दिल्ली यूनिवर्सिटी टीचर एसोसिएशन (डूटा) की अगुवाई वाली ‘जाइंट फोरम फॉर एकेडमिक एंड सोशल जस्टिस’ के बैनर तले 31 जनवरी को मंडी हाउस से जंतर-मंतर तक ‘आक्रोश मार्च’ का सफल आयोजन किया। इसके साथ ही डूटा तमाम विपक्षी दलों व सत्ता पक्ष के सहयोगी दलों को भी अपने मंच पर लाने में कामयाब रहा। इस संदर्भ में फॉरवर्ड प्रेस ने डूटा के अध्यक्ष राजीब रे से बातचीत की। प्रस्तुत है संपादित अंश :
फारवर्ड प्रेस (फा.प्रे.) : तेरह प्वाइंट रोस्टर सिस्टम पर आपकी क्या प्रतिक्रिया है?
राजीब रे (रा.रे.) : टेक्निकली 13 प्वाइंट रोस्टर बोलकर तो कुछ है नहीं। जो है वह विभागवार रोस्टर और विश्वविद्यालयवार रोस्टर है। इसे आप सब्जेक्ट-वाइज रोस्टर और कॉलेज-वाइज रोस्टर भी बोल सकते हैं। ये दोनों अलग-अलग बातें हैं। दरअसल 13 प्वाइंट रोस्टर सिस्टम एक क्रमबद्ध तरीका है जिससे यह तय होता है कि कौन से पद पर किस वर्ग की भर्ती होगी। इसमें शिक्षक के पदों को विभागवार भरा जाता है। इसमें 1,2,3 पद अनारक्षित सामान्य वर्ग के लिए, चौथा पद ओबीसी के लिए, पांचवां और छठा फिर फिर अनारक्षित सामान्य वर्ग के लिए, सातवां पद अनुसूचित जाति के लिए, आठवां पद ओबीसी के लिए और नवां, दसवां और ग्यारहवां पद एकबार फिर सामान्य वर्ग के लिए, बारहवां पद ओबीसी के लिए, तेरहवां पद सामान्य वर्ग और चौदहवां पद अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित होगा।
यहां यह बात समझने की है कि जब छोटा नियोजन की इकाई छोटी होगी तब आरक्षण के प्रावधानों के तहत संवैधानिक रूप से जिस वर्ग का जितना प्रतिशत निर्धारित है और जोकि संवैधानिक अनिवार्यता भी है , वह विभागवार रोस्टर में उस तरह से फॉलो नहीं हो सकता है। इसीलिए तो यह लड़ाई चल रही है।
फा.प्रे. : क्या आपलोगों का आंदोलन केवल विभागवार रोस्टर को खत्म कर विश्वविद्यालय के आधार पर आरक्षण तक सीमित है या और भी मुद्दे हैं?
रा.रे. : देखिए, 200 प्वाइंट रोस्टर की जो हमारी माँग है उसी में बैकलॉग और शॉर्टफॉल आदि मांगें भी
शामिल हैं। कॉलेज या यूनिवर्सिटी को एक यूनिट मानकर जब पदों को भरा जाएगा, तो इसमें संविधान में आरक्षण का जो प्रतिशत निर्धारित किया गया है उसके सारे नार्म्स पूरे होंगे। फिर किसी भी वर्ग के साथ अन्याय नहीं होगा।

फा.प्रे. : सुप्रीम कोर्ट से जो फैसला आया है, उसमें केंद्र सरकार की भूमिका को किस रूप में देखते हैं?
रा.रे. : सरकार की यह भूमिका थी कि सरकार आरक्षित वर्गों का पक्ष ठीक ढंग से पेश करती। कोर्ट का जो फैसला है वो है। कोर्ट के निर्णय के बाद यूजीसी द्वारा 5 मार्च 2018 को पत्र जारी किए जाने के बाद न सिर्फ डूटा अध्यक्ष के तौर पर बल्कि फेडरेशन ऑफ सेंट्रल यूनिवर्सिटी टीचर एसोसिएशन की तरफ से भी हमलोगों ने सरकार की आलोचना की थी और मांग की थी कि सरकार फैसले के विरोध में अध्यादेश लाए। तब से अब तक हर महीने हमलोगों ने विरोध प्रदर्शन किया है और हम लगातार मांग कर रहे हैं। पिछले वर्ष 3 अप्रैल को पहली बार जब जावड़ेकर जी ने कहा था कि सरकार पुनर्विचार याचिका दायर करेगी। तब हमलोगों ने एक बार फिर कहा था कि सरकार अध्यादेश लाए। लेकिन सरकार ने हमारी मांग न मानकर एसएलपी दायर कर दिया और आरक्षित वर्गों का पक्ष नहीं रखा। परिणाम यह हुआ कि सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया।
आपको बता दूं कि लगभग 4000 एडहॉक टीचर 200 प्वाइंट रोस्टर के आधार पर लगे हुए हैं। और 13 प्वाइंट रोस्टर के आधार पर नियोजन होगा तो सबसे अधिक नुकसान आरक्षित वर्गों को होगा। सामान्य वर्ग के लोगों को भी परेशानी होगी। मैं एक बार फिर बता दूं कि अनारक्षित यानी सामान्य होने का मतलब यह नहीं है कि 13 प्वाइंट रोस्टर के लागू होने पर वे सेफ रहेंगे। हो सकता है कि उनका भी चेंज हो जाए।
फा.प्रे. : 31 जनवरी के आक्रोश मार्च को आप किस तरह देखते हैं। क्या ये सरकार पर अध्यादेश लाने का दबाव बन पाया है?
रा.रे. : देखिए, प्रेशर तो बना ही है। पूरे देश से आवाज उठने लगी है। अब तो उनके मंत्री प्रकाश जावड़ेकर भी कह रहे हैं कि सरकार बड़े बेंच में पुनर्विचार याचिका दायर करेगी। आप गूगल करेंगे तो आपको पता चल जाएगा कि जावड़ेकर साहेब पहले भी बहुत कुछ बोले थे। आप इस पर आरएसएस के ऑर्गेनाइजर की स्टोरी, बसंत मोहंती की स्टोरी, टाइम्स ऑफ इंडिया की स्टोरी देख लीजिए उनमें तो वो बोले ही हैं कि हम ऑर्डिनेंस लेकर आएंगे 200 प्वाइंट रोस्टर के लिए। पर कहां लाए? अभी तक तो हमने नहीं देखा है।
फा.प्रे. : आपकी माँग को लेकर राजनीतिक पार्टियों का क्या रुख़ है?
रा.रे. : हमने पिछले महीने जो प्रेस कान्फ्रेंस किया था उसमें विपक्ष की 12- 13 पोलिटिकल पार्टियों के सांसदों और नेताओं ने हमारा सपोर्ट किया है। इसमें सपा के अखिलेश यादव, राजद के तेजस्वी यादव ने तो पिछले साल अप्रैल में अपने सोशल पेज पर हमारा सपोर्ट किया था। हमने पिछले महीने की 28 तारीख को कांस्टीट्युशन क्लब में जो प्रेस कान्फ्रेंस किया था उसमें बीजेपी के कई सांसद व्यक्तिगत तौर पर हमारे मंच पर आकर हमें सपोर्ट किए थे। 31 जनवरी के आक्रोश मॉर्च में भी इन राजनीतिक पार्टियों के प्रतिनिधि शामिल हुए थे। सरकार के अलायंस पार्टनर भी हमें सपोर्ट कर रहे हैं।
(कॉपी संपादन : एफपी डेस्क)
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