।”

असमानता बढ़ेगी, तो देश गृहयुद्ध की ओर बढ़ेगा
नीतिशा खालको आगे कहती हैं कि “पहले उन्होंने स्टूडेंट मूवमेंट को कुचलने की कोशिश की, फिर यूनिवर्सिटीज-कॉलेजों की सीटों में कटौती की। उसके बाद शिक्षा के बजट का प्रतिशत कम किया। इसके बाद मार्जिनलाइड सेक्शन के जो चंद लोग शिक्षण व्यवस्था में पहुंचे हैं, उन्हें एक सिरे से खारिज करने के लिए यह कोशिश की जा रही है। एक आदिवासी होने के नाते मैं 13 प्वाइंट रोस्टर का विरोध करती हूं। इन्होंने हमें वापस जंगलों में भेजने की तैयारी कर ली है। और उधर इन्होंने हमसे हमारे जंगल भी छीनकर टाइगर रिजर्व बनाकर कारपोरेट घरानों को सौंप दिए हैं। अब न तो खेती के लिए जमीन बची है, न भोजन के अन्य साधनों के लिए जंगल। दलित समुदाय भी अपने लिए काफी सम्मान और समानता अर्जित कर चुका है, अब उसे फिर उसके उसी पुराने काम में धकेलकर हाथों में झाड़ू पकड़ाने की कोशिश की जा रही है। देश के संसाधनों पर हम अपनी दावेदारी न कर सकें, इसीलिए यह 13 प्वाइंट रोस्टर लाया गया है। यह हमारे समाज पर हमला है। असमानता की स्थिति बढ़ेगी, तो देश गृहयुद्ध की ओर बढ़ेगा। हमें हर तरह की लड़ाई के लिए अब साथ आना होगा।”
(कॉपी संपादन : प्रेम)
फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्त बहुजन मुद्दों की पुस्तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्य, सस्कृति व सामाजिक-राजनीति की व्यापक समस्याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in
फारवर्ड प्रेस की किताबें किंडल पर प्रिंट की तुलना में सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं। कृपया इन लिंकों पर देखें
मिस कैथरीन मेयो की बहुचर्चित कृति : मदर इंडिया
दलित पैंथर्स : एन ऑथरेटिव हिस्ट्री : लेखक : जेवी पवार