h n

‘ओबीसी, आदिवासी, दलित, अल्पसंख्यक सभी रोस्टर के मुद्दे पर एक साथ सड़क पर आ रहे हैं’

भाजपा की पूर्व सांसद सावित्री बाई फुले ने कहा कि वे 2019 में दोबारा अगर आए तो संविधान को पूरी तरह खत्म कर देंगे। आज की तारीख में भी जो संविधान है उसकी धाराएं बदली जा रही हैं, उसमें मनुस्मृति के पन्ने डाले जा रहे हैं

कल 11 फरवरी को 13 प्वाइंट रोस्टर सिस्टम के खिलाफ़ यूजीसी से मानव संसाधन मंत्रालय तक  निकाल रहे छात्रों, शोधार्थियों और शिक्षकों को मानव संसाधन मंत्रालय पहुंचने से पहले ही गिरफ्तार करके संसद मार्ग थाने में डाल दिया गया। गिरफ्तार किये गए लोगों की संख्या 100 के करीब थी। इसके बाद हजारों की संख्या में आंदोलनकारी वहीं संसद मार्ग थाने के सामने ही धरने पर बैठ गए। आंदोलनकारियों को गिरफ्तार किए जाने की खबर सुनते ही जंतर मंतर पर एक कार्यक्रम में शरीक होने गई भाजपा की बाग़ी सांसद सावित्री बाई फुले 200 प्वाइंट रोस्टर के आंदोलनकारियों के बीच संसद मार्ग पहुँची और वहां धरना दे रहे लोगों को संबोधित किया।

भाजपा सांसद सावित्री बाई फुले ने कहा- “जब मैं भाजपा की सीट से जीतकर संसद पहुँची और वहां मैंने दलित बहुजनों का मुद्दा उठाया तो मुझे हीन भावना से देखा जाने लगा।”

इतना सुनते ही वहां मौजूद लोगों ने एक स्वर में ‘शेम शेम शेम शेम शेम’ कहा।

मानव संसाधन विकास मंत्रालय की ओर जाते न्याय मार्च

इसके बाद सावित्री बाई फुले ने आगे कहा- “दलितों बहुजनों को संविधान में मिले आरक्षण को आज तक नहीं लागू किया गया। वहीं सवर्णों को 10% आरक्षण देकर संविधान को बदलने की साजिश की गई है। इस बात को मैं लगातार लोकसभा में उठाती आई हूँ। ये भाजपा की नहीं आरएसएस की सरकार है। भाजपा का मंत्री बोलता है कि हम संविधान बदलने के लिए सत्ता में आए हैं। मोहन भागवत कहता है कि हम संविधान की समीक्षा करके आरक्षण खत्म करेंगे। मोदी सरकार ने सरकारी संस्थाओं को प्राइवेट कर दिया और प्राइवेट सेक्टर में आरक्षण लागू नहीं किया। ये 2019 में दोबारा अगर आए तो वो  संविधान को पूरी तरह खत्म कर देंगे। आज की तारीख में भी जो संविधान है उसकी धाराएं बदली जा रही हैं, उसमें मनुस्मृति के पन्ने डाले जा रहे हैं। मैं संविधान में ये बातें आपको दिखा सकती हूँ।

सभा को सम्बोधित करते रत्नलाल (बाएं) और सावित्री बाई फुले

जब अटल बिहारी की सरकार थी तब उन्होंने संविधान समीक्षा कमेटी बनाई थी। सोचिए कि संविधान के होने के बावजूद दलित बहुजन समाज की दशा ये है तो संविधान के न रहने पर दलित बहुजनों की दशा-दिशा क्या होगी। अगर आप लोगों ने अब भी नहीं चेता तो हमें फिर से हजारों साल की गुलामी में धकेल दिया जाएगा। वो कहावत है ना, ‘जिस ओर जवानी चलती है उस ओर जमाना चलता है’, जिस रोज हमारे समाज का जवान निकलकर सड़कों पर आ जाएगा आंदोलन हो जाएगा। आंदोलन के सिवाय अब और कोई दूसरा चारा नहीं है हमें सड़क पर आना ही होगा क्योंकि कार्यपालिका हमारी नहीं है, न्यायपालिका भी हमारी नहीं है। विधायिका में जो कुछ लोग हमारे समाज के हैं वो बीजेपी के दलाल हैं। उन दलालों के चक्कर में हमारा संविधान और अधिकार खतरे में है। ऐ, मेरे समाज के लोगों अगर आप अपना हक़ चाहते हो, सम्मान चाहते हो सुरक्षा चाहते हो संविधान चाहते हो। संविधान बचाने के लिए गर फांसी की सजा होगी तो सबसे पहले फांसी पर चढ़ने के लिए मैं तैयार हूँ। हमें जो कुछ भी आज हासिल है, वो इसी संविधान की बदौलत है। इस संविधान के लिए हमारे पूर्वजों ने कितनी कुर्बानियां दी हैं। इस योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता। दलित समाज के जो लोग आज सरकारी पदों पर हैं और चुप्पी ओढ़े हुए हैं वो अपनी नौकरी तो बचा लेंगे पर उनके बच्चों के लिए कल को क्या बचेगा, जब संविधान ही नहीं होगा। फिर तो वो हमारी आपकी परछाईं देखना भी पाप समझेंगे। वो वही दिन फिर लाना चाहते हैं। बीजेपी को खत्म किए बिना आरक्षण को नहीं बचाया जा सकता। इसके लिए हमें एकजुट होकर 2019 में भाजपा को हराना होगा। ”

यूजीसी गेट के बाहर बीएसएफ के जवान

प्रोफेसर रतनलाल ने कहा- “ये देश की विडंबना है। जब देश के शिक्षक पर डंडे चलें और वो गिरफ्तार हों तो इस देश में सरकार के संस्कार का आभास होता है। शिक्षको पर जो ये डंडे चले हैं ये मोदी और जावड़ेकर के इशारे पर चले हैं। आखिर सड़क पर प्रदर्शन करनेवाले ये लोग कौन हैं। ये कोई बदमाश गुंडे तो थे नहीं, छात्र और शिक्षक थे। बहुजन समाज अपने हक़ के लिए सड़क पर उतरता है तो उसे उसका हक़ मिलने के बजाय गिरफ्तार कर लिया जाता है। तो समझ लीजिए इस देश में बहुजनों और शिक्षकों की क्या औकात है।शिक्षकों को सम्मान देने की बात होती है और यहां लाठियां मिल रही हैं। तो क्या सिर्फ ब्राह्मण शिक्षकों को ही शिक्षक होने का अधिकार है।”

डॉ सूरज मंडल ने कहा- “दिलचस्प बात ये है कि आज संसद में धर्मेंद्र यादव के प्रश्न पर सरकार कहती है हम 200 प्वाइंट रोस्टर पर रिव्यू पिटीशन डाल रहे हैं जब वो कैंसिल होगा तब अध्यादेश लाएगें। प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार करके थाने ले जाना इस बात का सबूत है कि सरकार 13 प्वांइट रोस्टर के मुद्दे पर हिली हुई है। वो खुद भी जान रही है कि उसने 10 प्रतिशत सवर्णों को जो आरक्षण दिया है और वो असंवैधानिक है। क्या विडंबना है कि इस देश में अपना हक़ माँगने वालों पर लाठियां चलती हैं और संविधान जलाकरदेश की संप्रभुता पर एक बड़ा हमला करने वालों पर पुलिस हाथ तक नहीं डालती।”

13 प्वाइंट रोस्टर आंदोलन को समर्पित जाकिर हुसैन कॉलेज के असिस्टेंट प्रोफेसर लक्ष्मण यादव ने कहा- “ रोस्टर आंदोलन की कड़ी में ही आज का आंदोलन था। ये आंदोलन दो मोर्चे पर लड़ा जा रहा था। पहला ये कि देश के कई कालेजों यूनिवर्सिटी में स्ट्राइक थी और दूसरे कॉलेजों के हजारों छात्र, शोधार्थी व शिक्षक सड़कों पर उतरकर यूजीसी से मानव संसाधन मंत्रालय तक मार्च निकाल रहे थे। हमें एचएमआरडी से पहले गिरफ्चार करके जेल ले आया गया।”

इसके बाद सपा सांसद धर्मेंद्र यादव और समाजवादी सोशल मीडिया एक्टिविस्ट दिलीप मंडल ने भी आंदोलनकारियों को संबोधित किया। ध्यान देने की बात ये है कि 13 प्वाइंट रोस्टर के खिलाफ़ दिल्ली में लगातार एक के बाद एक अब तक कई आंदोलन हुए हैं। कह सकते हैं आंदोलनों की पूरी सीरीज ही जैसे निकल पड़ी है। और ये आंदोलन और इसका प्रभाव सिर्फ दिल्ली में ही सीमित नहीं है बल्कि देश के हर हिस्से में इसके समांतर इस मुद्दे पर कई आंदोल हो रहे हैं। इन आंदोलनों में स्त्रियों की भागीदारी भी संख्या के लिहाज से काफी ज्यादा है। इसके अलावा आदिवासी, दलित अल्पसंख्यक और बैकवर्ड सभी समुदाय के लोग इस मुद्दे पर एक साथ सड़क पर आ रहे हैं और लगभग हर आंदोलन में आ रहे हैं।

(कॉपी संपादन -अर्चना)


फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्‍त बहुजन मुद्दों की पुस्‍तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्‍स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्‍य, सस्‍क‍ृति व सामाजिक-राजनीति की व्‍यापक समस्‍याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्‍स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in

फारवर्ड प्रेस की किताबें किंडल पर प्रिंट की तुलना में सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं। कृपया इन लिंकों पर देखें

 

मिस कैथरीन मेयो की बहुचर्चित कृति : मदर इंडिया

बहुजन साहित्य की प्रस्तावना 

दलित पैंथर्स : एन ऑथरेटिव हिस्ट्री : लेखक : जेवी पवार 

महिषासुर एक जननायक’

महिषासुर : मिथक व परंपराए

जाति के प्रश्न पर कबी

चिंतन के जन सरोकार

लेखक के बारे में

सुशील मानव

सुशील मानव स्वतंत्र पत्रकार और साहित्यकार हैं। वह दिल्ली-एनसीआर के मजदूरों के साथ मिलकर सामाजिक-राजनैतिक कार्य करते हैं

संबंधित आलेख

यूपी : दलित जैसे नहीं हैं अति पिछड़े, श्रेणी में शामिल करना न्यायसंगत नहीं
सामाजिक न्याय की दृष्टि से देखा जाय तो भी इन 17 जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने से दलितों के साथ अन्याय होगा।...
बहस-तलब : आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के पूर्वार्द्ध में
मूल बात यह है कि यदि आर्थिक आधार पर आरक्षण दिया जाता है तो ईमानदारी से इस संबंध में भी दलित, आदिवासी और पिछड़ो...
साक्षात्कार : ‘हम विमुक्त, घुमंतू व अर्द्ध घुमंतू जनजातियों को मिले एसटी का दर्जा या दस फीसदी आरक्षण’
“मैंने उन्हें रेनके कमीशन की रिपोर्ट दी और कहा कि देखिए यह रिपोर्ट क्या कहती है। आप उन जातियों के लिए काम कर रहे...
कैसे और क्यों दलित बिठाने लगे हैं गणेश की प्रतिमा?
जाटव समाज में भी कुछ लोग मानसिक रूप से परिपक्व नहीं हैं, कैडराइज नहीं हैं। उनको आरएसएस के वॉलंटियर्स बहुत आसानी से अपनी गिरफ़्त...
महाराष्ट्र में आदिवासी महिलाओं ने कहा– रावण हमारे पुरखा, उनकी प्रतिमाएं जलाना बंद हो
उषाकिरण आत्राम के मुताबिक, रावण जो कि हमारे पुरखा हैं, उन्हें हिंसक बताया जाता है और एक तरह से हमारी संस्कृति को दूषित किया...