पूर्वोत्तर के राज्य मिजोरम में अब चकमा जनजाति के युवाओं को राज्य के इंजीनियरिंग और मेडिकल संस्थानाें में प्रवेश में आरक्षण मिल सकेगा। वर्ष 2016 में मिजोरम राज्य तकनीकी प्रवेश परीक्षा (एमएसटीईई) नियम 2016 में बदलाव किए जाने से उन्हें मिलने वाला आरक्षण बंद हो गया था। इसके खिलाफ गुवाहाटी हाईकोर्ट में दायर याचिका पर 21 फरवरी 2019 को फैसला सुनाया गया।
चकमा जनजाति का संबंध बौद्ध धर्म से है और मिजोरम में अनुसूचित जनजाति में शामिल इस समुदाय की आबादी 9 फीसदी है।
दरअसल, मिजोरम में आरक्षण की तीन श्रेणियां हैं। प्रथम श्रेणी में मुख्य रूप से मिजो जनजाति के लोग हैं। दूसरी श्रेणी में गैर मिजो जनजाति और तीसरी श्रेणी में गैर अनुसूचित जनजाति समुदाय के लोग होते हैं। 2015 के पहले चकमा जनजाति भी प्रथम श्रेणी में शामिल थी। राज्य में 95 फीसदी आरक्षण इसी श्रेणी के जनजातियों को मिलता है। परंतु 2016 में आरक्षण नीति में बदलाव कर चकमा समुदाय को दूसरी श्रेणी में डाल दिया गया। इस कारण इस जनजाति के युवाओं को राज्य की तकनीकी शिक्षा और प्रतियोगी परीक्षाओं में मिजो समुदाय के समान आरक्षण मिलना बंद हो गया।

इसके खिलाफ मिजोरम चकमा छात्र संघ (एमसीएसयू) ने गुवाहाटी उच्च न्यायाल में एक जनहित याचिका दायर की थी। न्यायालय ने अपने आदेश में कहा है कि राज्य तकनीकी शिक्षण प्रवेश परीक्षा के आरक्षण संबंधित नियमों में किये गए बदलाव असंवैधानिक हैं। न्यायालय ने यह भी माना कि आरक्षण के नियमों में बदलाव एक विशेष समुदाय को फायदा पहुंचाने के लिए किए गए।

एक नजर में चकमा समुदाय
मिजोरम में चकमा समुदाय के लोग अधिकतर राज्य के दक्षिणी जिला लॉंगतलाई में रहते हैं जो संविधान की छठी अनुसूची में शामिल है। इसकी सीमा बांग्लादेश से जुड़ी है। राज्य के कुल 40 विधानसभा क्षेत्रों में से दो विधानसभा क्षेत्रों में चकमा जनजाति की संख्या निर्णायक है। गोरखा समुदाय सबसे बड़ा हिन्दू अल्पसंख्यक समुदाय है। इसे अनुसूचित जनजाति में शामिल किया गया है। वहीं नेपाली हिन्दू समुदाय ओबीसी में आरक्षण की मांग कर रहा है। एक अन्य ब्रू समुदाय राज्य में दूसरा बड़ा धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय है, जिसकी आबादी लगभग 6 फ़ीसदी है। इस समुदाय के लगभग 30 हजार लोग 1997-98 के दौरान राज्य में जनजातीय हिंसा की वजह से त्रिपुरा चले गए और अभी तक शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं।
(कॉपी संपादन : एफपी डेस्क)
फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्त बहुजन मुद्दों की पुस्तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्य, सस्कृति व सामाजिक-राजनीति की व्यापक समस्याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in
फारवर्ड प्रेस की किताबें किंडल पर प्रिंट की तुलना में सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं। कृपया इन लिंकों पर देखें
मिस कैथरीन मेयो की बहुचर्चित कृति : मदर इंडिया