कल 11 फरवरी को 13 प्वाइंट रोस्टर सिस्टम के खिलाफ़ यूजीसी से मानव संसाधन मंत्रालय तक निकाल रहे छात्रों, शोधार्थियों और शिक्षकों को मानव संसाधन मंत्रालय पहुंचने से पहले ही गिरफ्तार करके संसद मार्ग थाने में डाल दिया गया। गिरफ्तार किये गए लोगों की संख्या 100 के करीब थी। इसके बाद हजारों की संख्या में आंदोलनकारी वहीं संसद मार्ग थाने के सामने ही धरने पर बैठ गए। आंदोलनकारियों को गिरफ्तार किए जाने की खबर सुनते ही जंतर मंतर पर एक कार्यक्रम में शरीक होने गई भाजपा की बाग़ी सांसद सावित्री बाई फुले 200 प्वाइंट रोस्टर के आंदोलनकारियों के बीच संसद मार्ग पहुँची और वहां धरना दे रहे लोगों को संबोधित किया।
भाजपा सांसद सावित्री बाई फुले ने कहा- “जब मैं भाजपा की सीट से जीतकर संसद पहुँची और वहां मैंने दलित बहुजनों का मुद्दा उठाया तो मुझे हीन भावना से देखा जाने लगा।”
इतना सुनते ही वहां मौजूद लोगों ने एक स्वर में ‘शेम शेम शेम शेम शेम’ कहा।

इसके बाद सावित्री बाई फुले ने आगे कहा- “दलितों बहुजनों को संविधान में मिले आरक्षण को आज तक नहीं लागू किया गया। वहीं सवर्णों को 10% आरक्षण देकर संविधान को बदलने की साजिश की गई है। इस बात को मैं लगातार लोकसभा में उठाती आई हूँ। ये भाजपा की नहीं आरएसएस की सरकार है। भाजपा का मंत्री बोलता है कि हम संविधान बदलने के लिए सत्ता में आए हैं। मोहन भागवत कहता है कि हम संविधान की समीक्षा करके आरक्षण खत्म करेंगे। मोदी सरकार ने सरकारी संस्थाओं को प्राइवेट कर दिया और प्राइवेट सेक्टर में आरक्षण लागू नहीं किया। ये 2019 में दोबारा अगर आए तो वो संविधान को पूरी तरह खत्म कर देंगे। आज की तारीख में भी जो संविधान है उसकी धाराएं बदली जा रही हैं, उसमें मनुस्मृति के पन्ने डाले जा रहे हैं। मैं संविधान में ये बातें आपको दिखा सकती हूँ।

जब अटल बिहारी की सरकार थी तब उन्होंने संविधान समीक्षा कमेटी बनाई थी। सोचिए कि संविधान के होने के बावजूद दलित बहुजन समाज की दशा ये है तो संविधान के न रहने पर दलित बहुजनों की दशा-दिशा क्या होगी। अगर आप लोगों ने अब भी नहीं चेता तो हमें फिर से हजारों साल की गुलामी में धकेल दिया जाएगा। वो कहावत है ना, ‘जिस ओर जवानी चलती है उस ओर जमाना चलता है’, जिस रोज हमारे समाज का जवान निकलकर सड़कों पर आ जाएगा आंदोलन हो जाएगा। आंदोलन के सिवाय अब और कोई दूसरा चारा नहीं है हमें सड़क पर आना ही होगा क्योंकि कार्यपालिका हमारी नहीं है, न्यायपालिका भी हमारी नहीं है। विधायिका में जो कुछ लोग हमारे समाज के हैं वो बीजेपी के दलाल हैं। उन दलालों के चक्कर में हमारा संविधान और अधिकार खतरे में है। ऐ, मेरे समाज के लोगों अगर आप अपना हक़ चाहते हो, सम्मान चाहते हो सुरक्षा चाहते हो संविधान चाहते हो। संविधान बचाने के लिए गर फांसी की सजा होगी तो सबसे पहले फांसी पर चढ़ने के लिए मैं तैयार हूँ। हमें जो कुछ भी आज हासिल है, वो इसी संविधान की बदौलत है। इस संविधान के लिए हमारे पूर्वजों ने कितनी कुर्बानियां दी हैं। इस योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता। दलित समाज के जो लोग आज सरकारी पदों पर हैं और चुप्पी ओढ़े हुए हैं वो अपनी नौकरी तो बचा लेंगे पर उनके बच्चों के लिए कल को क्या बचेगा, जब संविधान ही नहीं होगा। फिर तो वो हमारी आपकी परछाईं देखना भी पाप समझेंगे। वो वही दिन फिर लाना चाहते हैं। बीजेपी को खत्म किए बिना आरक्षण को नहीं बचाया जा सकता। इसके लिए हमें एकजुट होकर 2019 में भाजपा को हराना होगा। ”

प्रोफेसर रतनलाल ने कहा- “ये देश की विडंबना है। जब देश के शिक्षक पर डंडे चलें और वो गिरफ्तार हों तो इस देश में सरकार के संस्कार का आभास होता है। शिक्षको पर जो ये डंडे चले हैं ये मोदी और जावड़ेकर के इशारे पर चले हैं। आखिर सड़क पर प्रदर्शन करनेवाले ये लोग कौन हैं। ये कोई बदमाश गुंडे तो थे नहीं, छात्र और शिक्षक थे। बहुजन समाज अपने हक़ के लिए सड़क पर उतरता है तो उसे उसका हक़ मिलने के बजाय गिरफ्तार कर लिया जाता है। तो समझ लीजिए इस देश में बहुजनों और शिक्षकों की क्या औकात है।शिक्षकों को सम्मान देने की बात होती है और यहां लाठियां मिल रही हैं। तो क्या सिर्फ ब्राह्मण शिक्षकों को ही शिक्षक होने का अधिकार है।”
13 प्वाइंट रोस्टर आंदोलन को समर्पित जाकिर हुसैन कॉलेज के असिस्टेंट प्रोफेसर लक्ष्मण यादव ने कहा- “ रोस्टर आंदोलन की कड़ी में ही आज का आंदोलन था। ये आंदोलन दो मोर्चे पर लड़ा जा रहा था। पहला ये कि देश के कई कालेजों यूनिवर्सिटी में स्ट्राइक थी और दूसरे कॉलेजों के हजारों छात्र, शोधार्थी व शिक्षक सड़कों पर उतरकर यूजीसी से मानव संसाधन मंत्रालय तक मार्च निकाल रहे थे। हमें एचएमआरडी से पहले गिरफ्चार करके जेल ले आया गया।”
इसके बाद सपा सांसद धर्मेंद्र यादव और समाजवादी सोशल मीडिया एक्टिविस्ट दिलीप मंडल ने भी आंदोलनकारियों को संबोधित किया। ध्यान देने की बात ये है कि 13 प्वाइंट रोस्टर के खिलाफ़ दिल्ली में लगातार एक के बाद एक अब तक कई आंदोलन हुए हैं। कह सकते हैं आंदोलनों की पूरी सीरीज ही जैसे निकल पड़ी है। और ये आंदोलन और इसका प्रभाव सिर्फ दिल्ली में ही सीमित नहीं है बल्कि देश के हर हिस्से में इसके समांतर इस मुद्दे पर कई आंदोल हो रहे हैं। इन आंदोलनों में स्त्रियों की भागीदारी भी संख्या के लिहाज से काफी ज्यादा है। इसके अलावा आदिवासी, दलित अल्पसंख्यक और बैकवर्ड सभी समुदाय के लोग इस मुद्दे पर एक साथ सड़क पर आ रहे हैं और लगभग हर आंदोलन में आ रहे हैं।
(कॉपी संपादन -अर्चना)
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