महाराष्ट्र के अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लोग इस बात से नाराज हैं कि राज्य सरकार क्षत्रिय समुदाय के मराठों को ओबीसी में शामिल करने जा रही है। इसके विरोध में ओबीसी के लोगों द्वारा बीते 27 जनवरी से छत्रपति शाहू महाराज के गांव कोल्हापुर से संघर्ष यात्रा शुरू की है। यह यात्रा पूरे राज्य में निकाली जाएगी।
महाराष्ट्र के सामाजिक कार्यकर्ता श्रवण देवरे के मुताबिक महाराष्ट्र सरकार ने सामाजिक, शैक्षणिक रूप से पिछड़ा एक नया वर्ग (एसईबीसी- सोशली इकोनॉमिकली बैकवॉर्ड क्लास ) बनाकर मराठों को 16 प्रतिशत आरक्षण देना शुरू कर दिया है, जो संविधान सम्मत नहीं है। इस बात का अहसास राज्य सरकार को भी हो चुका है कि अदालत में मराठों को दिए आरक्षण का टिक पाना संभव नहीं है, इसलिए सरकार गंभीरता से इस बात पर विचार कर रही है कि अगर अदालत का निर्णय पक्ष में नहीं आता है तो फिर मराठों को ओबीसी वर्ग में शामिल कर दिया जाएगा।

उन्होंने बताया कि संघर्ष यात्रा को लोगों का समर्थन मिल रहा है। इस बात पर पूरा ओबीसी समुदाय सहमत है कि महाराष्ट्र सरकार की तरफ से अगर ओबीसी आरक्षण में छेड़छाड़ किया जाता है तो इसका कड़ा विरोध किया जाएगा। इसके साथ ही 2019 के लोकसभा व 2020 में हौने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा के खिलाफ वोटिंग की जाएगी।

देवरे के मुताबिक, महाराष्ट्र सरकार की इस मंशा के बारे में जैसे ही ओबीसी समुदाय के लोगों को भनक मिली, उनके प्रतिनिधियों ने मुख्यमंत्री सहित संबंधित मंत्रालय के मंत्री से मिलने का समय मांगना शुरू कर दिया लेकिन किसी को भी मिलने का समय नहीं दिया गया। इसके बाद राज्यपाल से मिलने का समय मांगा गया और ओबीसी प्रतिनिधियों ने उन्हें महाराष्ट्र सरकार के ओबीसी आरक्षण में छेड़छाड़ की संभावनाओं से अवगत कराया और साथ ही आगाह भी किया कि अगर ओबीसी आरक्षण में किसी अन्य जाति को शामिल करने की कोशिश की गई तो राज्य में मौजूद 52 फीसदी ओबीसी सड़क पर उतर जाएंगे।

श्रवण देवरे ने बताया कि राज्यपाल से मिलने के बाद ओबीसी प्रतिनिधिगण एनसीपी प्रमुख शरद पवार से भी मिले और अपनी आपत्तियों को उनके समक्ष रखा।
ओबीसी कार्यकर्ता देवरे के मुताबिक, एक बार मराठों को शामिल करने के बाद अन्य जातियों जाट, पटेल व अन्य क्षत्रिय जातियों की तरफ से भी इसी तरह की मांग उठनी शुरू हो जाएगी जो सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक रूप से समर्थ जातियां मानी जाती हैं। महाराष्ट्र सरकार की जो योजना है, उस पर अगर विराम नहीं लगाया गया तो ये समर्थ जातियां भी ओबीसी में शामिल हो जाएंगी और फिर ओबीसी को चपरासी तक की नौकरी मिलनी मुश्किल हो जाएगी।
(कॉपी संपादन : एफपी डेस्क)
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